अगर त्रिशंकु परिणाम रहा, तो इस 'त्रिमूर्ति' का 'आशीर्वाद' पीएम पद के लिए होगा जरूरी
केसीआर, जगनमोहन रेड्डी और नवीन पटनायक ऐसे ही तीन बड़े क्षेत्रीय नाम हैं, जो त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति में 'किंगमेकर' की भूमिका निभा सकते हैं.
नई दिल्ली.:
नई लोकसभा के चुनाव के लिए हर राजनीतिक दल अपने-अपने दांव चल रहा है. तमाम क्षेत्रीय दलों ने अभी से ही एनडीए या यूपीए से हाथ मिला लिया है. हालांकि कुछ क्षेत्रीय राजनीतिक दल ऐसे भी हैं, जिन्होंने गैर कांग्रेस-गैर बीजेपी रुख अपना रखा है. यह अलग बात है कि इसके पीछे कहीं न कहीं चुनाव परिणाम आने के बाद 'राजनीतिक सौदेबाजी' की मंशा रहती है. साथ ही ऐसे क्षेत्रीय दल बदलती हवा का रुख भांप कर राजनीतिक नैया की पतवार चढ़ाते हैं. इस लिहाज से देखें तो केसीआर, जगनमोहन रेड्डी और नवीन पटनायक ऐसे ही तीन बड़े क्षेत्रीय नाम हैं, जो त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति में 'किंगमेकर' की भूमिका निभा सकते हैं.
इसे समझने के लिए वायएसआर कांग्रेस नेता जगन मोहन रेड्डी के उस संकेत को समझना होगा, जो उन्होंने कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दिया. उन्होंने बगैर लाग-लपेट के कह दिया कि उन्हें त्रिशंकु लोकसभा आने पर सबसे ज्यादा खुशी होगी. उनका राजनीतिक उद्देश्य इस बयान के जरिये साफ हो जाता है. वह मतगणना के बाद उभरने वाले समीकरणों में अपनी भूमिका की संभावनाएं तलाशना चाहते हैं. सिर्फ जगनमोहन रेड्डी ही नहीं, उनके जैसे दो बड़े क्षेत्रीय क्षत्रपों ने अभी तक बीजेपी या कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी से समान दूरी बना रखी है. ये दो क्षेत्रीय क्षत्रप हैं तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के ' केसीआर' यानी के. चंद्रशेखर राव, बीजू जनता दल (बीजद) के नवीन पटनायक.
यह त्रिमूर्ति कुल मिलाकर 543 में से 63 संसदीय सीटों पर अजबूत आधार रखती है. आंध्र प्रदेश में 25, तेलंगाना में 17 और ओड़िशा में 21. पिछले आम चुनाव में इन 63 में से 40 सीटों पर इन्हीं क्षत्रपों का दबदबा था. पिछले आम चुनाव में वायएसआर कांग्रेस को 9, टीआरएस को 11 और बीजद को 20 सीटों पर विजय मिली थी. ऐसे में अभी तक इस त्रिमूर्ति ने अपना झुकाव स्पष्ट नहीं किया है. हालांकि गणित कहती है कि तमाम मुद्दों पर सोच-विचार के बाद तीनों ही बीजेपी को चुनाव बाद समर्थन दे सकते हैं. इसके पीछे उनके बीजेपी प्रेम से कहीं ज्यादा कांग्रेस विरोध की भावना है.
जगनमोहन रेड्डी
जगनमोहन रेड्डी के कांग्रेस के साथ रिश्ते अपने पिता और संयुक्त आंध्र प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे वायएस राजशेखर रेड्डी की 2009 में हेलीकॉप्टर हादसे में मृत्यु के बाद ही बिगड़ गए. जगनमोहन को भ्रष्टाचार के कई मामलों का सामना करना पड़ा और संप्रग के दूसरे कार्यकाल में 16 माह जेल में भी काटने पड़े. केंद्र में बीजेपी नीत एनडीए सरकार आने के बाद जगनमोहन रेड्डी के पीछे पड़ी जांच एजेंसियों ने अपनी रफ्तार कुछ धीमी की. हालांकि ऊपरी तौर पर वह किसी के प्रति बदले की भावना होने से इंकार करते हैं.
नवीन पटनायक
ओड़िशा में पिछले 19 सालों से सीएम पद पर बरकरार नवीन पटनायक 2009 तक बीजेपी गठबंधन का हिस्सा थे. सीट बंटवारे पर दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए. हालांकि 2017 में राष्ट्रपति चुनाव में बीजद ने एनडीए प्रत्याशी रामनाथ कोविंद का समर्थन दिया था. हालांकि कोई सीधे तौर पर बीजेपी से उनके लगाव को भांप नहीं ले, इसके लिए नवीन पटनायक ने उपराष्ट्रपति के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार गोपाल कृष्ण गांधी को समर्थन दे दिया. यहां यह भूलना ठीक नहीं होगा कि नोटबंदी को नवीन बाबू ने एक हद तक उचित ठहराया था.
चंद्रशेखर राव
हालांकि इस त्रिमूर्ति के तीसरे क्षत्रप तेलंगाना के चंद्रशेखर राव के बारे में सटीक कहना इतना आसान नहीं है. वह अप्रत्याशित कदम उठाने और निर्णय के लिए जाने जाते हैं. गौरतलब है कि उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव छह महीने पहले ही करा लिए थे. यह एक लिहाज से उनकी दूरदृष्टि थी, जो वह लोकसभा चुनाव के समय विधानसभा चुनाव के दबाव से मुक्त हैं. कांग्रेस और चंद्रबाबू नायडू तो अभी से टीआरएस को बीजेपी की 'बी टीम' कहने लगे.
जाहिर है फिलहाल अपने-अपने गढ़ में बैठ लोकसभा चुनाव की रणनीति का खाका खींच उसपर अमल कर यह त्रिमूर्ति मतगणना के बाद अपनी अधिक प्रासंगिकता बनाए रखने पर काम कर रहे हैं. इनका रुख 23 मई को मतगणना के सारे रुझान आने के बाद ही कुछ-कुछ स्पष्ट हो सकेगा, लेकिन इतना तय है कि त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति में केंद्र की सत्ता की चाबी इसी त्रिमूर्ति के हाथों रहेगी. चुनाव आयोग की मतदान को लेकर की गई व्यवस्था के तहत आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 11 अप्रैल को वोट पड़ेंगे, जबिक ओड़िशा में चार चरणों में संसदीय और विधानसभा चुनाव होंगे. आंध्र प्रदेश भी लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव के लिए मतदान कराएगा.
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