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जानिए क्या है बिसरा, क्यों कहते हैं इसे 'मौत की रिपोर्ट' और क्यों रखा जाता है इसे सुरक्षित

बिसरा का रासायनिक परीक्षण करने के बाद मौत की वजह स्पष्ट हो पाती है.

Updated on: 11 Jun 2019, 07:05 AM

नई दिल्ली:

किसी व्यक्ति की अचानक हुई मौत के कारणों का पता लगाने के लिए मृतक के शरीर के कुछ आंतरिक अंगों को सुरक्षित रखा जाना इसे ही बिसरा कहते हैं. बिसरा का रासायनिक परीक्षण करने के बाद मौत की वजह स्पष्ट हो पाती है. विसरा सैम्पल की जांच फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री में होती है. किसी व्यक्ति का शव देखने पर उसकी मृत्यु संदिग्ध लगे या उसे जहर देने की आशंका जताई जा रही हो तो उस व्यक्ति का विसरा सुरक्षित रख लिया जाता है. बाद में जांच के बाद स्थिति का पता लगाया जाता है. सरल शब्दों में कहा जाए तो मानव शरीर के अंदरुनी अंगों फेफड़ा, किडनी, आंत को बिसरा कहा जाता है."

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इन मामलों में होती है बिसरा की जांच

अगर गाड़ी से कुचल कर किसी की मौत हो जाए या किसी की गोली मारकर हत्या कर दी जाए तो शव का पोस्टमॉर्टम होता है. ऐसे मामले में आमतौर पर विसरा जांच की जरुरत नहीं होती, लेकिन डेड बॉडी देखने के बाद अगर मौत संदिग्ध लगे यानी जहर देने की आशंका हो तो विसरा की जांच की जाती है.

• डेड बॉडी अगर नीली पड़ी हुई हो, जीभ, आंख, नाखून आदि नीला पड़ा हुआ हो या मुंह से झाग आदि निकलने के निशान हों तो जहर की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. ऐसी स्थिति में पोस्टमॉर्टम के बाद डेड बॉडी से विसरा प्रिजर्व किया जाता है.

• हाई कोर्ट के सरकारी वकील नवीन शर्मा बताते हैं कि विसरा प्रिजर्व करने के दौरान डेड बॉडी से लीवर, स्प्लीन और किडनी का पार्ट रखा जाता है. साथ ही शरीर में मौजूद फ्लूड आदि को प्रिजर्व किया जाता है.

• पुलिस अधिकारी को लगता है कि विसरा प्रिजर्व करने की जरुरत है तो हॉस्पिटल के टॉक्सिकोलॉजिकल डिपार्टमेंट द्वारा विसरा प्रिजर्व किया जाता है और फिर उसे जांच के लिए लैब भेजा जाता है. आमतौर पर रिपोर्ट तैयार करने में तीन हफ्ते का वक्त लगता है, लेकिन लैब की कमी और बड़ी संख्या में सैंपल होने के कारण रिपोर्ट आने में छह-छह महीने लग जाते हैं.

• हालांकि पुलिस इस दौरान छानबीन कर चार्जशीट दाखिल कर सकती है और चार्जशीट में विसरा रिपोर्ट आना बाकी लिख देती है, लेकिन विसरा रिपोर्ट आने के बाद ही चार्ज पर बहस होती है. विसरा रिपोर्ट आने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि मौत जहर से हुई है या नहीं. सीआरपीसी की धारा-293 के तहत एक्सपर्ट व्यू एडमिशिबल एविडेंस होता है यानी विसरा रिपोर्ट एक्सपर्ट व्यू होती है और यह मान्य साक्ष्य है.

• बचाव पक्ष चाहे तो विसरा रिपोर्ट तैयार करने वाले एक्सपर्ट को कोर्ट में पेश होने के लिए अर्जी दे सकता है और कोर्ट द्वारा बुलाने के बाद उनके साथ जिरह कर सकता है.

" किस अंग को कितना सुरक्षित रखना है यह भी निश्चित होता है. मृतक के शरीर से 100 ग्राम खून, 100 ग्राम पेशाब, 500 ग्राम लीवर सुरक्षित रखा जाता है. इसे सेचूरेटेड सॅाल्ट सोल्यूशन में सुरक्षित रखा जाता है, जिससे बाद में जांच करने पर सही रिपोर्ट पता किया जा सके और किसी और अन्य जहर के लक्षण न आएं."

बिसरा को तीन शीशे के जारों में सुरक्षित रखा जाता है, एक में जितने भी पाचन तंत्र हैं उन्हें रखते हैं, दूसरे में ब्रेन, किडनी, लीवर और तीसरे में ब्लड को रखा जाता है. देश में प्वाइजनिंग इंफार्मेशन सेंटर बहुत कम हैं, जहां यह डाटा बनाया जा सके की देश में कितने लोग जहर खाने से मर रहे हैं. यूपी में तो एक भी ऐसा सेंटर नहीं है. मेडिकल कॉलेज में भी फॉरेंसिक साइंस लैब नहीं होता है, जहां यह पता लगाया जा सके कि व्यक्ति की मौत किन कारणों से हुई है. जिस वजह से यह पता लगा मुश्किल होता कि कितनी मात्रा में किस जहर से व्यक्ति की मौत हुई है.