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11 से 21 साल के लोगों को जकड़ रही है ये बीमारी, आत्‍महत्‍या तक करने को हो जाते हैं मजबूर

11 साल के बच्‍चों से लेकर 21 साल के युवाओं में एक खास किस्‍म की बीमारी तेजी से पनप रही है.

Updated on: 19 Jan 2019, 10:43 AM

वाशिंगटन डीसी:

11 साल के बच्‍चों से लेकर 21 साल के युवाओं में एक खास किस्‍म की बीमारी तेजी से पनप रही है. शोध बताता है कि बच्‍चों और युवाओं में इस खास बीमारी की वजह से डिप्रेशन यहां तक बढ़ जाता है कि वो खुदकुशी करने को मजबूर हो जाते हैं. अमेरिकन एकेडमी ऑफ चाइल्‍ड एंड एडोलेसेंट साइकियाट्री में प्रकाशित एक शोध में बताया गया है कि Obsessive compulsive symptoms बच्‍चों और युवाओं में काफी तेजी से बढ़ रहा है.

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शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जिन लोगों में OCS पाया जाता है उनमें डिप्रेशन और आत्‍महत्‍या के खतरे बढ़ जाते हैं. यह अध्‍ययन 11 से 21 साल के 7,000 बच्‍चों और युवाओं पर किया गया. शोधकर्ताओं ने OCS वाले लोगों को चार वर्गों में बांटा. पहला जिनको अक्‍सर बुरे विचार आते थे, दूसरे वर्ग में वो लोग थे जो एक काम को बार-बार रिपीट करते थे. तीसरे में एक समान आदत वाले और चौथ ग्रुप उन लोगों का था जो सनक की हद तक सफाई करते थे. इनमें से 20 फीसद युवा जिनमें बुरी आदतें थीं खुदको या दूसरों को नुकसान पहुंचानें के बारे में ज्‍यादा सोचते थे. ऐसे युवा डिप्रेशन के शिकार थे.

खतरनाक है सनक की हद तक सफाई

ओसीडी ऐसी मानसिक परेशानी है, जिसमें अनियंत्रित विचार और व्यवहार हमें घेर लेते हैं. हम एक ही चीज बार-बार करने लगते हैं. ऑबसेसिव-कंपलसिव डिस्ऑर्डर में कोई एक विचार दिमाग में आकर अटककर रह जाता है. उदाहरण के लिए आप बार-बार यह जांचते रहते हैं कि फ्रिज या लाइटें बंद हैं या नहीं. साफ होने के बावजूद बार-बार हाथ धोते हैं या अपने डेस्क को कई बार अरेंज करते हैं.

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एफेक्टिव डिस्‍ऑर्डर जर्नल में बताया गया कि ओसीडी से पीडि़त मरीजों में अवसाद होने का खतरा, उन लोगों की अपेक्षा दस गुना होता है, जिन्‍हें ओसीडी नहीं है. अवसाद के लक्षणों में नाउम्‍मीदी और लाचारी, रोजमर्रा के कामों में रुचि न हो तथा वजन व भूख में बदलाव होना शामिल होता है. कुछ लोगों में अवसाद के दौरान ओसीडी के लक्षण और अधिक मुखर हो जाते हैं. ओसीडी के साथ अवसाद का मेल ईलाज को और मुश्किल बना देता है. जर्नल ऑफ क्लीनिकल साइक्रेट्री में छपे एक शोध के अनुसार जिन लोगों को केवल ओसीडी होता है, वे उन लोगों जिन्‍हें ओसीडी और असवाद दोनों होते हैं के मुकाबले, इलाज के बाद जीवन के प्रति बेहतर रवैया रखते हैं.