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नई शिक्षा नीति में हिंदी को लेकर क्यों मचा है इतना बवाल, जानें क्या है पूरी बात

नई शिक्षा नीति के मसौदे से तमिलनाडु के लोग नाराज हैं. सोशल मीडिया पर भी लोग अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं. ट्विटर पर #StopHindiImposition ट्रेंड कर रहा है.

Updated on: 02 Jun 2019, 12:52 PM

highlights

  • नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में हिंदी को शामिल करने को लेकर बबाल शुरु हो गया है.
  • सोशल मीडिया पर भी लोग अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं.
  • हिंदी फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता से नेता बने मक्कल निधी मायम पार्टी के संस्थापक कमल हासन भी विरोध में शामिल.

नई दिल्ली:

नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट (New Education Policy draft) में हिंदी (hindi) को शामिल करने को लेकर बवाल शुरू हो गया है. सबसे ज्यादा परेशानी उन राज्यों (दक्षिण भारत - South India) में जो हिंदी (Hindi) भाषी नहीं है. खासकर तमिलनाडु (Tamil Nadu) में हिंदी (Hindi) का विरोध जारी है. हालांकि केंद्र सरकार ने साफ किया है कि अभी केवल रिपोर्ट सौंपी गई है. सरकार ने अभी कोई डिसीजन नहीं लिया है. बता देें कि नई शिक्षा नीति के मसौदे से तमिलनाडु के लोग नाराज हैं. हालांकि इस प्रतिक्रिया के बाद केंद्र सरकार ने शनिवार को ही साफ कर दिया था कि किसी भी भाषा को किसी पर थोपा नहीं जा रहा. 

सोशल मीडिया पर भी लोग अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं. ट्विटर पर #StopHindiImposition ट्रेंड कर रहा है. इसरो के पूर्व प्रमुख के कस्तूरीरंगन के नेतृत्व वाली कमेटी द्वारा तैयार नई एनईपी का प्रारूप शुक्रवार को मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' (Human resource development minister Ramesh Pokhriyal 'Nishank') को सौंपा था.

अगर नई शिक्षा नीति लागू हुई तो हिंदी नहीं बोलने वाले राज्यों को क्षेत्रीय भाषा, अंग्रेज़ी और हिंदी को शामिल करना पड़ेगा.
दरअसल, नई शिक्षा नीति के मसौदे में 3 भाषाएं पढ़ाने की बात हो रही है, जिसमें हिंदी भी शामिल है. इसी बात को लेकर दक्षिण में विरोध शुरू हो गया है. नेताओं और सिविल सोसायटी ने कहा कि इसे थोपा जा रहा है.

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विरोध के बाद तमिलनाडु सरकार ने कहा है कि 2 भाषाओं की नीति का पालन करेंगे और राज्य में सिर्फ़ तमिल और अंग्रेजी ही लागू होगी. डीएमके नेता कनीमोई ने कहा कि हम किसी भाषा के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन हिंदी थोपने का विरोध करेंगे. वहीं अभिनेता और नेता कमल हासन ने कहा कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जा सकता है. टीटीवी दिनाकरन ने कहा है कि केंद्र को ये नीति नहीं लानी चाहिए, इससे विविधता ख़त्म होगी. उन्होंने कहा कि सरकार के इस फैसले से हम दूसरे दर्जे के नागरिक बन जाएंगे.

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वहीं डीएमके नेता टी सिवा ने त्रिची में कहा कि तमिलनाडु के लोगों पर हिंदी भाषा नहीं थोपी जा सकती है. हमलोग हिंदी भाषा का विरोध करेंगे और इसे रोकने का जो भी परिणाम होगा उसे झेलने के लिए यहां के लोग पूरी तरह तैयार हैं.

वहीं डीएमके नेता टी सिवा ने त्रिची में कहा कि तमिलनाडु के लोगों पर हिंदी भाषा नहीं थोपी जा सकती है. हमलोग हिंदी भाषा का विरोध करेंगे और इसे रोकने का जो भी परिणाम होगा उसे झेलने के लिए यहां के लोग पूरी तरह तैयार हैं. 

हिंदी फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता से नेता बने मक्कल निधी मायम पार्टी के संस्थापक कमल हासन ने भी इसका विरोध करते हुए कहा कि मैंने कई हिंदी फिल्मों में काम किया है लेकिन मेरा मानना है कि हिंदी भाषा किसी पर भी जबरदस्ती थोपी नहीं जा सकती है.

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क्या है नई शिक्षा नीति
2019 की नई शिक्षा नीति को विशेषज्ञों की एक समिति ने तैयार किया है. इसमें कहा गया है कि हिंदी नहीं बोलने वाले राज्यों को क्षेत्रीय भाषा, अंग्रेज़ी और हिंदी को शामिल करना पड़ेगा. वहीं हिंदी बोलने वाले राज्यों को हिंदी और अंग्रेज़ी के अलावा भारत की अन्य आधुनिक भाषाओं को शामिल करना पड़ेगा.

नई नीति में ये भी कहा गया है कि छात्रों को भारतीय भाषाओं में अपने बोलने की और लिखित दक्षता का भी प्रमाण देना होगा. भाषा से जुड़े इन्हीं प्रस्तावित बदलावों को ट्विटर पर ख़ूब ट्रोल किया जा रहा है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य की पार्टी डीएमके के सासंद तिरुचि शिवा ने इस नीति के विरोध में कहा कि हिंदी को तमिलनाडु पर थोपना किसी गोदाम में आग़ लगाने जैसा है. उन्होंने कहा कि इसका विरोध करने के लिए जो भी करना पड़े उनकी पार्टी वो करेगी.


क्या है नई शिक्षा नीति 2019 के मसौदे में

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  • ये प्रस्ताव की शक्ल में ड्राफ़्ट पेपर है.
  • इस नीति में 3 भाषाओं का प्रस्ताव है.
  • इस नीति में शुरुआत से ही 3 भाषा सिखाने का प्रावधान है.
  • मसौदे के मुताबिक इससे 'बहुभाषीय संवाद क्षमता को बढ़ावा मिलेगा.'
  • 1968 की राष्ट्रीय नीति में 3 भाषाओं का फ़ॉर्मूला था.
  • शिक्षा सम्वर्ती सूची में और ये राज्य का विषय नहीं है.
  • ऐसे में केंद्र शिक्षा नीति बना सकता है.

तमिलनाडु में हिंदी का विरोध पहले भी होता रहा है

हिंदी का तमिलनाडु में विरोध का एक लंबा इतिहास रहा है. राज्य में पहली बार ये विरोध 1937 में हुआ था. इसके बाद 1946 से 1950 के बीच कई प्रदर्शन हुए जिनके केंद्र में हिंदी ही थी. तब से लेकर अब तक राज्य में न जाने कितने ही हिंदी विरोधी प्रदर्शन हुए हैं. वहीं, नई शिक्षा नीति में हिंदी की वकालत किए जाने के ख़िलाफ़ तमिलनाडु के लोग सोशल मीडिया पर विरोध शुरू कर चुके हैं.