Amrita Pritam Birthday: इश्क के समंदर में दर्द की गहराई बताती है अमृता प्रीतम की यह 6 कविताएं
इश्क़ अमर होता है, मोहब्बत की कोई भाषा नहीं है, इसे मज़हब या वक़्त की बेड़ियों से नहीं बांधा जा सकता है। मोहब्बत की कहानियों के किरदार आज भी जीवित है।
मुंबई:
इश्क़ अमर होता है, मोहब्बत की कोई भाषा नहीं है, इसे मज़हब या वक़्त की बेड़ियों से नहीं बांधा जा सकता है। मोहब्बत की कहानियों के किरदार आज भी जीवित है। हीर रांझा, लैला मजनू प्यार की अमर इबारत लिख कर गए है जो इश्क के अफ़साने लोगों में बेइंतहा जुनून पैदा करते है। प्यार की दुनिया में आज भी अमृता प्रीतम का नाम अमर है, उस दुनिया से कभी भी वह रुख़सत ही नहीं हुईं। प्यार में डूबी अमृता की कलम से उतरे शब्द ऐसे है जैसे चांदनी को अपनी हथेलियों के बीच बांध लेना। समाज की तमाम बेड़ियों को तोड़कर खुली हवा में सांस लेने वालीं, आज़ाद ख्यालों वालीं अमृता प्रीतम, पंजाब की पहली कवियत्री थी। अमृता प्रीतम की आत्मकथा 'रसीदी टिकट' की भूमिका में उन्होंने कुछ पंक्तियां लिखी। उन्होंने लिखा– 'मेरी सारी रचनाएं, क्या कविता, क्या कहानी, क्या उपन्यास, सब एक नाजायज बच्चे की तरह हैं।
मेरी दुनिया की हकीकत ने मेरे मन के सपने से इश्क किया और उसके वर्जित मेल से ये रचनाएं पैदा हुईं। एक नाजायज बच्चे की किस्मत इनकी किस्मत है और इन्होंने सारी उम्र साहित्यिक समाज के माथे के बल भुगते हैं।’ अमृता प्रीतम आजाद ख्याल की लड़कियों की आदर्श थीं। इनमें सबसे ज्यादा खास बात ये रही कि वह लड़कियां उनकी भाषा और क्षेत्र से परे थी। यह सबूत है कि भाषा की दीवार अमृता के विचारों में रूकावट पैदा नहीं कर सकी। अमृता की बेहद कम उम्र में प्रीतम सिंह के साथ शादी के बंधन में बंधी थी।
पढ़िए अमृता प्रीतम के जीवन के बारे में यहां......
अमृता ने अपनी शादीशुदा ज़िंदगी से बाहर निकलने का फैसला किया लेकिन साहिर का साथ भी ज्यादा न चल पाया। ज़िंदगी के आखिरी समय में सच्चा प्यार उन्हें इमरोज़ के रूप में मिला। अमृता प्रीतम के जन्मदिन के मौके पर पढ़ें उनकी बेहतरीन कवितायें।
रोशनी की एक खिड़की
आज सूरज ने कुछ घबरा कर
रोशनी की एक खिड़की खोली
बादल की एक खिड़की बंद की
और अंधेरे की सीढियां उतर गया…
आसमान की भवों पर
जाने क्यों पसीना आ गया
सितारों के बटन खोल कर
उसने चांद का कुर्ता उतार दिया…
मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं
तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से
गहरा और काला धूंआ उठता है…
आत्ममिलन
मेरी सेज हाजिर है
पर जूते और कमीज की तरह
तू अपना बदन भी उतार दे
उधर मूढ़े पर रख दे
कोई खास बात नहीं
बस अपने अपने देश का रिवाज है
मेरा पता
आज मैंने
अपने घर का नम्बर मिटाया है
और गली के माथे पर लगा
गली का नाम हटाया है
और हर सड़क की
दिशा का नाम पोंछ दिया है
पर अगर आपको मुझे ज़रूर पाना है
निवाला
जीवन-बाला ने कल रात
सपने का एक निवाला तोड़ा
जाने यह खबर किस तरह
आसमान के कानों तक जा पहुंची
बड़े पंखों ने यह ख़बर सुनी
लंबी चोंचों ने यह ख़बर सुनी
तेज़ ज़बानों ने यह ख़बर सुनी
ऐ मेरे दोस्त! मेरे अजनबी
ऐ मेरे दोस्त! मेरे अजनबी!
एक बार अचानक - तू आया
वक़्त बिल्कुल हैरान
मेरे कमरे में खड़ा रह गया।
सांझ का सूरज अस्त होने को था,
पर न हो सका
और डूबने की क़िस्मत वो भूल-सा गया
ऐश ट्रे
इलहाम के धुएं से लेकर
सिगरेट की राख तक
उम्र की सूरज ढले
माथे की सोच बले
एक फेफड़ा गले
एक वीयतनाम जले
और रोशनी
अंधेरे का बदन ज्यों ज्वर में तपे
और ज्वर की अचेतना में
हर मज़हब बड़राये
हर फ़लसफ़ा लंगड़ाये
हर नज़्म तुतलाये
और कहना-सा चाहे
कि हर सल्तनत
सिक्के की होती है, बारूद की होती है
और हर जन्मपत्री
आदम के जन्म की
एक झूठी गवाही देती है।
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