Louise Brown, वो महिला जिस पर आज भी मेडिकल साइंस को है गर्व, जानिए क्या है कारण
दुनिया का दूसरा टेस्ट ट्यूब बेबी लुईस के 67 दिन भारत में जन्मा था.
highlights
- लुईस ब्राउन को दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी होने का गौरव हासिल है.
- आज तक 50 लाख से भी ज्यादा टेस्ट ट्यूब बेबी जन्म ले चुके हैं.
- साधारण शब्दों में जानिए क्या है आईवीएफ.
नई दिल्ली:
First Test Tube Baby, Louise Brown: 25 जुलाई का दिन मेडिकल साइंस और तकनीक के हिसाब से काफी खास दिन रहा है क्योंकि आज मेडिकल साइंस ने वो करिश्मा कर दिखाया था जिससे लाखों- ना-उम्मीद दंपत्तियों का घर खुशियों से भर दिया होगा. आज के दिन ही दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी लुईस ब्राउन का जन्म 1978 में हुआ था और आज वो 41 साल की हो रही हैं.
इतिहास से जुड़ा होने का अहसास काफी अच्छा अनुभव होता है. मैनचेस्टर (Manchester) के ओल्डहैम जनरल हॉस्पिटल में जन्मीं लुईस ने मीडिया से बात करते हुए खुलासा किया था कि उनके घरों में कई चिठ्ठियां आती थीं जिनमें से कुछ में अच्छी बातें लिखी होती थीं और कुछ में भद्दी बातें भी लिखी होती थीं.
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लेकिन ये तो सच है कि लुईस ब्राउन एक समय तक सेलिब्रिटी की तरह थीं और जब वो ये सुनती थीं कि वे दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी हैं तो उन्हें आज भी काफी अच्छा लगता है. लुईस ने आगे बताया कि कुछ लोग उन्हे अजीब नजरों से भी देखते थें क्योंकि लोग उन्हें अजीब समझते थें.
लुईस बताती हैं कि उनकी जिंदगी का आधा समय दुनिया को ये समझाते हुए ही निकल गया कि वो भी एक आम बच्ची या सामान्य इंसान हैं. लुईस ने जिंदगी के ऐसे ही और अनुभवों पर किताब भी लिखी है. इसका नाम है 'माय लाइफ एज द वर्ल्ड्स फर्स्ट टेस्ट ट्यूब बेबी'.मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आज तक 50 लाख से भी ज्यादा टेस्ट ट्यूब बेबी जन्म ले चुके हैं. आपको बता दें कि दुनिया का दूसरा टेस्ट ट्यूब बेबी लुइस के 67 दिन भारत में जन्मा था.
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क्या है आईवीएफ
आईवीएफ को इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (In vitro fertilisation) कहते हैं. इस प्रक्रिया द्वारा पति-पत्नी अपना बच्चा आर्टिफिशियल तरीके से पैदा कर सकते हैं. इस प्रॉसेस में सबसे पहले अंडों के उत्पादन के लिए महिला को फर्टिलिटी दवाइयां दी जाती हैं. इसके बाद सर्जरी के माध्यम से अंडो को निकाल कर प्रयोगशाला में कल्चर डिश में तैयार मेल या पुरुष के शुक्राणुओं के साथ मिलाकर निषेचन(Fertilization) के लिए रख दिया जाता है. पूरी प्रक्रिया को अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल किया जाता है.
लैब में इसे दो या तीन दिन के लिए रखा जाता है, फिर पूरी जांच के बाद इससे बने भ्रूण को वापिस महिला के गर्भ में इम्प्लांट कर दिया जाता है. आईवीएफ की इस प्रक्रिया में दो से तीन हफ्ते का समय लग जाता है. बच्चेदानी में भ्रूण इम्प्लांट करने के बाद 14 दिनों में ब्लड या प्रेग्नेंसी टेस्ट के जरिए इसकी सफलता और असफलता का पता चलता है.
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आईवीएफ को लेकर लोगों के बीच में आज भी कई भ्रांतियां फैली हुई हैं जो कि सभी बेबुनियाद हैं. आईवीएफ से पैदा हुए बच्चे पूरी तरह से स्वस्थ्य होते हैं.
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