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जब नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी को जाना पड़ा था तिहाड़ जेल, जानें पूरा मामला

भारतवंशी-एमआईटी प्रोफेसर अभिजीत बनर्जी, उनकी पत्नी एस्थर डुफ्लो और हार्वर्ड के प्रोफेसर माइकल क्रेमर को 'व्यावहारिक रूप से गरीबी से लड़ने की हमारी क्षमता में प्रभावशाली तरीके से सुधार' के लिए अर्थशास्त्र के क्षेत्र में 2019 के नोबेल पुरस्कार (Nobel Award 2019) से सम्मानित किया गया.

Updated on: 15 Oct 2019, 02:55 PM

नई दिल्ली:

भारतवंशी-एमआईटी प्रोफेसर अभिजीत बनर्जी, उनकी पत्नी एस्थर डुफ्लो और हार्वर्ड के प्रोफेसर माइकल क्रेमर को 'व्यावहारिक रूप से गरीबी से लड़ने की हमारी क्षमता में प्रभावशाली तरीके से सुधार' के लिए अर्थशास्त्र के क्षेत्र में 2019 के नोबेल पुरस्कार (Nobel Award 2019) से सम्मानित किया गया. यह जानकारी सोमवार को दी गई. मुंबई में 1961 में जन्मे बनर्जी ने लेखन के अलावा दो डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का भी निर्देशन किया है. उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीचएडी की उपाधि हासिल की और वह मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं.

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अभिजीत बनर्जी को नोबेल पुरस्कार मिलते ही जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) भी खबरों की सुर्खियों में आ गया है. दरअसल, यहां से उन्होंने अपनी एमए (MA) की पढ़ाई पूरी की थी. लेकिन जेएनयू से अभिजीत का एक और किस्सा है जो खबरों में बना हुआ है. नोबेल विजेता जेएनयू से पढ़़ाई के दौरान तिहाड़ जेल की हवा भी खा चुके है. जानकारी के मुताबिक उस समय जेएनयू के प्रेसिडेंट एनआर मोहंती थे और उन्हें कैंपस से निष्कासित कर दिया गया था, जिसके बाद अभिजीत बनर्जी और कई छात्रों ने इसका कड़ा विरोध किया था. उस समय जेएनयू के अध्य़क्ष पद पर रहे एनआर मोहंती ने एक न्यूज वेबसाइट से बातचीत करते हुए तिहाड़ की पूरी कहानी को बताया.

जब लेफ्ट को जेएनयू में करना पड़ा था हार का सामना

साल 1982-83 के छात्र संघ चुनाव यहां मजबूत पार्टी लेफ्ट (AISA) को हार का सामना करना पड़ा था. उस समय स्थापित लेफ्ट संगठनों के बार से कोई छात्रनेता अध्यक्ष बना था. तब लेखक एनआर मोहंती छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर जीते थे. उन्हीं के संगठन ने जेएनयू में स्थापित वामपंथियों के मिथक को तोड़ा था. उस दौरान अभिजीत बनर्जी ने मोहंती का खुलकर सपोर्ट किया था. इसी साल जेएनयू में विरोध की ऐसी आंधी चली थी, जिसमें नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी को भी जेल जाना पड़ा था. उस समय जेएनयू में सिंधु झा, सुनील गुप्ता, योगेंद्र यादव और सीपीआई नेता कन्हैया कुमार के गुरु एसएन मलाकर छात्र राजनीति में काफी सक्रिय थे.

लेखक मोहंती ने न्यूज वेबसाइट से बातचीत करते हुए बताया कि जेएनयू प्रशासन ने एक छात्र को हॉस्टल से निकाल दिया था, जिसे लेकर छात्रों में आक्रोश का माहौल था. जब ये घटना हुई थी उस समय में स्टूडेंट यूनियन का अध्यक्ष था इसलिए इस मामले को लेकर हम वाइस चांसलर के पास गए थे. वहां हमने छात्र को निकालने का कारण पूछा तो वीसी ने कहा कि उसने अभद्र व्यवहार किया. इसके बाद छात्रों ने मांग उठाई की जांच के बाद ही कोई एक्शन लिया जाए.

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इसके आगे उन्होंने बताया कि निष्कासित छात्र ने वहां एक टीचर की शिकायत कर दी थी. जिसके बाद उस टीचर को भी निकालने की मांग उठनी लगी थी. वहीं एडमिनिस्ट्रेशन हमारे संगठन से खुश नहीं था, इसी लिए वो जांच के लिए तैयार नहीं हुआ लेकिन हम लोग भी अपनी मांग पर अड़े रहे. इस बीच एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से स्टूडेंट के हॉस्टल रूम में डबल लॉक लगवा दिया गया था, जिसके बाद पूरा और मामला बिगड़ा था.

मोहंती ने बताया कि हॉस्टल रूम लॉक किए जाने के बाद हम लोगों ने विरोध शुरू किया था और लॉक तोड़कर उस स्टूडेंट की रूम में एंट्री करा दी थी. इसी के बाद पूरा बवाल मचा था. जेएनयू एडमिनिस्ट्रेशन ने मुझे, यूनियन सेक्रेटरी और उस स्टूडेंट को कैंपस से निष्कासित कर दिया था.

स्टूडेंट्स ने पूरे जेएनयू और वाइस चांसलर का घेराव किया था. यह मामला उस वक्त इतना गरमा गया था कि पुलिस को दखल देना पड़ा. इसके बाद पुलिस हम लोगों को अरेस्ट करके ले गई थी. करीब 700 स्टूडेंट्स जेल गए थे, जिसमें करीब 250 लड़कियां थी. मोहंती ने बताया अभिजीत बनर्जी मेरे जूनियर थे, लेकिन वो शुरू से हमारे सपोर्ट में थे. इस विरोध के लिए उन्हें भी मेरे साथ तिहाड़ जेल में रहना पड़ा था.

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फरवरी में कन्हैया प्रकरण के बाद एक अखबार में नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी ने एक आर्टिकल लिखा था. उसमें उन्होंने कहा था कि हमें जेएनयू जैसे सोचने-विचारने वाली जगह की जरूरत है और सरकार को निश्चित तौर पर इससे दूर रहना चाहिए. इसी लेख में उन्होंने 1983 में तिहाड़ जेल 10 दिन काटने का भी जिक्र किया था.

उन्होंने लिखा था कि 1983 हम जेएनयू के छात्रों ने वीसी का घेराव किया था. वीसी ने उस वक्त हमारे स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडंट को कैंपस से निष्कासित कर दिया था. इस बीच पुलिस आकर सैकड़ों छात्रों को उठाकर ले गई, हमारी पिटाई भी हुई थी. लेकिन तब राजद्रोह जैसा मुकदमा नहीं होता था. हालांकि हत्या की कोशिश के आरोप लगे थे.

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बता दें कि बड़ी संख्या में आलेखों और किताबों के लेखक, बनर्जी ने 1981 में कोलकाता विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की, उसके बाद वह 1981 में नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल विश्वविद्यालय गए, जहां से उन्होंने 1983 में अपना एमए पूरा किया. वर्ष 1988 में उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की.