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पहलाज निहलानी के बाद क्या गारंटी है कि सेंसर बोर्ड के कट पर आगे विवाद नहीं होगा

पहलाज निहलानी को सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है। उनकी जगह मशहूर गीतकार प्रसून जोशी सेंसर बोर्ड के नए अध्यक्ष बने है।

Updated on: 14 Aug 2017, 01:20 PM

नई दिल्ली:

सेंसर बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष पहलाज निहलानी एक ऐसा नाम जो किसी टेलर मास्टर या किसी सर्जन से ज्यादा कैंची चलाने के लिए सुर्खियों में रहे। बतौर सेंसर बोर्ड अध्यक्ष निहलानी ने कई फिल्मों के सीन पर कैंची चलाई लेकिन अब उनकी कैंची की धार थम गई है।

पहलाज निहलानी को सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है। उनकी जगह मशहूर गीतकार प्रसून जोशी सेंसर बोर्ड के नए अध्यक्ष बने है।

पहलाज निहलानी ने अपने कार्यकाल में इतनी फिल्मों पर कैंची चलाई की लोग उन्हें 'संस्कारी निहलानी' तक कहने लगे। कई लोग निहलानी को हटाए जाने के फैसले से बेहद खुश हैं। लोग सोशल मीडिया पर इसे फिल्म इंडस्ट्री के हित लिया गया फैसला मानते हैं।

फरवरी 2015 में आई 'बदलापुर' हो या मार्च 2015 में आई 'एनएच 10',  पहलाज निहलानी ने हर फिल्म पर कैंची चलाई। 'बॉम्‍बे वेलवेट' में बॉम्बे तो 'उड़ता पंजाब' में पंजाब शब्द पर आपत्ति जताई। 'हरामखोर' फिल्म में शिक्षक और स्टूडेंट के रिश्ते पर एतराज हुआ तो 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' की बोल्डनेस सब्जेक्ट और कंटेट उन्हें पसंद नहीं आई।

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इसमे कोई शक नहीं कि पहलाज निहलानी का कार्यकाल सर्वाधिक विवादो में रहा लेकिन इस बात की भी क्या गारंटी है कि यह आगे नहीं होंगा। ऐसा भी नहीं है कि यह विवाद निहलानी के समय ही हुआ है।

निहलानी से पहले लीला सैमसन का ‘मेसेंजर ऑफ़ गॉड’ फिल्म पर उठायी गयी आपत्ति भी काफी चर्चित रही थी। इस फिल्म में उन्होंने नायक द्वारा खुद को भगवान घोषित करने पर आपत्ति दर्ज कराते हुए अपने पद से त्यागपत्र तक दे डाला था।

यूपीए सरकार में अनुपम खेर को सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटाकर शर्मिला टैगोर को चेयरपर्सन बनाने की खबरें भी विवादों में रही। इससे पहले अनुपम खेर जब सीबीएफसी चीफ थे और उन पर गुजरात दंगे से सम्बंधित एक फिल्म के प्रमाणन को लेकर आरोप लगे थे।

फिल्में जिसे सेंसर बोर्ड की किच-किच का सामना करना पड़ा

बीहड़- द रिवाइन

यह फिल्म कृष्णा मिश्रा ने बनाई थी। फिल्म की कहानी गांव के मासूम लोगों की है जो राजनीतिक और समाजिक अन्याय के चलते सिस्टम के खिलाफ बगावत करने लगते हैं। इस फिल्म के कई सीन पर सेंसर बोर्ड ने कैंची चलाई थी। मामला कोर्ट बॉम्बे HC तक पहुंचा था। उस वक्त सेंसर बोर्ड के डायरेक्टर लीला सैमसन थे। बॉम्बे HC ने सेंसर बोर्ड को फिल्म में से सीन कट करने के लिए फटकार लगाई थी।

मीरा नायर की 'कामसूत्र'
यह लव स्टोरी 1996 में बनी। फिल्म को सेंसर बोर्ड ने रीलीज होने से यह कहकर रोक दिया था कि फिल्म समाज के लिए 'अनैतिक' है। बाद में इस फिल्म में से 2 मिनट की न्यूडिटी सीन को हटाकर इसे रीलीज किया गया।

शेखर कपूर की बैंडिट क्वीन
शेखर कपूर की बैंडिट क्वीन को भी सेंसर बोर्ड के क्रोध का सामना करना पड़ा था। फूलन देवी के जीवन के आधारित यह फिल्म इसलिए सेंसर बोर्ड को पसंद नहीं आई क्योंकि इसमें सेक्सुअल सीन और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल हुआ था।

द पिंक मिरर- 2003
सेंसर बोर्ड द्वारा इस पुरस्कार विजेता भारतीय फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। बोर्ड ने कहा यह फिल्म अशिष्ट और आक्रामक है। यह फिल्म समलैंगिक रिश्तों पर आधारित थी।

अनुराग कश्यप की 'पांच'

पांच अनुराग कश्यप द्वारा लिखित और निर्देशित एक क्राइम थ्रिलर फिल्म थी। यह फिल्म पुणे में 1976-77 जोशी-अभ्यंकर सीरीयल मडर्र पर आधारित है। सेंसर बोर्ड ने फिल्म में हिंसात्मक दृश्क को लेकर आपत्ति जताई थी। यह फिल्म कभी रीलीज नहीं हो पाई।

परजानिया
2007 में यह फिल्म बनी थी। यह फिल्म दस वर्षीय पारसी लड़के की सच्ची कहानी से प्रेरित थी जो 28 फरवरी, 2002 को गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड के बाद गायब हो गया था।फिल्म गुजरात में हुए 2002 सांप्रदायिक दंगों पर आधारित थी इसलिए सेंसर बोर्ड ने इस के कई सीन पर आपत्ति जताई।

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कुल मिलाकर सेंसर बोर्ड में विवाद का इतिहास काफी लंबा रहा है। आज की फिल्मों में नए प्रयोग होने लगे हैं।  सेक्स सीन्स को फिल्म निर्माता खुलकर दिखाते हैं। अब फिल्म निर्माता रिश्तों के किसी भी पहलू को पर्दे पर उतारने में झिझकता नहीं है। ऐसे में हो सकता है कि सेंसर बोर्ड की कैंची आने वाली फिल्मों पर भी चलती रहे और विवाद का यह सिलसिला कभी थमे नहीं।