अब महागठबंधन के चक्कर में नहीं है कांग्रेस, एकला चलो की रणनीति पर फोकस
जिन राज्यों में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ना चाहती है, उनमें आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल प्रमुख हैं.
नई दिल्ली:
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने के बाद उत्साह से लवरेज कांग्रेस अब महागठबंधन के चक्कर में नहीं पड़ने जा रही. सूत्रों का कहना है कि अब कांग्रेस एकला चलो की रणनीति पर काम कर रही है और लोगों को विश्वास दिलाना चाहती है कि अकेली वही पार्टी है, जिसका पूरे देश में वजूद है और वह अपने दम पर चल सकती है. पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस महागठबंधन बनाने में जोर-शोर से जुटी थी, लेकिन अब उसने अपनी रणनीति बदल दी है. तीन राज्यों में सरकार बनाने के बाद अब कांग्रेस को प्रियंका गांधी के रूप में नया ब्रह्मास्त्र भी मिल गया है.
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जिन राज्यों में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ना चाहती है, उनमें आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल प्रमुख हैं. कांग्रेस ने बुधवार को आंध्र प्रदेश में इसकी घोषणा भी कर दी है. अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव और केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने इस संबंध में कहा था कि कांग्रेस आंध्र प्रदेश में सभी 175 विधानसभा सीटों और 25 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी.'' दोनों पार्टियां हाल ही तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनाव में साथ लड़ी थीं, लेकिन चुनाव का नतीजा दोनों पार्टियों के लिए काफी भयानक साबित हुआ. एक कारण यह भी है कि दोनों पार्टियां आंध्र प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ना चाहती हैं.
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कांग्रेस के लिए टीडीपी के साथ गठबंधन करना तेलंगाना में कोई गुल नहीं खिला पाया तो आंध्र प्रदेश में टीडीपी कांग्रेस को वजूदविहीन मानकर चल रही है. आंध्र प्रदेश के विभाजन और उसके तरीके से आंध्र की जनता में कांग्रेस के प्रति भारी गुस्सा है, वहीं तेलंगाना में राज्य की स्थापना का श्रेय के चंद्रशेखर राव ने अपने नाम कर लिया. आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस के नेता जगन मोहन रेड्डी कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं. हालांकि कुछ राजनीति विश्लेषक इसे कांग्रेस और तेलुगुदेशम की आपसी समझ भी बता रहे हैं. माना जा रहा है कि टीडीपी विरोधी वोटों को विभाजित करने के लिए कांग्रेस अलग चुनाव लड़ रही है, ताकि जगन मोहन को माइलेज न मिल सके.
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उत्तर प्रदेश में पहले ही सपा और बसपा ने कांग्रेस को दरकिनार कर गठबंधन कर लिया और कांग्रेस को शामिल नहीं किया. इसके बाद कांग्रेस ने अपने ब्रह्मास्त्र प्रियंका गांधी को मैदान में उतार दिया है. उन्हें महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के जीर्णोद्धार की जिम्मेदारी सौंपी गई है. हालांकि यहां भी माना जा रहा है कि रणनीति के तहत सपा और बसपा ने कांग्रेस को किनारे किया है. दरअसल कांग्रेस के पारंपरिक वोटर ब्राह्मण और ठाकुर वोट बंटेंगे और बीजेपी को नुकसान होगा.
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पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस और ममता बनर्जी या लेफ्ट के बीच गठबंधन को पार्टी नेता खारिज कर रहे हैं. बंगाल कांग्रेस ममता बनर्जी के साथ किसी भी तरह का गठजोड़ नहीं चाहती है. जबकि राहुल गांधी ने बीते दिनों ममता बनर्जी की विपक्षी एकता रैली को समर्थन दिया था. कोलकाता में आयोजित इस रैली में राहुल गांधी शामिल तो नहीं हुए, लेकिन उन्होंने अपने प्रतिनिधि अभिषेक मनु सिंधवी और मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजा था.
उधर, दिल्ली में भी कांग्रेस ने शीला दीक्षित को कमान सौंपकर साफ कर दिया है कि आम आदमी पार्टी से गठबंधन का उसका कोई इरादा नहीं है. हालांकि पार्टी ने आधिकारिक तौर पर इसे नकारा नहीं है, लेकिन माना जा रहा है कि शीला दीक्षित के खिलाफ सबसे अधिक मुखर रही आम आदमी पार्टी के सामने शीला दीक्षित को ही आगे कर कांग्रेस ने कुछ संकेत तो दे ही दिए हैं.
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बिहार में भी अब कांग्रेस के महागठबंधन में शामिल होने को लेकर प्रश्नचिह्न लग गए हैं. तेजस्वी यादव के लखनऊ में मायावती और अखिलेश यादव के साथ मुलाकात के बाद से कांग्रेस के महागठबंधन से अलग होने की बातें लगातार चर्चा में है. माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में भी कांग्रेस सभी सीटों पर अलग होकर चुनाव लड़ सकती है. विपक्षी दलों की रणनीति यह है कि बीजेपी के वोटों का बंटवारा हो जाए और विपक्षी दल अधिक से अधिक सीटें जीतकर आएं.
बता दें कि कांग्रेस का महाराष्ट्र में एनसीपी के साथ, तमिलनाडु में डीएमके और कर्नाटक में जेडीएस, और झारखंड में जेएमएम के साथ पहले से ही गठबंधन है.
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