हाथी को कैंसर का खतरा कम क्यों? रिसर्च में सामने आई वजह
मानव की तुलना में हाथी के शरीर में कैंसर की कोशिकाओं की संभावना सौ गुनी ज्यादा होती है, फिर भी उसे कैंसर का खतरा कम रहता है।
न्यूयॉर्क:
मानव की तुलना में हाथी के शरीर में कैंसर की कोशिकाओं की संभावना सौ गुनी ज्यादा होती है, फिर भी उसे कैंसर का खतरा कम रहता है। दरअसल, हाथी के शरीर में कैंसर से बचाव के लिए एक खास तरह का जीन पाया जाता है। हालिया एक शोध में शोधकर्ताओं ने इस जीन की पहचान की है। उनके अनुसार, हाथी के शरीर में 'जोंबी' नामक एक जीन पाया जाता है, जो उसे कैंसर से बचाता है। शोधकर्ताओं की माने तो इससे मानव के कैंसर का इलाज भी सुगम हो सकता है।
दुनियाभर में बीमारी से होने वाली मौतों के आंकड़े को देखें तो प्रत्येक छह लोगों की मौत में से एक मौत कैंसर की बीमारी से होती है। वहीं, हाथियों की महज पांच फीसदी मौत कैंसर से होती है, जबकि हाथी का भी जीवन चक्र तकरीबन 70 साल का होता है।
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मानव और हाथी में एक मास्टर ट्यूमर सप्रेशर जीन पी-53 पाया जाता है, जो मरम्मत नहीं होने वाले डीएनए क्षति की पहचान करता है। यह कैंसर की बीमारी का पूर्व सूचक है और इससे कोशिकाएं नष्ट होने के कारणा का पता चलता है।
हालांकि शिकागो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि हाथी में पी-53 की 20 प्रतियां पाई जाती हैं। जिससे उनकी कोशिकाएं डीएनए को होने वाले नुकसान को लेकर अधिक संवेदनशील हो जाती हैं।
इसके अलावा हाथी में एक कैंसर रोधी जीन भी पाया जाता है जिसे ल्यूकीमिया इन्हिबिटरी फैक्टर-6 (एलआईएफ-6) कहते हैं, जो हाथी को मौत से बचाता है।
पी-53 के से सक्रिय होकर एलआईएफ-6 काम करना शुरू कर देता है और वह कोशिका को मृत कर डीएनए को होने वाली क्षति के प्रति कार्य करता है।
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विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर विंसेंट लिंच ने कहा, 'जीन हमेशा अपनी प्रति बनाता रहता है। कभी-कभी उनसे भूल भी होती है और उससे स्यूडोजीन बनता है जो कार्य नहीं करता है।'
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