Alert: वायु प्रदूषण से है कोरोना संक्रमित मरीजों को खतरा, 15 फीसदी बढ़ सकती है मृत्यु दर
प्रदूषित हवा (Pollution) के लंबे समय तक रहने से घातक कोरोना वायरस (Corona Virus) से संक्रमित लोगों की मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है.
highlights
- वायु प्रदूषण में कोरोना संक्रमण 15 फीसदी अधिक जानलेवा.
- दिल्ली को लेकर स्थिति और गंभीर होने की आशंका.
- सर्जिकल-कॉटन मास्क निष्प्रभावी रहने से चिंता गहराई.
नई दिल्ली:
प्रदूषित हवा (Pollution) के लंबे समय तक रहने से घातक कोरोना वायरस (Corona Virus) से संक्रमित लोगों की मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है. यह हाल ही में हुए एक अध्ययन का निष्कर्ष है जो दोनों कारकों के बीच एक स्पष्ट संबंध बनाता है. हार्वर्ड विश्वविद्यालय टी.एच. चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि पीएम 2.5 के लंबे समय तक संपर्क में वृद्धि से कोरोना वायरस की मृत्यु दर में बड़ी वृद्धि हो सकती है. प्रदूषण की वृद्धि कोरोना वायरस मृत्यु दर में 15 प्रतिशत की वृद्धि की वजह बन सकती है.
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दिल्ली को लेकर चिंता गहरी
इंडियन चेस्ट सोसाइटी के अध्यक्ष डी.जे. क्रिस्टोफर ने आईएएनएस से कहा, 'रिपोर्ट परेशान करने वाली है क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि वायु प्रदूषण के संपर्क से कोरोना वायरस रोगी की गंभीरता और मृत्यु प्रभावित हो सकती है. मैं अपने देश के शहरों में उच्च प्रदूषण, विशेष रूप से नई दिल्ली के बारे में गहराई से चिंतित हूं.' उन्होंने कहा, 'लेकिन, हमें इस बारे में और रिपोर्टो के लिए और इंतजार करना पड़ सकता है. तब हम देख पाएंगे कि प्रदूषित शहरों में गंभीरता और मामलों की संख्या अधिक है या नहीं.' अध्ययन के लिए हार्वर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने संयुक्त राज्य अमेरिका में 4 अप्रैल 2020 तक लगभग 3,000 काउंटी से डाटा एकत्र किया. इसमें पाया गया कि पीएम 2.5 में केवल 1 माइक्रो पर क्यूब मीटर की वृद्धि कोरोना वायरस मृत्यु दर में 15 प्रतिशत की वृद्धि की वजह बन सकती है.
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सर्जिकल-कॉटन मास्क भी बेअसर
इसके पहले सर्जिकल-कॉटन मास्क (Mask) दोनों को मरीज की खासी से सार्स-कोरोना वायरस (Corona Virus) के प्रसार को रोकने में अप्रभावी पाया गया. दक्षिण कोरिया के सियोल (Seol) के दो अस्पतालों में आयोजित एनल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि जब कोरोना वायरस रोगियों ने किसी भी प्रकार का मास्क लगाकर खांसा तो वायरस की बूंदें वातावरण में और मास्क की बाहरी सतह पर पहुंच गईं. एन 95 (N 95) और सर्जिकल मास्क की कमी के कारण विकल्प के तौर पर इन्फ्लूएंजा वायरस के प्रसार को रोकने के लिए कॉटन मास्क में लोगों ने रुचि दिखाई है.
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