logo-image

1995 का गेस्ट हाउस कांड भूलकर SP, BSP के बीच गठबंधन की घोषणा आज

लोकसभा चुनाव में राजनीतिक रूप से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी को मात देने के लिए आज समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन का सार्वजनिक ऐलान किया जाएगा

Updated on: 12 Jan 2019, 11:08 PM

नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव में राजनीतिक रूप से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी को मात देने के लिए आज समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन का सार्वजनिक ऐलान किया जाएगा. दोनों पार्टियों के प्रमुख अखिलेश यादव और मायावती राजधानी लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस पर अपनी सहमति की मुहर लगाएंगी. 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी में दोनों पार्टियां कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी यह अभी साफ नहीं हुआ है. हालांकि सीटों को लेकर जो अटकलें लगाई जा रही है जिसके मुताबिक दोनों ही पार्टियां 37-37 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है.

यह भी पढ़ें : सपा-बसपा गठबंधन : क्‍या अखिलेश यादव और मायावती चुनाव बाद कहेंगे 'वाह ताज'

अब ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर यूपी की दो मजबूत क्षेत्रियां पार्टियां एसपी-बीएसपी बीते ढाई दशक से जो एक दूसरे की दुश्मन बनी हुई थी वो एक साथ कैसे आ गई है. आखिर दुश्मनी की वजह क्या थी. इस बात का जवाब देने के लिए आपको 90 के दशक की राजनीति जाननी होगी. दिलचस्प है कि आज जो इन दोनों पार्टियों के बीच जो गठबंधन हो रहा है वो पहली बार नहीं है बल्कि 1992 में भी मुलायम सिंह के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी का गठबंधन बीएसपी से हुआ था लेकिन साल 1995 में लखनऊ के गेस्ट हाउस कांड ने दोनों पार्टियों के बीच दुश्मनी की ऐसी दीवार बनाई जिसे टूटने में करीब 25 साल लग गए.

क्या है गेस्ट हाउस कांड

साल 1992 के बाद जब उत्तर प्रदेश में बीजेपी तेजी से अपना प्रभाव और आधार बढ़ा रही थी तो उसी वक्त मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की स्थापना की. यूपी में चुनाव लड़ने और कांग्रेस-बीजेपी को पटखनी देने के लिए मुलायम सिंह यादव ने साल 1993 के विधानसभा चुनाव के लिए बहुजन समाज पार्टी को रणनीतिक साझेदार बनाते हुए उससे गठबंधन किया जिसके नेता उस वक्त कांशीराम थे. उस विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी 256 सीटों पर और बीएसपी 164 सीटों पर चुनाव लड़ी. नतीजे आने के बाद समाजवादी पार्टी को 164 सीटों पर जीत मिली जबकि बीएसपी ने 67 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसके बाद मुलायम सिंह एक बार राज्य के मुख्यमंत्री बने लेकिन दोनों पार्टियां के रिश्तों में धीरे-धीरे गांठें पड़नी शुरू हो गई. साल 1995 की गर्मियों में समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह को पता चला कि मायावती की बात बीजेपी से चल रही है और बीजेपी ने उन्हें ऑफर दिया है कि वो उन्हें सीएम बनाने के लिए समर्थन भी देंगे. इसके लिए बीजेपी ने उस वक्त राज्यपाल रहे मोतीलाल वोरा को समर्थन पत्र भी दे दिया था.

यह भी पढ़ें : अखिलेश-मायावती आज साथ में करेंगे प्रेस वार्ता, महागठबंधन की सीटों पर हो सकता है बड़ा ऐलान

मायावती के समर्थन वापस लेते ही मुलायम सिंह की सरकार गिर जाती. यही वजह है कि मुलायम सिंह चाहते थे कि उन्हें सदन में बहुमत साबित करने का मौका मिले लेकिन इसके लिए राज्यपाल तैयार नहीं हुए. सरकार गिरने की संभावनाओं के बीच कई विधायकों के अपहरण होने लगे. इसी दौरान बीजेपी से गठबंधन के लिए अपनी पार्टी नेताओं के बीच रायशुमारी के लिए मायावती ने लखनऊ के सरकारी गेस्ट हाउस में बैठक बुलाई जहां सभी नेता मंथन में जुटे हुए थे. इस बात की खबर समाजवादी पार्टी के कुछ नेता और कार्यकर्ताओं को लग गई और वो बड़ी संख्या में गेस्ट हाउस के बाहर पहुंच गए.

इसके बाद समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने बीएसपी के नेताओं के साथ मीटिंग रूम में जमकर मारपीट की जिससे वो बुरी तरह घायल हो गए. इस दौरान मायावती ने एसपी कार्यकर्ताओं से बचने के लिए खुद को एक रूम में बंद कर लिया और बीएसपी कार्यकर्ताओं से उसे नहीं खोलने के लिए कहा. एसपी के भड़के हुए कार्यकर्ताओं ने उस रूम को भी खोलने की बेहद कोशिश की लेकिन वो नाकाम रहे क्योंकि वहां बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी और पत्रकार भी मौजूद थे जो सबकुछ देख रहे थे. ऐसे आरोप हैं कि जब बीएसपी की तरफ से मायावती को बचाने के लिए पुलिस को फोन किया जा रहा था तो किसी भी प्रशासनिक अधिकारी ने फोन नहीं उठाया था. मायावती जब इस कमरे से बाहर निकलीं तो उन्होंने मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी पर हत्या करवाने की साजिश का आरोप लगाया. मायावती ने उसके बाद मीडिया में भी बयान दिया कि उन्हें गेस्ट हाउस में ही मरवाने के मकसद से समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता आए थे. भारतीय राजनीति के इस काले दिन को ही गेस्ट हाउस कांड के नाम से जाना जाता है.

बीजेपी के समर्थन से पहली बार सीएम बनी थीं मायावती

इस घटना के बाद मुलायम सिंह यादव और मायावती की पार्टी न सिर्फ एक दूसरे की दुश्मन बन गई बल्कि दोनों की राहें भी अलग हो गई. बीजेपी के समर्थन से साल 1995 में 3 जून को कांशी राम ने मायावती को पहली बार सीएम बनाया जिसके बाद आने वाले सालों में पार्टी के अंदर के साथ ही भारतीय राजनीति में भी मायवती का रुतबा और पहुंच तेजी से बढ़ने लगी.