बिना किसी कारण अचानक तेज सिरदर्द को हल्के में न लें, हो सकते हैं विकलांग
ब्रेन स्ट्रोक (Brain Stroke) भारत सहित पूरे विश्व में मृत्यु और विकलांगता (Disability) का एक प्रमुख कारण है.
नई दिल्ली:
ब्रेन स्ट्रोक (Brain Stroke) भारत सहित पूरे विश्व में मृत्यु और विकलांगता (Disability) का एक प्रमुख कारण है. जीवनशैली (Life Style) और खानपान (Diet) की आदतों में बदलाव के कारण आज उम्रदराज लोग ही नहीं युवा भी तेजी से इसकी चपेट में आ रहे हैं. भारत में हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति स्ट्रोक की चपेट में आता है और हर चार मिनट में स्ट्रोक के कारण किसी की मृत्यु होती है. उच्च् रक्तचाप (High Blood Pressure) स्ट्रोक का एक प्रमुख कारक है इसे नियंत्रित कर इसके खतरे को 30-40 प्रतिशत तक कम किा जा सकता है.
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ब्रेन स्ट्रोक
मस्तिष्क की लाखों कोशिकाओं की जरूरत को पूरा करने के लिए कईं रक्त कोशिकाएं हृदय से मस्तिष्क तक लगातार रक्त पहुंचाती रहती हैं. जब रक्त की आपूर्ति बाधित हो जाती है, तब मस्तिष्क की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं. इसका परिणाम होता है दिमागी दौरा या ब्रेन स्ट्रोक. यह मस्तिष्क में ब्लड क्लॉट बनने या ब्लीडिंग होने से भी हो सकता है. रक्त संचरण में रूकावट आने से कुछ ही समय में मस्तिष्क की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन की सप्लाकई रूक जाती है. जब मस्तिष्क को रक्त पहुंचाने वाली नलिकाएं फट जाती हैं, तो इसे ब्रेन हैमरेज कहते हैं. इस कारण पक्षाघात होना, याददाश्ता जाने की समस्या, बोलने में असमर्थता जैसी स्थिति आ सकती है. कईं बार ‘ब्रेन स्ट्रोक’ जानलेवा भी हो सकता है. इसे ब्रेन अटैक भी कहते हैं.
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लक्षण
- निम्न लक्षण इस बात का संकेत हैं कि आप स्ट्रोक की चपेट में आ चुके हैं.
- अचानक शरीर के एक ओर के चेहरे, बांह और पैर में कमजोरी आ जाना.
- अचानक भ्रमित हो जाना, बोलने और समझने में समस्या आना.
- अचानक एक ओर देखने में समस्या आना.
- अचानक चक्कर आना और चलने में समस्या होना.
- बिना किसी कारण के अचानक तेज सिरदर्द.
- फेस ड्पिंग यानी चेहरे का एक ओर झुक जाना या सुन्न हो जाना.
- आर्म वीकनेस यानी हाथों का सुन्न हो जाना या नीचे की ओर लटक जाना.
कारण
मस्तिष्क को रक्त पहुंचाने वाली नलिकाओं के क्षतिग्रस्त होने के करण या उनके फअ जाने के कारण ब्रेन अटैक होता है. इन नलिकाओं के क्षतिग्रस्त होने का मुख्य कारण ‘आर्टियोस्लेक रोसिस’ है. इसके कारण नलिकाओं की दीवरों में वसा, संयोजी उतकों, क्लॉट, कैल्शियम या अन्य पदार्थों का जमाव हो जाता है. इस कारण नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं जिससे उनके द्वारा होने वाले रक्त संचरण में रूकावट आती है या नलिकाओं की दीवार कमजोर हो जाती है. इसके अलावा उच्च रक्त दाब, हृदय रोग, धुम्रपान, मधुमेह, शारीरिक सक्रियता की कमी और कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर इसके खतरे को बढ़ा देते हैं. अनुवांशिक कारण ब्रेन स्ट्रोक होने की आशंका कईं गुना बढ़ा देते हैं.
स्ट्रोक और उच्च रक्तदाब
उच्च रक्तचाप और स्ट्रोक की आशंका के बीच गहरा संबंध है. रक्त दाब जितना अधिक होगा स्ट्रोक का खतरा उतना ही बढ़ जाएगा. उच्च रक्तदाब को स्ट्रोक का सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर माना जाता है, इसके कारण ब्लॉकेज और ब्लीडिंग दोनों की आशंका बढ़ जाती है. स्ट्रोक के 50-75 प्रतिशत मामले ब्लॉकेज (इसचौमिक स्ट्रोक) के कारण होते हैं. सर्दियों में सुबह उनका रक्त दाब खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है. इससे ब्रेन स्ट्रोक का खतरा कईं गुना बढ़ जाता है. ऐसे लोगों को इस मौसम में विशेष सावधनी बरतनी चाहिए. सर्दियों में प्लेटलेट्स स्टिकी हो जाते हैं, इससे भी ब्लॉकेज की आशंका बढ़ जती है.
कैसे हाइपर टेंशन स्ट्रोक के खतरे को बढ़ा देता है?
हाइपरटेंशन के कारण आपकी सभी रक्त नलिकाओं पर जो दबाव पड़ता है वो उन्हें कमजोर कर देता है जिससे वो आसानी से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं. हृदय को भी रक्त का संचरण करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है. एक बार जब आपकी रक्त नलिकाएं कमजोर हो जाएंगी वो आसानी से ब्लॉक हो जाएंगी. इसके कारण इसचेमिक स्ट्रोक हो सकता है और हाइपरटेंशन इस प्रकार के स्ट्रोक का सबसे प्रमुख कारण है, इससे ट्रांसिएंट इसचेमिक अटैक का खतरा भी बढ़ जाता है.
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हाइपर टेंशन के कारण हेमरेज स्ट्रोक भी हो सकता है, इसमें मस्तिष्क की रक्त नलिकाएं फट जाती हैं और मस्तिष्क में रक्त का रिसाव होने लगता है लेकिन इसके मामले बहुत कम देखे जाते हैं. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए एक नए शोध में यह बात सामने आई है कि मोटे लोग अपने ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर को नियंत्रित रखकर स्ट्रोक की आशंका को 75 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं.
लाएं बदलाव
- तनाव न लें, मनसिक शांति के लिए ध्यान करें.
- अपने रक्त दाब को नियंत्रित रखें.
- सोडियम का अधिक मात्रा में सेवन न करें.
- नियमित रूप से व्यायाम और योग करें.
- धुम्रपान और शराब के सेवन से बचें.
- अपना भार औसत से अधिक ना बढऩे दें.
- हृदय रोगी और मधुमेह के रोगी विशेष सावधानी बरतें.
- गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन ना करें, परिवार नियोजन के दूसरे तरीके अपनाएं.
उपचार
लक्षण नजर आते ही मरीज को तुरंत अस्पाताल ले जाना चाहिए. प्राथमिक स्तर पर इसके उपचार में रक्त संचरण को सुचारू और सामान्य करने की कोशिश की जाती है ताकि मस्तिष्क की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सके. इसके अलावा कुछ दवाईयों के द्वारा भी धमनियों के ब्लॉकेज को खोलने का प्रयास किया जाता है लेकिन इन दवाईयों को स्ट्रोक आने के 4-5 घंटे के भीतर ही दिया जाना चाहिए उसके पश्चात यह कारगर नहीं होती हैं.
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रक्त को पतला करने की दवाईयां भी इसके उपचार का एक प्रमुख भाग है लेकिन उन रोगियों में रक्त को पतला करने वाली दवाईयां कारगर नहीं होती जिनकी रक्त कोशिकाएं अत्यधिक संख्या में ब्लॉक हो जाती हैं. ऐसे मामलों में न्यूरोइंटरवेंशन तकनीक के द्वारा रक्त के थक्का को निकालकर रक्त संचरण को पुन: प्रारंभ किया जाता है. उपचार के बाद भी आवश्यक सावधानियंा बरतना जरूरी है क्योंकि एक बार स्ट्रोक की चपेट में आने पर पुन: स्ट्रोरक का हमला होने की आशंका पहले सप्ता्ह में 11 प्रतिशत, और पहले तीन महीनों में 20 प्रतिशत तक होती है.
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