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राजस्थान में पंजे और कमल को चुनौती दे रहा हाथी, हंसिया, ऑटो और निर्दलीय का समीकरण

राजस्थान में लगभग आधा दर्जन सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के लिए चुनावी रण और मुश्किल बनाने का काम करेंगी चार पार्टियां

Updated on: 02 Apr 2019, 07:03 PM

जयपुर:

Lal Singh Fauzdar

छोटे या यूं कहें कि स्थानीय राजनीतिक दल हर चुनाव में दिग्गजों का खेल बिगाड़ते हैं. इस बार भी राजस्थान में लगभग आधा दर्जन सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के लिए चुनावी रण और मुश्किल बनाने का काम करेंगी चार पार्टियां. पिछले विधानसभा चुनाव में इन चार दलों ने 8 फीसदी वोट हासिल कर 13 विधायकों को विधानसभा सौंध भेजा था. आंकड़ों की भाषा में बात करें तो ये 13 विधायक 29 लाख 56 हजार से अधिक वोट हासिल करने में सफल रहे थे.

वोटों की इस सेंध ने कांग्रेस समेत बीजेपी के पेशानी पर बल ला दिए हैं. यही वजह है कि राज्य की कुल 25 संसदीय सीटों में से 19 पर दोनों ही अपना-अपना प्रत्याशी घोषित कर चुकी हैं, लेकिन शेष आधा दर्जन सीटों पर बसपा, आरएलपी, बीटीपी औऱ माकपा के अगले कदम का इंतजार किया जा रहा है. माना जा रहा है कि इन चार स्थानीय ताकतों के प्रभाव से भरतपुर, करौली-धौलपुर, नागौर, गंगानगर, बाड़मेर, जयपुर ग्रामीण, जोधपुर, सीकर, बांसवाड़ा-डूंगरपुर, टोंक-सवाई माधोपुर सीटों पर परिणाम इधर-उधर हो सकते हैं.

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यह अलग बात है कि परस्पर बातचीत में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही इनके प्रभाव को सिरे से नकार देती हैं. बीजपी नेताओं का तर्क है कि राजस्थान में दो पार्टियों के बीच ही सीधा मुकाबला है. भले ही विधानसभा चुनावों में इन दलों ने अच्छा प्रदर्शन किया हो, लेकिन लोकसभा चुनावों में मुकाबला भाजपा कांग्रेस के बीच ही रहेगा. कुछ ऐसा ही दावा कांग्रेस भी कर रही है. उसके नेताओं का कहना है कि कांग्रेस सभी को साथ में लेकर चलती है. ऐसे में लोकसभा चुनाव में उसका बेहतर प्रदर्शन रहेगा.

इधर जमीनी स्तर पर देखें तो आदिवासियों के विकास से जुड़ी भारतीय ट्राइबल पार्टी के फिलहाल दो विधायक हैं। क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों पर बीटीपी को 1 लाख 59 हजार से अधिक वोट मिले थे। विधानसभा चुनाव में पहली बार दांव आजमाने उतरी इस पार्टी की पकड़ और प्रभाव को चुनावी विश्लेषक भी समय रहते भांपने में नाकाम रहे थे. दूसरी तरफ बसपा का भरतपुर और करौली-धौलपुर सीट पर अच्छा प्रभाव है. हालांकि बसपा का वोट शेयर विधानसभा चुनाव में चार प्रतिशत ही रहा है. फिर भी कह सकते हैं कि इसके समीकरण मजबूत हैं. विधानसभा में पार्टी के छह विधायक जीते थे. अब लोकसभा में पार्टी ने पांच सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित किए हैं.

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नागौर, बाड़मेर, जोधपुर, पाली और जयपुर ग्रामीण में आरएलपी का असर है. हनुमान बेनीवाल की आरएलपी ने विधानसभा चुनाव में नागौर लोकसभा क्षेत्र में 1लाख 58 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे. हालांकि खुद बेनीवाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब डेढ़ लाख वोट हासिल किए थे। बाड़मेर- जैसलमेर लोकसभा सीट की आठ विधानसभा सीटों पर आरएलपी के प्रत्याशियों को 1 लाख 48 हजार से अधिक वोट मिले थे. इसी तरह जयपुर ग्रामीण लोकसभा क्षेत्र में आरएलपी ने एक लाख से अधिक वोट हासिल किए. अब जोधपुर व पाली लोकसभा क्षेत्र में भी आरएलपी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुकी है. उसके तीन विधायक जीते हैं औऱ इसी वजह से पार्टी और उसके प्रत्याशियों के हौसले बुलंद हैं.

माकपा ने भी सीकर से अमराराम को प्रत्याशी बनाया है, तो गंगानगर से श्योपतराम मेघवाल ताल ठोंक रहे हैं. चूरू से प्रत्याशी के नाम की घोषणा जल्द की जाने वाली है. जाहिर है कि अगर लोकसभा चुनाव में इन पार्टियों का वोट बैंक इनके साथ खड़ा रहा तो कांग्रेस और बीजेपी के लिए कुछ समस्या हो सकती है. इसी बात को लेकर कांग्रेस और बीजेपी के अंदरखाने में मंथन चल रहा है, लेकिन बाहरखाने में कतई कोई संकेत नहीं हैं.