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'सामना' के माध्यम से शिवसेना ने मोदी सरकार पर फिर बोला हमला, कहा- राम मंदिर के लिए कांग्रेस को दोष न दें

शिवसेना ने कहा- राम मंदिर का सवाल सर्वोच्च न्यायालय में है और उसी मंच पर राम मंदिर के सवाल को हल करेंगे, ऐसा प्रधानमंत्री मोदी को कहने की जरूरत नहीं थी.

Updated on: 31 Jan 2019, 10:18 AM

नई दिल्ली:

शिवसेना ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर हमला बोला है. सामना में लिखे लेख में शिवसेना की ओर से कहा गया है कि लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहा है, वैसे-वैसे राम मंदिर का मामला गरमाने लगा है. केंद्र सरकार ने राम जन्मभूमि विवाद मामले में सर्वोच्च न्यायालय में नई अर्जी दाखिल की है. विवादित 4.77 एकड़ की जगह को छोड़कर 67 एकड़ जमीन राम जन्मभूमि न्यास को दी जाए. सरकार को चुनाव के मुहाने पर जिस तरह की समझदारी सूझी है वो 4 वर्ष पहले सूझी होती तो आज का एक कदम सौ कदम आगे गया हुआ दिखाई देता लेकिन हमारे देश में राम से लेकर भूख तक हर निर्णय वोट बैंक और चुनाव को सामने रखकर लिया जाता है. मूलत: अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में ‘कांग्रेस’ की रुकावट है, ऐसा बारंबार कहना पहले बंद किया जाना चाहिए. राम मंदिर का सवाल सर्वोच्च न्यायालय में है और उसी मंच पर राम मंदिर के सवाल को हल करेंगे, ऐसा खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा. इसे सार्वजनिक रूप से कहने की जरूरत नहीं थी.

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लेख में शिवसेना ने कहा, देश के सर्वोच्च न्यायाधीश के पद पर अहमद पटेल या मल्लिकार्जुन खरगे नहीं बैठे हैं या अयोध्या मामले में जो खंडपीठ बैठी है या बैठाई गई है, उनकी नियुक्ति प्रियंका गांधी ने नहीं की है. खंडपीठ के न्यायमूर्ति एक तो इस मामले से खुद को दूर रख रहे हैं या फिर सुनवाई के दौरान अनुपस्थित हो रहे हैं. इसलिए राम मंदिर का क्या होगा, इसे कोई नहीं बता सकता. इस मामले को और कितने समय तक इसी तरह रखा जाएगा? राम मंदिर निर्माण के लिए सीधे एक अध्यादेश लाओ और देश को दिया गया वचन पूरा करो, ऐसी हमारी मांग थी और आज भी है लेकिन सरकार को ऐन चुनाव में राम मंदिर का भर्ता बनाना है और उसके लिए न्यायालयीन दरबार को चुना गया है. वह विवादित न होनेवाली जमीन राम जन्मभूमि न्यास को दो, ऐसा अब सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा है. उसके लिए पहले के एक निर्णय का हवाला सरकार की ओर से दिया गया है.

लेख में कहा गया है कि सरकार ने इस्माइल फारूकी मामले में दिए गए निर्णय का हवाला दिया है. इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने यदि केंद्र द्वारा अधिग्रहित की गई संपत्ति मूल मालिक को वापस करनी होगी तो ऐसा किया जा सकता है, ऐसा कहा है. 0.313 एकड़ विवादित क्षेत्र को छोड़कर अन्य क्षेत्र मूल जगह के मालिक को वापस करो, ऐसा संविधान पीठ का भी मत है, ऐसा सरकार की तरफ से अब कहा गया है. नई याचिका में 2003 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में फेरबदल करने की मांग की गई है. इसलिए न्यायालय में नया खेल क्या होता है? इसे देखना होगा. इस मामले में 14 दावे फिलहाल प्रलंबित हैं.

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जहां बाबरी नाम का कलंक था, वो जगह सिर्फ 2.77 एकड़ में है पर उसके इर्द-गिर्द जो 67 एकड़ जमीन है, उस पर किसी भी तरह का कोई विवाद न होने के कारण वहां मंदिर निर्माण का कार्य शुरू किया जा सकता है. 67 एकड़ में राम मंदिर परिसर का निर्माण करते समय जो 2.77 एकड़ विवादित जमीन है, वो जगह अपने आप राम मंदिर की परछार्इं में आ जाती है. बाबरी गिराकर वहां शिवसैनिकों ने मंदिर का झंडा लहराया है तथा प्रभु राम का मंदिर वहां कच्चे स्वरूप में खड़ा है. मतलब वहां बाबर के मौजूदा बच्चे आकर कब्जा करेंगे, ऐसी कोई संभावना नहीं है इसलिए 2.77 एकड़ राम मंदिर का परंपरागत अधिकार है. वो बरकरार रहता है और संपूर्ण अयोध्या राम की थी इस पर मुहर लगती है.

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अयोध्या का मामला कश्मीर जैसा न बने. कश्मीर पाक की सीमा पर है मगर अयोध्या में ऐसा नहीं है। 2.77 एकड़ के विवाद पर किसी को याचिकाओं का पटाखा सर्वोच्च न्यायालय में फोड़ते बैठना है तो वे खुशी से फोड़ते रहें लेकिन 67 एकड़ भूमि कानूनन राम जन्मभूमि न्यास की है. उस पर मंदिर परिसर निर्माण का काम शुरू हो. लोकसभा चुनाव को सामने रखकर सरकार ये सवाल हल कर रही होगी तो उन्हें यहां से ही हाथ जोड़कर दंडवत! संघ के नेता अलग ही मन:स्थिति में हैं. साधु-संत अब राम मंदिर मामले की सुनवाई करनेवाले न्यायाधीशों के घरों पर हमला करें, ऐसा संघ के नेता कहते हैं. इसकी बजाय प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तथा भाजपा सांसदों से जवाब क्यों नहीं मांगते?