logo-image

जानिए कौन हैं TMU के संस्थापक और कुलाधिपति सुरेश जैन

श्री जैन अपने कार्य कुशलता और स्नेहपूर्ण व्यवहार से राष्ट्र और समाज सेवा में निरंतर कार्य करते हुए नित नए सपानों की ओर अग्रसर हो रहे हैं

Updated on: 24 Jun 2019, 01:54 PM

नई दिल्ली:

बहुमुखी प्रतिभा के धनी, कर्मयोगी और शिक्षा प्रेमी, तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय के संस्थापक एवं कुलाधिपति श्री सुरेश जैन जी का जन्म ग्राम हरियाणा जनपद मुरादाबाद उत्तर प्रदेश के श्रद्धेय स्व. श्री प्रेम प्रकाश जैन और स्व. श्रीमती माला देवी जैन के धार्मिक, सम्पन्न और सम्मानित परिवार के वरिष्ठ पुत्र के रूप में 01 जनवरी 1944 को हुआ था. वर्ष 1966 में श्रीमती वीना जैन ने आपकी सहधर्मिणी के रूप में आपके परिवार में पदार्पण किया. आपके यशस्वी पुत्र श्री मनीष जैन आपके पदचिन्हों का अनुसरण कर रहे हैं तथा वाइस चेयरमैन के पद पर सुशोभित हैं.

यह भी पढ़ें: शिक्षा जगत के शिखर पर अग्रसर TMU से हो रही है अब मुरादाबाद की पहचान

आप एक सफल निर्यातक के रूप में अमेरिका, स्विटजरलैंडए इटली, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, बेल्जियम, थाईलैंड और इज़राइल आदि देशों की व्यवसायिक यात्राएं कर चुके हैं. आपके पूज्य पिता जी शिक्षा के क्षेत्र के एक सफल दूर दृष्टा थे. उनके द्वारा सन् 1966 में अपने गांव में इन्टरमीडिएट कॉलेज की स्थापना की गयी और उसी से प्रेरित होकर आपने मुरादाबाद नगर में व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा के विकास हेतु, सम्यक दर्शन ज्ञान व चरित्र निर्माण की भावनाओं से ओतप्रोत होकर आपने जुलाई 2001 में मैनेजमेंट संस्थान की स्थापना की.

यह भी पढ़ें: Delhi: खुशखबरी, अब आप पढ़ाई में लगाइये ध्यान, आपकी फीस देगी दिल्ली सरकार

साल 2008-09 में आपने देश की गौरव गाथा में एक नवीन अध्याय जोड़ा. अपने अनुकरणीय पुरूषार्थ तथा रचनात्मक दृष्टिकोण को आकार देते हुए आपने 140 एकड़ के विशालकाय परिसर में 55 लाख वर्गफुट के निर्मित भवनों में 20 कॉलेजों को स्थापित करते हुए उत्तर प्रदेश के प्रथम जैन अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय श्तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालयश् की स्थापना की. यहां विभिन्न प्रान्तों तथा विदेशों से 14000 से अधिक छात्र-छात्राएं, 125 से ज्यादा उच्च व्यवसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों में अध्ययनरत हैं.

जैन छात्र-छात्राओं को विश्वविद्यालय के प्रत्येक पाठ्यक्रमों के प्रवेश में वरीयता प्रदान की जाती है और छात्र-छात्राओं को प्रत्येक पाठ्यक्रम में मेडिकल एवं एलाइड के अतिरिक्त सम्पूर्ण पाठ्यक्रम हेतु शिक्षण शुल्क में 50 फीसदी और छात्रावास शुल्क में 40 फीसदी की छूट दी जाती है. विगत चार वर्षों में विश्वविद्यालय द्वारा जैन छात्र-छात्राओं को 45 करोड़ से ज्यादा की धनराशि छात्रवृत्ति के रूप में प्रदान की जा चुकी है. परिसर में स्थित मेडिकल कॉलेज जिसमें एमबीबीएस में 150 विद्यार्थी तथा एमडी/एमएस में 126 विद्यार्थी प्रतिवर्ष प्रवेश लेते हैं और पाठ्यक्रम को पूर्ण कर राष्ट्र की स्वास्थ्य सेवा हेतु समर्पित होते हैं. विश्वविद्यालय के अन्तर्गत डेंटल, मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग, कम्प्यूटर साइंस, नर्सिंग, फार्मेसी, पैरामेडिकल-साइंस फिजियोथेरेपी, लॉ, जर्नलिज्म, एजुकेशन, फिजिकल-एजुकेशन, एग्रीकल्चर साइंस, हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन, फाईन आर्ट्सए लैंग्वेज-स्टडीज एवं जैन दर्शन में डॉक्टरेट एवम् आधुनिक व रोजगार परक शिक्षा प्रदान की जा रही है.

यह भी पढ़ें: Career Guidance: Public Relation में बना सकते हैं शानदार करियर, यहां पढ़ें पूरी detail

श्री जैन अपने कार्य कुशलता और स्नेहपूर्ण व्यवहार से राष्ट्र और समाज सेवा में निरंतर कार्य करते हुए नित नए सपानों की ओर अग्रसर हो रहे हैं. आप में अहंकार का भाव रंच मात्र भी नहीं है. परिसर में स्थित 1000 शय्याओं के अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित सुपर मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल में गरीबों के लिए निःशुल्क और रियायती दरों पर चिकित्सा और मरीजों को निःशुल्क भोजन भी उपलब्ध कराया जाता है. आप विभिन्न स्थानीय, राजकीय और राष्ट्रीय स्तर की सेवाएं धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं से विभिन्न पदों के माध्यम से जुड़े है. आपको परोपकारी सेवा कार्यों के लिए विभिन्न भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा समय समय पर सम्मानित भी किया जाता रहा है.

आपने परम पूज्य गणिनी प्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माता जी की प्रेरणा एवं उनके निर्देशन व सान्निध्य में विश्वविद्यालय परिसर में 02 अप्रैल 2012 को तीर्थं कर श्री महावीर जिनालय की स्थापना करके विश्वविद्यालय को तीर्थस्थल का स्वरूप देने का पुनीत कार्य किया है. फलस्वरूप, समस्त जैन संतों का आशीर्वाद एवं समस्त जैन समाज की शुभकामनायें आपको एवं विश्वविद्यालय को प्राप्त है तथा परिसर में सभी धार्मिक कार्यक्रमों को पूर्ण उत्साह के साथ मनाया जाता है जिससे छात्रों में नैतिकता एवं आचरण का उत्थान होता है. आपका व्यक्तित्व चरित्रार्थ करता है कि-
'हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है.
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जायेगा. '