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लोकसभा चुनाव 2019: टिकट के बंटावारे में बीजेपी अपना रही ये कामयाब Formula

इसमें कोई शक नहीं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में बीजेपी के ऐसे प्रत्‍याशी जीत गए थे जिनका कोई जनाधार नहीं थी.

Updated on: 20 Mar 2019, 02:36 PM

नई दिल्‍ली:

इसमें कोई शक नहीं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में बीजेपी के ऐसे प्रत्‍याशी जीत गए थे जिनका कोई जनाधार नहीं थी. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह देश की सत्ता पर दूसरी बार अपनी बादशाहत कायम रखने के लिए कई मौजूदा सांसदों का डिब्‍बा गोल करने की तैयारी में है. बीजेपी गुजरात मॉडल पर आधारित 'नो रिपीट थ्योरी' पर काम कर रही है. इसी 'गुजरात मॉडल' के जरिए बीजेपी पिछले दो दशक से गुजरात की सत्ता पर काबिज है. दिल्ली के नगर निगम चुनाव में इसी फॉर्मूले के जरिए फतह किया था. दिल्ली नगर निगम चुनाव में बीजेपी ने सभी पार्षदों का टिकट काटकर उनकी जगह नए चेहरे को उतारकर MCD की असंभव जीत को संभव कर दिखाया था.

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PM नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी पांच साल से देश की सत्ता पर काबिज है. यूपी, गुजरात से लेकर मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बड़ी संख्या में बीजेपी ने जीत हासिल की थी. बीजेपी के मौजूदा सांसदों के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान होना स्वाभाविक है. बीजेपी ने सत्‍ता विरोधी लहर से पार पाने के लिए बड़ी संख्या में पुराने सांसदों की जगह नए चेहरे के साथ सियासी रणभूमि में उतरने का मन बनाया है.

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'नो रिपीट थ्योरी' के तहत उत्तर प्रदेश में करीब आधे से ज्यादा सीटों पर मौजूदा सांसदों के टिकट कट सकता है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यूपी की 80 सीटों में से 71 सीट जीतने में कामयाब रही थी. सूत्रों के अनुसार पार्टी करीब 40 सांसदों का टिकट काटकर नए चेहरे पर दांव लगाने की तैयारी है. छत्तीसगढ़ में बीजेपी अपने सभी 10 सांसदों का टिकट काटने का फैसला कर चुकी है. पिछले चुनाव में राज्य की 11 सीटों में से 10 जीतने में सफल रही थी.

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बिहार, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में भी पार्टी अपने मौजूदा कई सांसदों की जगह नए चेहरे के साथ आम चुनाव के सियासी संग्राम में उतर सकती है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह लोकसभा के उम्मीदवारों की फेहरिश्त को अंतिम स्वरूप देने में जुटे हैं. बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में मुख्यमंत्री रहते तीनों विधानसभा चुनावों के दौरान 'नो रिपीट थ्योरी' अपनाई थी. काम नहीं करने वाले तथा भ्रष्टाचार व अपराधों के आरोपों में घिरे विधायकों को दूसरी बार टिकट नहीं दिया जाता था.