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2013 से 2016 के बीच भारत में वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या में 7.5 मिलियन का इजाफा

वायु प्रदूषण के कारण भारत में वर्ष 2015 के दौरान अनुमानत: 18.1 लाख लोगों की मौत हुई थी।

Updated on: 17 Dec 2017, 04:23 AM

नई दिल्ली:

वायु प्रदूषण के कारण भारत में वर्ष 2015 के दौरान अनुमानत: 18.1 लाख लोगों की मौत हुई थी। एक्यूट रेस्पिरेटरी इंफेक्शन (एआरआई) या तीव्र श्वसन संक्रमण का प्रसार वर्ष 2013 में 3.27 करोड़ से बढ़कर 2016 में 4.03 करोड़ हो गया और पिछले चार वर्षो से यह लगातार बढ़ रहा है।  इस बात की जानकारी पर्यावरण मंत्री हर्ष वर्धन ने लोकसभा में लिखित जवाब में दी। 

द लांसेट ग्लोबल हेल्थ मेडिकल जर्नल में छपी एक रिपोर्ट में यह बताया गया है। शहरों व कस्बों के लगभग दो-तिहाई हिस्से में, जहां हवा की गुणवत्ता पर नजर रखी गई थी, 2016 में पीएम10 के स्तर स्वीकार्य सीमा से अधिक थे। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड ने 21 स्थानों पर सीमाएं पार कर ली और 31 स्थानों में पीएम 2.5 मानकों को पूरा नहीं किया।

वर्धन ने 2016 के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आकंड़ो की जानकारी देते हुए बताया कि महाराष्ट्र में इस दौरान एआरआई के मामले 896,949 से बढ़ कर 1,959,700 हो गए। वहीं मौत की संख्या 1 से बढ़कर 20 हो गई।

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी 13 दिसंबर को पर्यावरण मंत्रालय से पूछा ता कि वायु- प्रदूषण से जुड़ी योजनाओं को केवल दिल्ली-एनसीआर में ही क्यों लागू किया जा रहा है। कोर्ट ने आदेश दिया था कि दो हफ्तों के भीतर इन योजनाओं को पूरे देश में लागू करें।

एआरआई एक गंभीर संक्रमण है, जो सामान्य श्वसन प्रक्रिया में बाधक बनता है। यह आमतौर पर नाक, श्वासनली (विंडपाइप) या फेफड़ों में वायरल संक्रमण के रूप में शुरू होता है। यदि संक्रमण का इलाज नहीं किया जाए, तो यह पूरी श्वसन प्रणाली में फैल सकता है। एआरआई शरीर को ऑक्सीजन की सप्लाई रोकता है और इस वजह से मौत भी हो सकती है। 

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, 'हालांकि वायरस और जीवाणुओं से बचना असंभव है, कुछ जोखिम कारक तीव्र श्वसन संक्रमण की संभावना को बढ़ाते हैं। बच्चों और बुजुर्गो की प्रतिरक्षा प्रणाली के वायरस से प्रभावित होने की संभावना अधिक रहती है। बच्चों को विशेष रूप से जोखिम रहता है, क्योंकि वे अक्सर ऐसे बच्चों के साथ लगातार संपर्क में रह सकते हैं, जिनमें पहले से ही वायरस मौजूद हैं।'

अग्रवाल ने कहा, 'बच्चे अक्सर अपने हाथों को नियमित रूप से धोते नहीं हैं, अपनी आंखों को रगड़ते रहते हैं और उंगलियों को अपने मुंह में डालते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वायरस फैलता है। हृदय रोगों या फेफड़े की किसी समस्या वाले लोगों में तीव्र श्वसन संक्रमण से संक्रमित होने की अधिक संभावना रहती है। किसी भी व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली यदि किसी अन्य बीमारी से कमजोर हो गई है, तो उसे अधिक खतरा रहता है। धूम्रपान करने वाले भी उच्च जोखिम में हैं और इसे से उबरने में अधिक परेशानी होती है।'

उन्होंने कहा कि तीव्र श्वसन संक्रमण के प्रारंभिक लक्षण आमतौर पर नाक और ऊपरी फेफड़ों में दिखाई देते हैं। कुछ अन्य लक्षणों में नाक बंद होना, नाक बहना, खांसी, गले में खराश, शरीर में दर्द और थकावट शामिल हैं। अधिक गंभीर लक्षण रक्त में ऑक्सीजन का स्तर कम होना और बेहोशी जैसी हालत होना है।

अग्रवाल ने कहा, 'कई वायरसों के मामले में, इलाज उपलब्ध नहीं है। आपकी हालत की निगरानी करते समय आपका डॉक्टर लक्षणों को मैनेज करने के लिए दवाएं लिख सकता है। यदि आपके डॉक्टर को जीवाणु संक्रमण का संदेह है, तो वह एंटीबायोटिक दवाओं की सलाह दे सकता है।'

एमएमआर और पर्टुसिस वैक्सीन लेने से श्वसन संक्रमण होने का खतरा काफी हद तक कम हो सकता है। इसके अलावा, स्वच्छ रहने की कोशिश करनी चाहिए। कुछ सुझाव इस प्रकार हैं : 

* अपने हाथ अक्सर धोएं, खासकर जब आप सार्वजनिक स्थान पर होते हैं।

* छींकते समय रूमाल या हाथ मुंह के सामने रखें।

* कीटाणुओं से बचाव के लिए, अपने चेहरे को बचाएं, विशेष रूप से आंखों और मुंह को छूने से बचें।

IANS के इनपुट के साथ

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