BJP को 2 से 282 सीटों तक पहुंचने में 30 साल लगे, पहले ही चुनाव में अर्श पर पहुंचा जनता दल
भारत यूं ही नहीं लोकतंत्र का सिरमौर है. यहां जनता कब किसको दिल्ली की गद्दी सौंप दे तो कब उतार दे कुछ नहीं कहा जा सकता.अपने वोट के हथियार से हिन्दुस्तान की जनता जब चाहे जिसकी सरकार बना दे या बदल दे.
नई दिल्ली:
भारत यूं ही नहीं लोकतंत्र का सिरमौर है. यहां जनता कब किसको दिल्ली की गद्दी सौंप दे तो कब उतार दे कुछ नहीं कहा जा सकता.अपने वोट के हथियार से हिन्दुस्तान की जनता जब चाहे जिसकी सरकार बना दे या बदल दे. पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता के शीर्ष पर सबसे ज्यादा सीटें लेकर बैठने वाली बीजेपी को यहां तक आने में 30 साल लग गए. पहली बार बनी जनता पार्टी दो साल में ही जहां टूट गई वहीं जनता पहली बार में ही सत्ता के शीर्ष पर पहुंच गई.
1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया. दो साल बाद जनता पार्टी के टूटने के बाद 1980 में BJP की नींव रखी गई. BJP ने 1984 में अपना पहला चुनाव लड़ा और 2 सीटों पर जीत हासिल की. पांच साल बाद 1989 के चुनाव में बीजेपी 2 सीट से 86 पर पहुंच गई. 1991 में दोबारा चुनाव हुए और BJP की सीटें बढ़कर 120 यानी 22% हो गईं.अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को लेकर लाल कृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को रथ यात्रा निकाल कर बीजेपी की राजनीति में धार दी थी.
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एक वक्त रहा है जब लालकृष्ण आडवाणी भारत की राजनीति की दिशा को तय करते थे और उन्हें प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार तक माना जाता था. ये वही आडवाणी हैं जिन्होंने 1984 में दो सीटों पर सिमटी बीजेपी को 1998 में पहली बार सत्ता का स्वाद चखाया.1996 के लोकसभा चुनाव में BJP को 161, 1998 में 1982 और 1999 में 182 सीटें मिलीं. 2004 में उसकी सीटें घटकर 138 हो गईं. 2009 में सीटें और भी कम होकर 116 पर आ गईं. लेकिन 2014 में उसने अपनी सबसे ज्यादा 282 सीटें हासिल कीं. यह कुल सीटों के मुकाबले 52% थीं.
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इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए चुनाव में इंदिरा विरोधी कई दलों ने एकजुट होकर जनता पार्टी बनाई. इसमें जनसंघ, भारतीय लोकदल, कांग्रेस (ओ) जैसी प्रमुख पार्टियां शामिल थीं. 41% वोटों के साथ जनता पार्टी ने अपने पहले ही चुनाव में 295 सीटें जीतीं. इमरजेंसी के खिलाफ लोगों का गुस्सा और विपक्षी एकजुटता इस चुनाव में पार्टी की जीत का बड़ा कारण रही.
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2 साल में ही जनता पार्टी अपने फर्श पर पहुंच गई. पार्टी टूट गई और मोरारजी देसाई को पद छोड़ना पड़ा और चौधरी चरण सिंह कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने. जनता पार्टी के टूटने के बाद बड़े चेहरों ने अपने-अपने दल बनाए. इसके बाद 1996, 1999 और 2004 के चुनाव में पार्टी को एक भी सीट नसीब नहीं हुई. 2013 में पार्टी का BJP में विलय हो गया.
पहले चुनाव में ही सत्ता
वीपी सिंह ने जन मोर्चा, जनता पार्टी, लोकदल और कांग्रेस-एस को एकजुट कर 1988 में जनता दल की नींव रखी. 1989 के चुनाव में पार्टी को 143 सीटें हासिल हुईं. BJP और लेफ्ट के समर्थन से जनता दल की सरकार बनी. यह जनता दल का सबसे अच्छा प्रदर्शन था.
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1996 के चुनाव के बाद जनता दल टूटने लगा. 1998 में पार्टी को 6 सीटें मिलीं. 1999 के चुनाव के पहले पार्टी पूरी तरह खत्म हो गई. इसमें शामिल बड़े चेहरों ने जदयू, जेडीएस, राजद, बीजद जैसे दल बनाए.
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