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हिंदी, तेलुगू, तमिल में सही समय पर नहीं रिलीज हो पाई 'जस्टिस लीग'

केंद्रीय फिल्म एवं प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से प्रमाणपत्र पाने के लिए फिल्मकारों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सेंसर बोर्ड के नियम के मुताबिक, फिल्म को प्रमाणन के लिए 68 दिन पहले ही आवेदन करना चाहिए, जिससे फिल्म उद्योग संकट की स्थिति में है।

Updated on: 19 Nov 2017, 01:58 PM

मुंबई:

केंद्रीय फिल्म एवं प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से प्रमाणपत्र पाने के लिए फिल्मकारों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सेंसर बोर्ड के नियम के मुताबिक, फिल्म को प्रमाणन के लिए 68 दिन पहले ही आवेदन करना चाहिए, जिससे फिल्म उद्योग संकट की स्थिति में है। 

इस नियम की गाज हॉलीवुड फिल्म 'जस्टिस लीग' पर गिरी है, जो समय पर प्रमाणपत्र नहीं मिलने के कारण हिंदी, तमिल और तेलुगू भाषा में निर्धारित तिथि को नहीं रिलीज हो सकी। 

निर्माता वार्नर बंधुओं के एक सूत्र ने खुलासा किया, 'हम किसी तरह 'जस्टिस लीग' के मूल अंग्रेजी संस्करण को रिलीज करने के लिए प्रमाणपत्र पाने में कामयाब रहे, लेकिन 68 दिन पहले आवेदन करने के नियम के चलते तमिल, हिंदी और तेलुगू संस्करण के लिए प्रमाणपत्र नहीं पा सके। फिल्म के डब संस्करण सेंसर नहीं किए जा सकते, क्योंकि इस हफ्ते से सेंसर बोर्ड ने 68 दिन की टाइमलाइन को सख्ती से अपनाना शुरू कर दिया है।'

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रिलीज योजनाओं में अचानक हुए फेरबदल से पूरे भारत के सिनेमाघरों में अफरा-तफरी का माहौल है, क्योंकि हिंदी, तमिल और तेलुगू संस्करण के लिए पहेल से ही बुकिंग शुरू हो चुकी थी। 

वार्नर बंधुओं ने कहा, 'रिलीज के पहले तक फिल्में पोस्ट-प्रोडक्शन में होती हैं, ऐसे में सेंसर बोर्ड को इतने दिन पहले फिल्में कैसे दी जा सकती हैं। निर्माता ने कहा कि उन्हें लगता है कि 68 दिन के नियम के चलते जिन कई फिल्मों की रिलीज की तारीख की घोषणा हो चुकी है, उन्हें सेंसर बोर्ड से प्रमाणपत्र नहीं मिलेगा। पूर्व सेंसर बोर्ड अध्यक्ष पहलाज निहलानी कम से कम हमारी बात तो सुनते और मदद करते थे। प्रसून जोशी किसी से जल्दी नहीं मिलते।'

इस समस्या का अंत निकट भविष्य में होता नजर नहीं आ रहा है। एक बड़े निर्माता ने कहा कि एडवांस में अपनी फिल्म को 68 दिन पहले भेजना अनुचित और बेतुका है और वह भी पूरा संपादित संस्करण..। 

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