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बीजेपी ने 'चुपेचाप कमल छाप' से दीदी के 'चुपेचाप फूल छाप' को बंगाल में दी मात

बीजेपी ने बंगाल में 40 प्रतिशत वोट हासिल कर 18 सीटें जीत कर वह कर दिखाया था, जो बाकी राजनीतिक पार्टियों के लिए असंभव सा लग रहा था.

Updated on: 25 May 2019, 10:01 AM

highlights

  • बीजेपी ने 40 प्रतिशत वोट के बलबूते हासिल की बंगाल में 18 सीटें.
  • टीएमसी के वोट शेयर से महज 3 फीसदी ही दूर है बीजेपी.
  • ममता पर भारी पड़ी उनकी ही जिद और घमंड.

नई दिल्ली.:

ममता बनर्जी का बंगाल का किला अभेद माना जा रहा था. ऐसे में जब बीजेपी पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने दावा किया कि लोकसभा चुनाव 2019 (2019 Loksabha Elections ) में बीजेपी राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 23 सीटों को जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है, तो किसी ने भी उन्हें गंभीरता से नहीं लिया. हालांकि अमित शाह (Amit Shah) अपने सिपाहसालार महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और शिव प्रकाश के साथ अपने लक्ष्य की प्राप्ति में लगे रहे. ऐसे में जब 2019 लोकसभा चुनाव के परिणाम आए तो सिर्फ बीजेपी को छोड़कर सभी अचंभित रह गए. बीजेपी ने बंगाल में 40 प्रतिशत वोट हासिल कर 18 सीटें जीत कर वह कर दिखाया था, जो बाकी राजनीतिक पार्टियों के लिए असंभव सा लग रहा था.

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चुपेचाप कमल छाप की रणनीति रंग लाई
बंगाल में लाल झंडे के 34 साल के शासन, जिसमें ज्योति बसु (Jyoti Basu) के 23 साल (1977 से 2000) को अंत करने के लिए ममता बनर्जी को दशकों का समय लगा. ममता ने कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल पार्टी के गठन के साथ ही बंगाल में नारा दिया 'चुपेचाप फूल छाप' (चुपचाप फूल को वोट दो). इस नारे के साथ ही टीएमसी ने 2011 में लाल झंडे का अभेद माना जा रहा किला ध्वस्त कर दिया. ऐसे में टीएमसी (TMC) के किले को ध्वस्त करना, वह भी इतनी जल्दी, आसान नहीं था. ऐसे में बीजेपी ने ममता की तर्ज पर नारा दिया 'चुपेचाप कमल छाप' यानी चुपचाप कमल को वोट करो का संदेश दिया.

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नतीजा देख दंग है सभी
राज्य की कुल 42 सीटों में से बीजेपी (BJP) 40.25 वोट शेयर (Vote Share) प्राप्त कर 18 सीटें हासिल करने में सफल रही. इस तरह अगर देखें तो वोट शेयरिंग के मामले में बीजेपी तृणमूल कांग्रेस से महज 3 फीसदी ही पीछे हैं. गौरतलब है कि 43.28 प्रतिशत मत प्राप्त कर टीएमसी ने 22 सीटें जीती हैं. अब अगर इन आंकड़ों की तुलना 2014 से करें तो साफ है कि बीजेपी ने अभूतपूर्व सफलता हासिल की है. 2014 में महज 18 फीसदी मत प्राप्त कर बीजेपी 2 सीटें जीतने में सफल रही थी. यानी बीजेपी ने पांच सालों में ही अपने वोटों का प्रतिशत दोगुना और सीटों को नौ गुना कर लिया है. वोटों की इस लड़ाई में वाम दल और कांग्रेस कहीं पीछे छूट गए. यह भी कह सकते हैं कि पहली बार वाम दलों का खाता नहीं खुला तो कांग्रेस भी हाशिए पर आ गई. बंगाल में हाशिये पर जा चुकी लेफ्ट पार्टी सीपीआई को 1 फीसदी से भी कम और सीपीएम को 6.28 फीसदी वोट मिले. वहीं कांग्रेस को सिर्फ 5 फीसदी वोटों से संतोष करना पड़ा.

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बीजेपी ने अपनाई सघन रणनीति
आंकड़ों के बीच ही बीजेपी के उत्थान (Winning Strategy) की कहानी छिपी हुई है. दूर की सोच अपनाते हुए बनाई गई गहन रणनीति, टीएमसी को मात देने के लिए टीएमसी-वाम दलों में ही टूट करा अपने खेमे में नेताओं को लाने की रणनीति अपनाई गई. यह कितनी सफल रही इसे ऐसे समझ सकते हैं. टीएमसी से दो बार के सांसद दिनेश त्रिवेदी को हार का मुंह देखना पड़ा. उन्हें पराजित करने वाले बीजेपी प्रत्याशी अर्जुन सिंह (Arjun Singh) भाटपारा से टीएमसी के विधायक थे, जिन्हें बीजेपी ने बराकपुर से टिकट दिया था. इसी तरह खगेन मुर्मू मालदा उत्तर से मैदान में थे, जिन्होंने कांग्रेस की सीट पर जीत हासिल की. वह पहले वाम पार्टी की ओर से विधायक थे. यानी वाम दलों और टीएमसी के ही नेताओं को अपने पाले में कर बीजेपी ने जीत का खाका खींचा.

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तुष्टीकरण की राजनीति पड़ी दीदी को भारी
बंगाली मानुष उत्तर भारतीयों (North Indian) की तरह कभी भी कट्टर नहीं माना गया. फिर भी ममता बनर्जी की तुष्टीकरण की राजनीति उन्हें बीजेपी के करीब ले आई. बीजेपी ने उन्हें अपने पाले में करने के लिए 'सॉफ्ट हिंदुत्व' का कार्ड खेला. बीजेपी ने ममता बनर्जी (mamta Banerjee) पर पक्षपात का आरोप लगाया. चाहे दुर्गा पूजा हो या फिर फिर सरस्वती पूजा. मूर्ति विसर्जन पर रोक और मुहर्रम को मिलने वाली छूट को लेकर उपजे विवाद को बीजेपी ने वहां सबसे बड़ी समस्या के तौर पर पेश किया और आरोप लगाया कि ममता बनर्जी सिर्फ एक समुदाय विशेष के लिए काम कर रही हैं. रामनवमी (Ramanavmi) की शोभा यात्रा हो या फिर प्रतिमा विसर्जन इस मुद्दे पर ममता के फैसले और जिद्द को बीजेपी ने हाई कोर्ट (High Court) तक में चुनौती दी जहां से ममता बनर्जी की छवि को गहरा धक्का पहुंचा. बीजेपी वहां के बहुसंख्यक हिन्दुओं में यह भरोसा कायम करने में कामयाब होने लगी की टीएमसी उनके खिलाफ पक्षपात वाला बर्ताव कर रही है और वो एक वर्ग विशेष को ज्यादा छूट देना चाहती है.

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अवैध बांग्लादेशियों मसले पर भी ममता को चोट
पश्चिम बंगाल (West Bengal) और कोलकाता में बांग्लादेश से आने वाले अवैध नागरिकों (मुस्लिम) को लेकर ममता बनर्जी का रुख हमेशा नरम, जबकि एनआरसी (NRC) को लेकर गरम. वहीं रोजगार की कमी और गरीबी से जूझ रहे बंगाल में बीजेपी ने वादा किया कि अगर वह सत्ता में आई तो बंगाल में भी एनआरसी लागू करेगी और सभी अवैध घुसपैठियों को देश से बाहर करेगी. पश्चिम बंगाल की जनता ने बीजेपी के इस वादे पर भरोसा किया और उन्हें झोली भरकर वोट (Voting Pattern) देने में कोताही नहीं बरती. यही नहीं, ममता बनर्जी ने बंगाल में एनआरसी का सख्त विरोध कर कहा कि राज्य में एनआरसी को कभी लागू नहीं होने देंगी. बीजेपी ने ममता बनर्जी के इस रुख पर आरोप लगाया कि वो कोलकाता और बंगाल में अवैध बांग्लादेशी (Illegal Bangladeshi) लोगों को बसाना चाहती हैं जो राज्य और देश के लिए खतरा होगा. बीजेपी को इससे फायदा मिला और न सिर्फ बंगाल में वो मजबूत हुई बल्कि अब ममता बनर्जी को सत्ता के मामले में भी टक्कर देती हुई नजर आ रही है.