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General Election 2019: न कार्यकर्ता न जनाधार, UP में कैसे होगा कांग्रेस का बेड़ा पार

अगर पिछले तीन चुनावों की बात करें तो राज्‍य में कांग्रेस से वोटरों ने दूरी बना ली है.

Updated on: 16 Jan 2019, 09:55 AM

नई दिल्‍ली:

उत्‍तर प्रदेश में राजनीति ने एक बार फिर करवट ली है. कुछ ही महीने बाद होने जा रहे लोकसभा चुनाव (General Election 2019) के लिए राज्‍य में SP-BSP ने गठबंधन (Gathbandhan) कर लिया है. उधर, पीएम मोदी (Narendra Modi) को चुनौती देने की तैयारी कर रही कांग्रेस (Congress) भी यूपी की सभी सीटों पर अकेले चुनाव (Lok sabha Election 2019) लड़ने का ऐलान कर दिया है. लेकिन कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता है उसका खोता जनाधार.अगर पिछले तीन चुनावों की बात करें तो राज्‍य में कांग्रेस से वोटरों ने दूरी बना ली है.

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2012 में हुए विधानसभा चुनाव में 403 में से 355 सीटों पर पार्टी ने चुनाव लड़ा और 28 सीटें जीतीं. इस चुनाव में 31 सीटों पर दूसरे स्‍थान पर रही और कुल पड़े वोट का 11.6% मत ही उसे मिले.
इसके दो ही साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में मोदी की सुनामी में कांग्रेस का वोट शेयर 11.6 से घटकर 7.5% रह गया. पार्टी राज्‍य की 80 लोकसभा सीटों में से 67 पर चुनाव लड़ी और सिर्फ रायबरेली और अमेठी की जीत सकी. दूसरे नंबर पर भी पार्टी केवल दो ही सीटों पर रही उसमें से भी एक सीट कुशीनगर की थी.

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इसके बाद भी कांग्रेस का पतन जारी रहा. 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी 403 सीटों में 114 पर चुनाव लड़ी. राहुल गांधी को अखिलेश का साथ भी रास नहीं आया और केवल 7 सीटें ही कांग्रेस जीत पाई. 33 सीटों पर दूसरे स्‍थान पर रही लेकिन वोट रह गए 6.25%.

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2012 के चुनावों की बात करें तो समाजवादी पार्टी ने सबको चौंकाते हुए 403 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में अकेले ही 224 सीटें झटक ली थीं. BSP महज 80 सीटों पर सिमट गई थी. BJP को सिर्फ 47 सीटों से संतोष करना पड़ा था. कांग्रेस यहां कोई चमत्कार नहीं कर सकी और 28 सीटें जीतकर चौथे नंबर पर रही.

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इससे पहले 2007 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी 206 सीटें जीतकर अकेले अपने दम पर सरकार बनाने में सफल रही. मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली SP को सिर्फ 97 सीटें मिलीं. कांग्रेस को 22 तो BJP को 51 सीटों से ही संतोष करना पड़ा.

यूपी कांग्रेस पर पड़ा सबसे ज्‍यादा इसका असर

दरअसल कांग्रेस पार्टी 1989 से एक के बाद गि‍रते प्रदर्शन से यूपी कांग्रेस हाशि‍ए पर चलती चली गई. केंद्र में बदलती सरकारों के समीकरण का सबसे ज्‍यादा असर यूपी कांग्रेस पर पड़ा. जब-जब केन्‍द्र की राजनीति से करवट ली, प्रदेश की राजनीति भी वि‍कास के वादे से दूर कास्‍ट पॉलि‍टि‍क्‍स पर आकर टि‍क गई. इस बार सपा-बसपा के गठजोड़ और बीजेपी के आगे कांग्रेस की बुरी गत तय है. फिर भी कांग्रेस अकेले दम पर चुनाव लड़ने को तैयार है. यूपी में इससे पूर्व दो बार प्रभारी की जि‍म्‍मेदारी संभाल चुके गुलाम नबी आजाद पार्टी के खोये हुए जनाधार को वापस पाने के लि‍ए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं.