चुनावी बांड की वैधता पर आज सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला, सरकार ने की है बहाल रखने की मांग
याचिकाकर्ता की ओर से प्रशांत भूषण ने दलील दी है कि इलेक्टरोल बॉन्ड के जरिए सरकार ने घूसखोरी का रास्ता खोल दिया है. अभी तक बिके 95 फीसदी इलेक्टोरल बॉन्ड एक ख़ास पार्टी (BJP) को ही मिले हैं.
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) आज राजनीतिक दलों के चंदे के लिए चुनावी बांड (Electoral Bond) की व्यवस्था को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुनाएगा. एक दिन पहले गुरुवार को कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कुछ विवादस्पद दलीलें कोर्ट में रखी थीं. याचिकाकर्ता की ओर से प्रशांत भूषण ने दलील दी है कि इलेक्टरोल बॉन्ड के जरिए सरकार ने घूसखोरी का रास्ता खोल दिया है. अभी तक बिके 95 फीसदी इलेक्टोरल बॉन्ड एक ख़ास पार्टी (BJP) को ही मिले हैं. इस मामले को लेकर चुनाव आयोग और सरकार आमने-सामने हैं. सरकार दानकर्ताओं के नाम को गोपनीय रखने की पक्षधर है, वही आयोग चाहता है कि नाम सार्वजनिक होनी चाहिए.
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गुरुवार को सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा- "याचिकाकर्ताओं की दलील है कि वोटर को सबकुछ जानने का हक है, लेकिन सवाल यह है कि वोटर को क्या जानने की ज़रूरत है? वोटर को ये जानने का हक़ तो नहीं है कि राजनैतिक पार्टियों को चंदा कहां से मिल रहा है. फिर सुप्रीम कोर्ट का निजता के अधिकार को लेकर दिया गया फैसला भी तो है"
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने फिर दोहराया कि चुनावी बांड (Electoral Bond) का मकसद ब्लैक मनी (Black Money) को खत्म करना है. यह सरकार का नीतिगत फैसला है, जिस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. कोई भी राजनीतिक पार्टी बांड (Bond) के लिए एक ही खाता खोल सकती है और सरकार ये सुनिश्चित करती है कि बांड (Bond) खरीदने वाले की पहचान का खुलासा न हो. अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट से आग्रह किया कि कम से कम इस लोकसभा चुनाव तक चुनावी बांड (Electoral Bond) पर रोक न लगाई जाए. मतगणना के बाद जो सरकार आएगी, वो उस पर फैसला ले लेगी.
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हालांकि कोर्ट ने उनसे कई सवाल भी पूछे. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अटॉनी जनरल से पूछा कि अगर बैंक किसी एक्स, वाई , जेड को चुनावी बांड (Electoral Bond) देते हैं तो क्या बैकों के पास इस बात का रिकॉर्ड होता है कि कौन सा बांड (Bond) एक्स को दिया गया है और कौन सा वाई को. अटॉनी जनरल ने जब इससे इंकार किया तो चीफ जस्टिस ने कहा कि इसका मतलब तो ब्लैकमनी (Black Money) को रोकने के लिए आपकी कवायद ही बेकार हो गई.
बेंच के एक दूसरे सदस्य जस्टिस संजीव खन्ना ने भी सवाल किया, आपने केवाईसी (KYC) का ज़िक्र किया है. लेकिन केवाईसी (KYC) तो सिर्फ बांड (Bond) खरीदने वाले की पहचान को मेंशन करता है, लेकिन रकम सफेद है या काला धन (Black Money), इसका केवाईसी (KYC) से खुलासा नहीं होता. जस्टिस खन्ना ने ये भी आशंका जताई कि शैल कम्पनियों (Shell Company) के जरिये काले धन (Black Money) को सफेद किया जा सकता है और ऐसे में केवाईसी (KYC) से कोई मकसद हल नहीं निकलेगा.
इस पर अटॉनी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि चुनावी बांड (Electoral Bond) सरकार ने एक प्रयोग के तौर पर शुरू किया है और ये मौजूदा व्यवस्था से बुरी व्यवस्था नहीं है. इसलिए इस व्यवस्था को अभी जारी रखने की इजाजत होनी चाहिए.
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