तब उछला था ये नारा, 'मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम'
1992 में बाबरी विघ्वंस के बाद पूरे देश में राम लहर चल रही थी. बीजेपी राजनीति में छलांगें लगाने की कोशिश में थी
नई दिल्ली:
1992 में बाबरी विघ्वंस के बाद पूरे देश में राम लहर चल रही थी. बीजेपी राजनीति में छलांगें लगाने की कोशिश में थी लेकिन कांशीराम-मुलायम की जोड़ी ने बीजेपी को शिकस्त दी. जब पहली बार कांशीराम और मुलायम सिंह ने हाथ मिलाया था, उस वक़्त नारा लगा था 'मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम'.लगभग उसी तरह का दृश्य आज बन रहा है. काफ़ी कुछ बदला भी है, कांशीराम नहीं है, मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) नहीं है, अब उनकी नई पीढ़ी है, मायावती (Mayawati) हैं और अखिलेश (Akhilesh Yadav) हैं.
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बता दें शनिवार को बसपा सुप्रीमो मायावती व सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रदेश की 38-38 सीटों पर साथ होकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. गठबंधन व सीटों के समीकरण का ऐलान करते हुए मायावती ने आज से 25 साल पहले हुए गेस्ट हाउस कांड का चार बार जिक्र किया. कहा कि, जनता की भलाई व देशहित में गेस्ट हाउस कांड को भुलाकर सपा के साथ गठबंधन किया गया है.
लोकसभा चुनाव में दोनों पहली बार गठबंधन करके बीजेपी से लड़ेंगे. अयोध्या का विवादित ढांचा गिरने के बाद बीजेपी की हवा रोकने के लिए सपा के तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह यादव और बसपा सुप्रीमो कांशीराम ने गठबंधन किया था. वैसे इस गठबंधन के पीछे 1991 में लोकसभा चुनाव के दौरान मुलायम और कांशीराम के बीच हुई दोस्ती की भी भूमिका थी. बहरहाल 1993 में बसपा का गठन हुए तब नौ वर्ष ही हुए थे. सपा तो नई-नई बनी थी. मुलायम सिंह यादव ने चंद्रशेखर से नाता तोड़कर समाजवादी पार्टी का गठन किया था.
सपा ने 264 सीटों पर चुनाव लड़ा था और बसपा ने 164 सीटों पर. सपा को 109 सीटों पर जीत मिली जबकि बसपा को 67 पर. BJP को अकेले 177 सीटों पर जीत मिली थी. 2 जून 1995 को स्टेट गेस्ट हाउस कांड ने दोनों का गठबंधन तोड़ दिया और मुलायम सरकार गिर गई थी.
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राजनितिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा-बसपा के एक हो जाने से उत्तर प्रदेश में बीजेपी को बहुत ही तगड़ा मुक़ाबला मिलने वाला है. पिछले साल हुए उपचुनावों में दोनों पार्टियों के बीच औपचारिक गठबंधन नहीं था, फिर भी दोनों की जोड़ी कामयाब रही. इस स्थिति से सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस को फायदा होगा और बीजेपी को नुक़सान.
कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में जो सवर्ण वोटर है, वो सपा और बसपा, दोनों को पसंद नहीं करता है. ऐसे में सभी 80 सीटों पर कांग्रेस का अकेले लड़ना बीजेपी के सामने मुश्किल पैदा करेगा. रही बात कांग्रेस की तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पैर जमीन से उखड़े हुए हैं. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में वो किसी तरह से दो सीटें ही जीत पाई थी.
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मायावती और अखिलेश के गठबंधन की घोषणा के बाद दोनों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वो चुनावों में अपना वोट एक-दूसरे को दिला पाए. बसपा के लिए ऐसा करना आसान होगा, पर सपा के लिए मुश्किलों भरा. सच पूछिए तो मायावती वोट ट्रांसफर कराने में माहिर हैं. किसी भी चुनाव में जब भी बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन किसी से हुआ, तो वो अपना वोट बैंक पूरा का पूरा सहयोगी दल को ट्रांसफर करवा देती थीं. 2019 के चुनाव में समाजवादी पार्टी को फायदा ज्यादा होगा.
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बसपा के साथ ये है कि मायावती का आदेश उनके वोट बैंक के लिए 'बह्म वाक्य' है. बहनजी ने कह दिया तो उनके वोटर सुबह उठेंगे, मुंह धोएंगे और नास्ता करने से पहले वोट डाल कर चले आएंगे. लेकिन मायावती का फायदा ये है कि उनके पास 22 फीसदी वोट हर समय मौजूद रहता है, अगर पांच फीसदी वोट भी उन्हें मिल जाता है तो उनकी स्थिति बहुत अच्छी हो जाएगी.
मुसलमान किसके तरफ
गठबंधन के बाद मुसलमान वोटरों के लिए दुविधा की स्थिति है नहीं. उन्हें बीजेपी को हराने के लिए वोट देना है और बीजेपी को हराने वाला एक बड़ा गठबंधन राज्य में आ गया है.कांग्रेस से उनकी दूरी 1992 के बाद से बनी हुई है. वक़्त के साथ यह दूरी थोड़ी मिटी भी है तो वह चुनावों में बहुत काम नहीं कर पाएगी.
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