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International Literacy Day 2018: अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर यह है भारत की स्थिति

2011 जनगणना के अनुसार भारत में पुरूषों की साक्षरता दर 82.14% है और महिलाओं की साक्षरता दर 65.40% है। यह दर्शाता है कि हम आज भी महिलाओं शिक्षा देना तो दूर उन्हें साक्षर भी नहीं कर पाए हैं।

Updated on: 09 Sep 2018, 09:53 AM

नई दिल्ली:

शिक्षा व्यक्ति के समपूर्ण विकास में अहम भूमिका अदा करती है। शिक्षा ही देश के सामाजिक- आर्थिक विकास का आधार होती है। किसी भी देश का शैक्षणिक दृष्टि से मजबूत होना उसे विकास की ऊंचाइयों पर ले जा सकता है। विकसित और वैश्विक शक्ति बने देशों के विकास में शिक्षा के क्षेत्र में हुए अद्भुत विकास का अहम योगदान शामिल है। इस क्षेत्र को नजरअंदाज करना किसी भी व्यक्ति और अंततः देश को कमजोर कर सकता है।

शनिवार 08 सितंबर को विश्व में साक्षरता दिवस मनाया जा गया। यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल साइंटिफिक ऐंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन (यूनेस्को) ने 26 अक्टूबर, 1966 को साक्षरता दिवस मनाने का फैसला लिया था।

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इस साल 52वां अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जा रहा है। इस मौके पर शुक्रवार 09 सितंबर को पेरिस, फ्रांस में अंतरराष्ट्रीय कॉफ्रेंस का भी आयोजन किया गया। इस कॉन्फेंस की थीम रखी गई है साक्षरता और कौशल विकास। आज के आधुनिक युग में व्यक्ति और देश के विकास में शिक्षा, साक्षरता के साथ-साथ कौशल का भी महत्व बढ़ गया है। साक्षरता, शिक्षा के साथ-साथ लोगों के पास कौशल या स्किल का होना भी जरूरी है। किसी भी देश के पास स्किलड या कौशल रूप से सक्षम लोगों का होना उसके विकास की गाड़ी दो दोगुना कर सकता है। साथ ही व्यक्ति का कौशल रूप से सक्षम होना उसे अच्छा रोजगार चुनने में मदद करता है और उसकी तकनीकी समझ को भी बेहतर बनाता है। यही कारण है कि भारत भी अब अपने पास मौजूद मैनपॉवर को स्किलड करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। महिलाओं एवं पुरूषों को साक्षरता, तकनीकी एवं वोकेशनल स्किल और रोजगार एवं उद्यम संबंधित कौशल सिखाए जाते हैं, जोप्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र के उद्योगों  के विकास की दृष्टि से अहम है।

कौशल विकास पर ध्यान केंद्रीत करना अच्छा है पर भारत जैसे देश को यह ध्यान रखना चाहिये कि वह अब भी यूनिवर्सल लिटरेसी के लक्ष्य तक नहीं पहुंच सका है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 74.04 % है। यह 9.2% की दशकिय विकास (2001-2011) से बढ़ रही है। उससे भी चिंताजनक स्थिती है कि महिलाओं और पुरूषों की साक्षरता दर में बड़ा अंतर होना। 2011 जनगणना के अनुसार भारत में पुरूषों की साक्षरता दर 82.14% है और महिलाओं की साक्षरता दर 65.40% है। यह दर्शाता है कि हम आज भी महिलाओं शिक्षा देना तो दूर उन्हें साक्षर भी नहीं कर पाए हैं।

भारत ऐतिहासिक रूप से शैक्षिक रूप से पीछड़े हुए देशों में से एक है क्योंकि यहां अंधविश्वास और अतार्किक बातों को ज्यादा महत्व दिया गया है। केंद्र एंव राज्य सरकारों को शिक्षा के क्षेत्र में एक साथ मिलकर काम करना चाहिये। साक्षरता बढ़ाने के लिए लोगों के बीच जागरूकता के अलावा उनको प्रोत्साहन देना होगा। बच्चों की शिक्षा की दिशा में कड़े कानून बनाने की जरूरत है। स्कूलों, शिक्षकों की पहुंच बढ़ाने की जरूरत है। शिक्षा के स्तर को उठाने की जरूरत है। बदलते समाज की जरूरतों के अनुसार शिक्षा में भी बदलाव लाना जरूरी है। सब लोगों तक शिक्षा की पहुंच बनाना सरकार की जिम्मेदारी है। स्कूल के समय, शिक्षकों को स्टूडेंट फ्रेंडली बनाना होगा, उन्हें जरूरी सुविधाएं मुहैया करनी होगी।

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भारत में निरक्षता के बड़े पैमाने पर होने का कारण लोगों के बीच जागरूकता का न होना, गरीबी और शिक्षा का रोजगारपरक न होना है। साक्षरता बढ़ाने के लिए लोगों के बीच जागरूकता के साथ उनको प्रोत्साहन देना होगा। गरीबी की समस्या के कारण देश में बच्चों की एक बड़ी आबादी को परिवार के भरण-पोषण के लिए काम करना पड़ता है। हमारे यहां ज्यादातर स्कूलों का शेड्यूल सुबह में शुरू होता है और दिन के 3-4 बजे समाप्त हो जाता है। ऐसे में इन गरीब बच्चों के लिए शिक्षा हासिल करना मुमकिन नहीं होता है क्योंकि जो स्कूल का समय होता है, उस दौरान वह काम कर रहे होते हैं। उनकी समस्या को देखते हुए स्कूलों के शेड्यूल को लचीला बनाया जाना चाहिए ताकि वे पढ़ाई के साथ-साथ कमाई भी कर सकें। कौशल विकास के लिए वोकेशनल स्किल में ट्रेनिंग को बेहतर करना होगा।