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पायरेसी पर लगाम के लिए फिल्म जगत ने 'विशेष अदालत' की मांग की

फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया (FFI) के सदस्यों ने सरकार से फिल्म जगत को क्षति पहुंचाने वाले मुद्दों पर ध्यान देने का आग्रह किया है और उद्योग के लिए 'विशेष अदालत' बनाने की मांग की है.

Updated on: 13 Feb 2019, 04:45 PM

मुंबई:

फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया (FFI) के सदस्यों ने सरकार से फिल्म जगत को क्षति पहुंचाने वाले मुद्दों पर ध्यान देने का आग्रह किया है और उद्योग के लिए 'विशेष अदालत' बनाने की मांग की है. एफएफआई के महासचिव सुपरान सेन ने कहा, 'हम चाहते हैं कि सरकार विशेष अदालतें बनाकर पायरेसी की समस्या से निपटे. इन अदालतों में हमारी याचिकाओं को गंभीरता से लिया जाएगा.'

सुपराम ने कहा कि पायरेसी जैसे मुद्दे की शिकायतें लेकर हम कई बार पुलिस के पास गए लेकिन उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया. सुपराम के मुताबिक विशेष अदालत बनाने से मुद्दे के समाधान में निश्चित रूप से मदद मिलेगी.

सिनेमा टिकटों पर वस्तु एवं सेवा (जीएसटी) कर को कम करने के सरकार के फैसले की सराहना करते हुए एफएफआई ने कहा कि पायरेसी और सिंगल स्क्रीन को दोबारा से शुरू करने जैसे मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.

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एफएफआई के उपाध्यक्ष रमेश टेकवानी ने बताया, 'पायरेसी पर नियंत्रण के लिए सिनेमाटोग्राफी एक्ट में एंटी-कैमकोर्डिग प्रावधान सहित सरकार के फैसले को गंभीरता से लागू किए जाने की जरूरत है.'

घोषणा सही है, लेकिन लोगों से थिऐटर में प्रवेश से पहले अपना फोन जमा कराने को लिए कहकर फिल्मों की रिकॉर्डिंग रोकी जानी चाहिए, जिसपर उन्होंने कहा, 'एक अकेला फोन पूरी फिल्म शूट कर सकता है. लोग फिल्म को रिकॉर्ड करने के बहुत से तरीके भी जानते हैं.'

एफएफआई सदस्य साक्षी मेहरा और जी.डी मेहता ने कहा, 'शो की कमी और अप्रतिबंधित टिकट कीमतों के कारण प्रतिबंधित पहुंच से भारत में फिल्मों की पायरेसी बढ़ रही है.'

एफएफआई अध्यक्ष फिरदौस-उल-हसन ने कहा, 'भारतीय फिल्मों की पायरेसी ने सीमाएं लांघ दी हैं. बांग्लादेश में लोग हमारी फिल्में देखते हैं लेकिन वह वहां रिलीज ही नहीं होती. यह पायरेसी है. एफएफआई का हिस्सा होने के नाते हम केवल हमारी आवाज उठा रहे हैं, लेकिन असली काम सरकार को ही करना है.'

हसन ने कहा, 'बेहतर रिश्ते बरकरार रखने के लिए हम इंडो-बांग्ला फेडरेशन बना रहे हैं. बिना सरकार की सहायता हम इसे करने में सक्षम नहीं होंगे. सरकार का सहयोग बहुत जरूरी है.'

एफएफआई अध्यक्ष ने भारतीय फिल्म उद्योग के पुनवर्गीकरण पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा, 'कि सरकार फिल्म उद्योग को 'पाप उद्योग' की श्रेणी में रखती रही है. बीड़ी, तम्बाकू, शराब आदि उद्योगों की श्रेणी में रखते हुए ही इस पर कराधान की व्यावस्था बनाई जाती रही है. जीएसटी आने के बाद भी इसे 28 प्रतिशत की सबसे ऊंची स्लैब में रखा गया था. हाल में सरकार ने जीएसटी के मोर्चे पर राहत दी है. सिनेमा को 28 से 18 प्रतिशत की स्लैब में कर दिया गया, जो पूरे उद्योग के लिए हितकर कदम है. सरकार ने फिल्म उद्योग के लिए सिंगल विंडो क्लीयरिंग का प्रावधान करने और फिल्म पायरेसी पर अंकुश लगाने की इच्छा भी दिखाई है.'

फिरदौस ने कहा, 'एफएफआई अपनी स्थापना के समय से ही सरकार के साथ मिलकर काम करता रहा है. भारतीय सिनेमा को सु²ढ़ बनाने के अपने प्रयासों को मजबूत करने के लिए एफएफआई आगे भी भारत सरकार के साथ कदम मिलाकर चलने को तैयार है.'

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इसके अलावा फिरदौस ने पशु कल्याण बोर्ड में फिल्म बिरादरी के कम से कम दो लोगों को शामिल करने की वकालत की. उन्होंने कहा, 'फिल्मों में जानवरों का इस्तेलमाल भी बड़ा मुद्दा है. एफएफआई एनिमल वेलफेयर बोर्ड के महत्व को समझता है, मगर हरियाणा से केन्द्रित इसका संचालन, अनुपालन की प्रक्रिया को उलझा देता है. सालाना करीब 2000 फिल्में प्रमाणन के लिए बोर्ड के समक्ष जाती हैं.'

उन्होंने कहा, 'एफएफआई का प्रस्ताव है कि फिल्म बिरादरी के कम से कम दो सदस्यों को बोर्ड में शामिल किया जाए ताकि वे जानवरों के इस्तेमाल की प्रक्रिया को समझा सकें और देखभाल और कठिनाइयों का भी संज्ञान ले सकें. साथ ही हम यह भी चाहते हैं कि प्रत्येक क्षेत्र में सेंसर बोर्ड के साथ एक एनिमल वेलफेयर बोर्ड भी खोला जाए, ताकि सीबीएफसी प्रमाणपत्रों के साथ ही एनिमल वेलफेयर बोर्ड से भी प्रमाणपत्र मिल सके.'