विधानसभा चुनाव 2018: मायावती के एक ऐलान से क्या कांग्रेस को लग सकतें तीन-तीन झटके, पढ़ें क्यों
विपक्ष को एंटी इनकंबेसी का फायदा मिलने की उम्मीद खुद विपक्ष लगाए बैठा है. बीजेपी को कहीं कहीं पर दिक्कतें होने के आसार व्यक्त किए जा रहे हैं.
नई दिल्ली:
आगामी कुछ महीनों में देश के चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. संभव है कि तेलंगाना में भी चुनाव साथ ही करा लिया जाए. ऐसे में चुनावी सरगर्मी तेज हो चकुी है. राजनीतिक दल अपनी अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कमर कस चुके हैं. गठबंधन के लिए प्रयास तेज किए जा रहे हैं ताकि विपक्षी को पटखनी दी जा सके. बड़े राजनीतिक दलों के कद्दावर नेताओं ने राज्यों में दौरा शुरू कर दिया है. साथ ही लोगों से जनसंपर्क कर उन्हें अभी से अपने लिए वोट करने के लिए समझाने का काम चालू हो चुका है.
तीन राज्यों में बीजेपी की सरकार
मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना में चुनाव होने हैं. 2018 के अंत में जिन 4 राज्यों में चुनाव तय माना जा रहा है उसमें मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ और मिजोरम में हैं. इनमें से तीन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janata Party BJP) की सरकार है. वहीं मिजोरम में कांग्रेस की सरकार है. मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान हैं. चौहान 15 सालों से राज्य में सत्ता पर काबिज हैं. इतना ही नहीं, छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी (BJP) 15 सालों से सत्ता में है. वहीं, राजस्थान में बीजेपी सत्ता में हैं. यहां पर वसुंधरा राजे की सरकार है. पिछले चुनाव में कांग्रेस को हराकर बीजेपी सत्ता पर काबिज हुई थी.
कांग्रेस को एंटी इनकंबेंसी का सहारा
साफ है कि तीनों राज्यों में बीजेपी सत्ता में है. विपक्ष को एंटी इनकंबेसी का फायदा मिलने की उम्मीद खुद विपक्ष लगाए बैठा है. बीजेपी को कहीं कहीं पर दिक्कतें होने के आसार व्यक्त किए जा रहे हैं. जहां एक ओर बीजेपी फिर सत्ता में वापसी के लिए प्रयास कर रही है, वहीं कांग्रेस राहुल गांधी की अध्यक्षता में इन राज्यों में सत्ता पर पहुंच कर राहुल गांधी के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम पद का रास्ता देख रही है. कांग्रेस को उम्मीद है कि इन विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हराने के साथ ही 2019 के चुनाव का रास्ता भी साफ हो जाएगा और राहुल गांधी की बतौर राष्ट्रीय नेता छवि में भी सुधार होगा. इससे यह भी साफ हो जाएगा कि लोगों को राहुल गांधी बतौर पीएम कांग्रेस पार्टी की ओर घोषित प्रत्याशी के रूप में लोगों को स्वीकार हैं या नहीं.
क्या हो सकते थे समीकरण
इस सबके बीच, राजनीति में चुनावी समीकरण काफी महत्वपूर्ण होते हैं. विपक्ष राष्ट्रीय स्तर पर पीएम नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाने की कोशिश में लगा हुआ है. ऐसे में जहां यह प्रयास कुछ हद तक सफल होते दिखाई दे रहा था, वहीं अब बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) की प्रमुख मायावती (Mayawati) ने साफ कर दिया है कि वह मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेंगी. वैसे इससे पहले ही मायावती छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी से अलग हुए अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान कर चुकी हैं और बीएसपी अजित जोगी की पार्टी के साथ राज्य में चुनाव लड़ेगी.
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कर दिया बड़ा ऐलान
बीएसपी (BSP) प्रमुख मायावती ने बुधवार को ही साफ कहा कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होगा. इसके लिए उन्होंने कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार बताया. उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी बसपा से गठबंधन चाहते थे, लेकिन दिग्विजय सिंह के चलते यह गठबंधन नहीं हो पाया है. मायावती ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कहा, 'जैसा उनकी पार्टी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, वैसा ही वह अन्य राज्यों में भी करेगी.' उन्होंने कहा, 'कांग्रेस ने गुजरात चुनाव परिणाम से कोई सबक नहीं लिया है. पिछले परिणामों से साफ पता चलता है कि जहां बीजेपी का सीधा मुकाबला कांग्रेस से रहा, वहां बीजेपी ने आसानी से जीत दर्ज की.'
बीएसपी का कांग्रेस को लेकर आकलन
इसी बयान के साथ ही मायावती ने यह भी साफ कर दिया है कि वह मानती हैं कि जहां भी कांग्रेस पार्टी अकेले अपने दम पर बीजेपी से मुकाबला करने उतरी है वहां पर कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी है. पिछले कई राज्यों में जहां भी बीजेपी सत्ता में रही और कांग्रेस ने अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ा वहां अभी तक कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी इस बार गठबंधन पर जोर दे रही है.
अब समझते हैं कि मायावती का यह ऐलान आगामी होने वाले तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव पर कितना असर डाल सकता है. मध्य प्रदेश, छ्त्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस पहले अकेले अपने दम पर सत्ता में रही है. यही कारण है कि पार्टी फिर इस बार सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही है. पार्टी को राजस्थान में हर बार की तरह लोगों के बदलते मूड का सहारा है तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में एंटी इनकंबेंसी का सहारा है.
2013 में मध्य प्रदेश में क्या रही स्थिति
जानकारी दे दें कि 2013 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 230 विधानसभा सीटों में केवल 58 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था जबकि बीएसपी को चार सीटें मिली थीं. यहां पर बीएसपी का वोट शेयर 7 प्रतिशत के करीब था जबकि कांग्रेस पार्टी को 36.38 प्रतिशत वोट मिले थे. राज्य में 34 सीटें एससी/एसटी के लिए आरक्षित हैं. यही कारण है कि बीएसपी को जहां अपनी सीटें बढ़ने की पूरी उम्मीद दिखाई दे रही है वहीं कांग्रेस को बीएसपी के साथ गठबंधन कर बेहतर परिणाम की उम्मीद थी. बीजेपी को राज्य में सर्वाधिक मत प्रतिशत मिला था. यहां पर पार्टी को 44.88 प्रतिशत वोट मिले थे.
छत्तीसगढ़ में कैसा रहा था माहौल
उधर, छत्तीसगढ़ में 2013 के चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी में मत प्रतिशत के मामले में केवल 0.7 प्रतिशत का अंतर ही था, लेकिन सीटों में इस अंतर ने भारी विभाजन किया और बीजेपी सत्ता में आई और कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल ही बन पाई. माना जा रहा है कि इस बार चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस में कांटे की टक्कर होगी. यही वजह है कि बीएसपी के साथ गठबंधन को लेकर कांग्रेस ज्यादा संजीदा नहीं थी और बीएसपी को समय रहते अजित जोगी के साथ गठबंधन का ऐलान करना पड़ा. 2013 में यहां पर बीएसपी का एक विधायक बना और एक अन्य सीट पर उनका प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहा था. 90 सदस्यों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा के लिए चुनावों में कुछ स्थानीय दल भी दखल रखते हैं. इनमें जीजीपी पार्टी और इसके नेता हीरा सिंह मरकाम के साथ कांग्रेस ने बातचीत भी की है. इन सबके साथ कांग्रेस चुनाव में कुछ कर गुजरने की उम्मीद किए बैठी थी. पिछले चुनाव में करीब 12 सीटें ऐसी थी जहां पर बीएसपी को 1500 से लेकर 17000 तक वोट मिले थे. छत्तीसगढ़ के 2013 के चुनाव में बीजेपी को 41 प्रतिशत वोट मिले थे वहीं कांग्रेस को 40.3 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि बीएसपी को केवल 4.3 प्रतिमत मिले थे.
राजस्थान में क्या कांग्रेस आएगी सत्ता में
जहां तक राजस्थान की बात है, 2013 में 200 सदस्यों वाली विधानसभा में बीजेपी के पास 163 विधायक चुने गए और कांग्रेस पार्टी ने इससे पहले तक की सबसे कम सीटें 21 पर विजय हासिल की. यहां पर भी बीएसपी 3 सीट, एनपीपी चार और एनयूजेडपी के हिस्से में दो सीटें आई थीं. यहां पर कांग्रेस पार्टी यह उम्मीद किए बैठी है कि यहां पर एंटी इनकंबेंसी के चलते वह सत्ता में वापसी कर लेगी. राज्य में 17 फीसदी एससी आबादी है और 34 सीटें आरक्षित हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 45.2 प्रतिशत, कांग्रेस को 33.1 प्रतिशत और बीएसपी को 3.4 प्रतिशत मत मिले थे.
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