खुल कर रखें दिल की बात, अवसाद बढ़ाता है हार्ट अटैक का खतरा
एक तिहाई लोगों को अवसाद और चिंता के कारण दिल से जुड़ी बीमारी होने का रिस्क ज्यादा होता है
नई दिल्ली:
दुनिया भर के विशेषज्ञों ने कहा है कि दिल की बीमारियों और अवसाद और चिंता के बीच एक पैथोफिजियोलॉजिकल(Pathophysiological) रिश्ता है।
मनोचिकित्सा में हावर्ड रिव्यू के अध्ययन की मानें तो एक तिहाई लोगों को अवसाद और चिंता के कारण दिल से जुड़ी बीमारी होने का रिस्क ज्यादा होता है।
मैसाचुसेट्स जनरल अस्पताल के एमडी क्रिस्टोफर सेलानो और सहयोगियों कि माने तो 'दिल की बीमारियों या कार्डियक हमले से पीड़ित मरीजों में चिंता और अवसाद दोनों की ही पहचान नहीं हो पाती है और इलाज भी नहीं किया जाता है।'
उन्होंने आगे बताया कि 'कई बार डॉक्टरों के लिए दिल की बीमारियों के कारणों को पता लगाना मुश्किल होता है। इसकी सबसे बड़ी वजह है मनोवैज्ञानिक परेशानियों और दिल से जुड़ी बीमारियों का एक साथ मौजूद होना और इलाज के दौरान उन्हें नजरअंदाज करना।'
सेलानो ने कहा कि 'इस विषय में प्रयास कर उन लोगों की पहचान कर सकते हैं जिनमें हार्ट अटैक की संभावना अधिक होती है।' अवसाद और चिंता के साथ-साथ दिल की बीमारी से पीड़ित लोगों में मेटाबॉलिक बदलाव ज्यादा होते हैं उनके लिए डाइट, व्यायाम और मैडिटेशन का रूटीन बना पाना मुश्किल होता है। साथ ही स्टडी में ये भी पाया गया है कि 'हल्के अवसाद से पीड़ित एक स्वस्थ व्यक्ति में भी दिल की बीमारियां होने की संभावना होती है।'
सेलानो ने इस स्टडी से यह निष्कर्ष निकाला है कि 'दिल की बीमारी और अवसाद के बीच के संबंधों को समझने की जरूरत है। ताकि इससे पीड़ित लोगों के स्वास्थय में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सके।'
आज अवसाद को एक गंभीर बीमारी के रूप में स्वीकर कर लिया गया है। अनेक सैलेब्रिटी अपने अवसाद के अनुभवों को साझा कर रहे हैं। बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन डिप्रेशन पर एक साल का कैंपेन लीड कर रहा है, Let's Talk। इस कैंपेन का उद्देश्य है कि दुनिया भर में जितने भी लोग डिप्रेशन का शिकार है उनकी सहायता करना।
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WHO के अनुमानों के मुताबिक दुनियाभर में 30 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन से ग्रस्त हैं। WHO के मुताबिक डिप्रेशन से ग्रस्त लोगों की संख्या 2005 से 2015 के दौरान 18 फीसदी से अधिक बढ़ी है।
अवसाद, एक ऐसी बीमारी जिससे आज हजारों की संख्या में लोग पीड़ित हैं। पर अवसाद या डिप्रेसन का सबसे डरावना चेहरा यह है कि लोग यह जान ही नहीं पाते कि वह इस मानोवैज्ञानिक बीमारी से पीड़ित हैं। हमारा बदलता लाइफस्टाइल इसकी एक बड़ी वजह है कि सभी उम्र के लोग आज इस बीमारी से पीड़ित हैं। भारत में आज लोगों को अवसाद के कारणों और इलाज के बारे में जागरूक किया जाना बेहद जरूरी है।
चिंता और तनाव से बचना, अपने में खुश रहना, पॉजिटिव रहना, अच्छा खाना, योग, घूमना, लोगों से खुल कर बात करना तो अवसाद से बचने और इलाज में अहम भूमिका निभाते ही हैं। पर आज के समय में इन सब में सबसे अहम है खुद से प्यार करना। हाँ, खुद से प्यार करना वो भी बिना किसी शर्त के। आप के आस-पास मौजूद वर्चुअल दुनिया हर समय आपको सिखाती है- खुद में कमियां ढूढ़ना, दुनिया दोस्त भूल के अपने आप में सीमित हो जाना, दूसरों से नफरत करना और आपके पास जो कुछ भी है उसमें खुश न रहना। वह आपको परफेक्ट लाइफ का सपना दिखाती है बिना यह बताए कि रियल लाइफ में ऐसा कभी कुछ संभव नहीं है। जरूरी है कि आप ऐसी किसी भी बात पर विश्वास करने से बचें और अपने अंदर मौजूद हर कमी को स्वीकार करें, उनसे प्यार करें।
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