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भैय्या राहुल नहीं होते, तो स्मृति अमेठी आतीं क्या ? भैय्या अमेठी में हर चीज गांधी फैमिली ही लाई है।

सालों बाद आज जहां बहुत से शहरों में 'विकास' शब्द जमीनी हकीकत में बदला है, वही अमेठी में आज भी यह जुबां पर ही घूम रहा है.

Updated on: 23 Apr 2019, 05:43 PM

नई दिल्ली.:

वीरान से पड़े स्टेडियम के बाहर से ही आपको अहसास हो जाता है कि अमेठी का विकास कागज पर काफी हो चुका है. दीवारों से एक मैदान को घेर कर कुछ कमरें बना कर इसको भी स्टेडियम बताया जा सकता है. कूड़े से भरे दरवाजे के बाहर ही एक कोने पर शीशे लगी खिड़की है, जिसके ऊपर लिखा है 'टिकट खिड़की'. लिखने वाला बहुत ही आशावादी रहा होगा, क्योंकि उसको यकीन रहा होगा कि इस स्टेडियम में आने के लिए आदमी टिकट खरीद ही लेगा. फिर बिना दरवाजे के अंदर जाने पर घास से भरा हुआ और दीवारों को हटा दें तो फिर किसी भी तरह से बंजर पड़े मैदान से अलग कुछ नहीं दिखता है.

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एक ही आदमी दिख रहा था. लंबा निक्कर पहने आदमी गाड़ी को अंदर आते हुए देख कर अचकचा गया और जल्दी से गाड़ी के पास आ गया. मैंने कहा कि क्रीड़ा अधिकारी हों, तो मुझे उनसे मिलना है. उसने कहा कि दूसरे नंबर के अधिकारी हैं. मै बुला कर लाता हूं. हम लोग बिल्डिंग के अंदर घुसे तो सामने ही चार-पांच कुर्सी पड़ी थीं. मैं उन पर बैठा तो अचानक सामने एक दरवाजा दिखा. शीशे का पारदर्शी दरवाजा उसके ऊपर एक पर्दा पड़ा हुआ था. लेकिन साइड़ से दिख रहे हिस्से से जो दिखा उसने कौतूहल जगा दिया. पर्दा हटा कर देखा तो सन्न रह गया. बेहद उजाड़ सा उखड़ा हुआ लकड़ी का फर्श और सालों पहले जलने वाली बड़ी लाइट्स और उस के ऊपर भी लाइट्स के स्टैड़. ये बैडमिंटन कोर्ट था. लाखों-करोड़ों की रकम से तैयार इस स्टैड में दस साल पहले खेलने वालों के कदम पड़े होंगे और इन दस सालों में राहुल गांधी ने अमेठी में विकास में काफी मेहनत की है.

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बैडमिंटन का और अमेठी का रिश्ता काफी पुराना है. इसकी कहानियां महल से शुरू होकर लखनऊ तक जाती हैं. उन कहानियों की याद थी तो अमेठी के इस बैडमिंटन कोर्ट की हालत देखकर मोदी भी याद आ गए. युवा भारत को लेकर दुख में डूबे राहुल हो या फिर स्मृति शायद ही कभी इस स्टेडियम में आए होंगे. गौरतलब है कि इस स्टेडियम में तरणताल भी है, लेकिन उसमें पानी नहीं है. कोच भी नहीं है. अमेठी स्पोर्ट्स हास्टल भी है. यहां हैंडबॉल और कबड्डी के खिलाड़ी तैयार होते हैं. हालांकि हालात बता रहे थे कि खिलाड़ी अपने दम से जो हासिल कर सकते हैं वह कर लें, नहीं तो इस वीआईपी इलाके के पास उनको देने के लिए कुछ नहीं है. ये अमेठी की वह कहानी है जिसको अक्सर देखने का समय आसानी से किसी को नहीं मिलता.

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राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने की दुआ मांगते लोग हर चौराहे और गली के नुक्कड़ में मिल जाते हैं. ये कोई नहीं कहानी नहीं है, लेकिन नया है तो हर जगह कोई न कोई स्मृति ईरानी को जिताता हुआ भी साथ आ खड़ा होता है. इस बार शहर में कम से कम दो-तीन होटल ऐसे बन गए हैं, जिनके पास एसी कमरा मिल सकता है। हालांकि ऐसा कोई होटल नहीं, जिसके मालिक का पार्टी से कोई रिश्ता न हो. राजनीति हर किसी की रग में है. बात करने में भी कोई हिचक नहीं. राजा साहब आज भी राजा साहब ही हैं. कोई पत्रकार से यह कहने से हिचकता नहीं कि राजा साहेब चाह लें तो जब चाहे इंसान को गायब करा दे. गायब भी ऐसा-वैसा नहीं, हवा को भी खबर न हो. लेकिन इसी के साथ उनकी कहानियां बीच बाजार सुनी जा सकती हैं.

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चालीस साल से गांधी परिवार के मोहपाश में आबद्ध अमेठी में विकास इतनी बार बोला गया शब्द है जितने वहां कंकड़ भी नहीं हैं. जब देश के बाकी लोगों के लिए विकास किताब में लिखा एक भारी-भरकम शब्द था, तब अमेठी में यह जुबां पर चढ़ा हुआ शब्द था. हालांकि सालों बाद आज जहां बहुत से शहरों में ये शब्द जमीनी हकीकत में बदल गए हैं, वही अमेठी में आज भी ये शब्द जुबां पर ही घूम रहा है.

(डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने विचार हैं. इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NewsState और News Nation उत्तरदायी नहीं है. इस लेख में सभी जानकारी जैसे थी वैसी ही दी गई हैं. इस लेख में दी गई कोई भी जानकारी अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NewsState और News Nation के नहीं हैं तथा NewsState और News Nation उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.)