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लोकसभा चुनाव में सवर्णों के आरक्षण और नागरिकता विधेयक के जरिए मोदी सरकार खेलेगी 'हिंदू कार्ड'

आगामी लोकसभा चुनाव नजदीक है ऐसे में सवर्णों की नाराजगी झेल रही मोदी सरकार ने उन्हें 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा करके मास्टर स्ट्रोक लगाया और इसमें नागारिकता विधेयक एक और मिल का पत्थर साबित हो सकता है.

Updated on: 08 Jan 2019, 12:13 PM

नई दिल्ली:

आगामी लोकसभा चुनाव (Loksabha Election 2019) नजदीक है, ऐसे में सवर्णों की नाराजगी झेल रही मोदी सरकार ने उन्हें 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा करके मास्टर स्ट्रोक लगाया और इसमें नागारिकता विधेयक एक और मिल का पत्थर साबित हो सकता है. यानी मोदी सरकार सिटिजनशिप बिल 2016 बनाकर एक और हिंदू कार्ड खेलने वाली है. हालांकि मोदी सरकार के अपने ही इस बिल में संशोधन का विरोध कर रहे हैं.

सिटिजनशिप बिल 2016 (citizenship bill) क्या है

नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016, नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करके बनाया जाएगा. इसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को भारत में 6 साल बिताने के बाद नागरिकता देने के लिए लाया गया है. नागरिकता अधिनियम 1955 में 11 साल वक्त गुजराने के बाद भारत की नागरिकता मिली है. लेकिन बिल में संसोधन के जरिए बीजेपी (BJP) सरकार इसे घटाकर 6 साल करना चाहती है. अगर यह बिल पास हो जाता है तो हजारों लोगों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी, जिसका प्रभाव चुनाव में पड़ेगा.

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बता दें कि पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ अच्छा बर्ताव नहीं होता है. पिछले 50 सालों में पाकिस्तान में बसे 90 फीसदी हिंदू देश छोड़ चुके हैं. धीरे-धीरे उनके पूजा स्थल और मंदिर भी नष्ट किए जा रहे हैं. इतना ही नहीं हिंदुओं की संपत्ति पर जबरन कब्जे के कई मामले सामने आ रहे हैं.

पाकिस्तान, अफगानिस्ता और बांग्लादेश में हिंदुओं का कुछ ऐसा है हाल

यही हाल अफगानिस्तान का भी है. भारत में अफगानिस्तान के राजदूत डॉ शायदा मोहम्मद अब्दाली के अनुसार 90 के दशक तक अफगानिस्तान में 2 लाख से ज्यादा हिंदू और सिख थे. लेकिन अब इनकी संख्या एक से दो हजार ही रह गई है.

बांग्लादेश का हाल भी कुछ ऐसा ही है. यहां से भी लगातार हिंदू पलायन कर रहे हैं. ढाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ अब्दुल बरकत के अनुसार औसतन 632 हिंदू रोजाना बांग्लादेश छोड़ रहे है. 1964 से 2013 के बीच करीब 1 करोड़ 13 लाख हिंदुओं ने धार्मिक भेदभाव और उत्पीड़न की वजह से बांग्लादेश छोड़ा.

विपक्ष के साथ मोदी सरकार के अपने कर रहे हैं विरोध

इन देशों से पलायन करके आने वाले हिंदुओं को मोदी सरकार अब संरक्षण देने की बात कर रही है. हालांकि विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ असम गण परिषद और और शिवसेना भी इस बिल के विरोध में बोल रही है. इनका कहना है कि इसमें धार्मिक पहचान को प्रमुखता दी गई है. विपक्ष का यह भी तर्क है कि नागरिकता संशोधन के लिए धार्मिक पहचान को आधार बनाना संविधान के आर्टिकल 14 की मूल भावना के खिलाफ है. आर्टिकल 14 समता के अधिकार की व्याख्या करता है.

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वहीं, असम गण परिषद और शिवसेना कहना है कि असम में बड़ी संख्या में आए बांग्लादेशी हिंदुओं को मान्यता देने के बाद मूल निवासियों के लिए अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा. 

असम के नागरिक भी कर रहे हैं विरोध

इधर, असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक के खिलाफ लोगों का बड़ा तबका प्रदर्शन कर रहा है. उनका कहना है कि यह 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा, जिसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी, भले ही उसका धर्म कोई भी.