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संशोधित जीडीपी से राजकोषीय घाटा 2019-20 में 3.1 फीसदी रहेगा: मुख्य आर्थिक सलाहकार

कृष्णमूर्ति सुब्रह्मण्यम कहते हैं कि पूर्व जीडीपी आंकड़ों के आधार पर भी सरकार इस साल का लक्ष्य हासिल करने में महज 0.03 फीसदी यानी कुछ ही हजार करोड़ रुपये से विफल रही है.

Updated on: 07 Feb 2019, 08:50 AM

नई दिल्ली:

मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रह्मण्यम का मानना है कि संशोधित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े शामिल किए जाने के बाद राजकोषीय घाटा फिसलकर असल में 3.1 फीसदी पर आ जाएगा. इसलिए वह वित्त वर्ष 2019-20 में वित्तीय घाटा लक्ष्य को बढ़ाकर 3.4 फीसदी किए जाने से चिंतित नहीं हैं. कृष्णमूर्ति सुब्रह्मण्यम कहते हैं कि पूर्व जीडीपी आंकड़ों के आधार पर भी सरकार इस साल का लक्ष्य हासिल करने में महज 0.03 फीसदी यानी कुछ ही हजार करोड़ रुपये से विफल रही है.

कृष्णमूर्ति वित्तीय समेकन की दिशा में सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से संतुष्ट हैं. उन्होंने कहा कि राज्यों को केंद्र द्वारा 42 फीसदी की बड़ी रकम का हस्तांतरण होने और सातवें वेतन आयोग के लागू होने के बावजूद देश की वित्तीय-व्यवस्था नियंत्रित रही.

वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने बजट के बाद एक साक्षात्कार में कहा, "बजटीय अनुमान के अनुसार, वित्त वर्ष 2019 में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3.34 था. वास्तविक आंकड़ा 3.36 फीसदी रहने का अनुमान है. परंपरानुसार, यह मोटे तौर 3.4 फीसदी माना जाता है. इस प्रकार वास्तविक फिसलन 0.02 फीसदी है, जोकि महज कुछ हजार करोड़ रुपये के तुल्य है."

उन्होंने कहा कि पुराने जीडीपी आकलन के आधार पर राजकोषीय घाटे का आंकड़ा 3.36 फीसदी है और इसमें संशोधित आंकड़ों का इस्तेमाल नहीं किया गया है, जोकि पिछले गुरुवार को जारी किए गए थे.

उन्होंने बताया, "अगर आप संशोधित जीडीपी विकास दर का उपयोग करें तो हमारा आकलन है कि अगले वित्त वर्ष का अधार 225 लाख करोड़ रुपये होगा, जिससे राजकोषीय घाटा फिसलकर 3.1 फीसदी रह जाएगा."

मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा, "हमें उन आंकड़ों का इस्तेमाल करने से पहले उनका अध्ययन करना है."

उन्होंने कहा कि सरकार ने राजकोषीय विवेक का काफी अच्छी तरह अनुपालन किया है. उन्होंने भरोसा जताया कि राजकोषीय दायित्व व बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम के अनुसार, इसे घटाकर 2021 तक तीन फीसदी तक लाने की दिशा में प्रयास जारी है.

उन्होंने कहा, "इस बात पर गौर करना काफी अहम है कि राज्यों को 42 फीसदी का बड़ा हिस्सा (राजस्व का) हस्तांतरित किए जाने और सातवें वेतन आयोग (की सिफारिशें) को लागू किए जाने के बावजूद राजकोषीय घाटे का यह आंकड़ा हासिल हुआ है."

उन्होंने कहा, "इस बात का इतिहास है कि जब कभी वेतन आयोग की सिफारिशें लागू की गई हैं, तब राजकोषीय घाटे में बड़ा उछाल आया है, लेकिन (इस साल) ऐसा नहीं हुआ है. सरकार राजकोषीय विवेक के प्रति वचनबद्ध है और मुझे उस मोर्चे पर कोई चिंता नहीं है."

अंतरिम बजट में पांच लाख रुपये तक की आय पर आयकर शून्य किए जाने पर अर्थशास्त्री कृष्णमूर्ति ने कहा कि उपभोग को प्रोत्साहन देने के लिए इसकी आवश्यकता थी और सरकार ने नागरिकों को अधिक खर्च योग्य आय प्रदान करके वहीं किया है.

उन्होंने कहा, "हम प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं, खासतौर से वैश्विक स्तर, ऐसे में घरेलू अर्थव्यवस्था में मजबूत क्रय शक्ति बनाना हमारे लिए काफी अहम है. इसलिए मध्यम वर्ग के हाथ में खर्च योग्य आय देना महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमारी 60 फीसदी संवृद्धि उपभोग आधारित है."

उन्होंने कहा कि उपभोग बढ़ने से इसका असर आर्थिक विकास पर देखने को मिलेगा.

देश में नौकरियों की कमी के मसले पर उन्होंने कहा, "नौकरियां मांग और आपूर्ति दोनों के नतीजे होती हैं. हम आपूर्ति पर सवाल करते हैं कि क्या हम पर्याप्त नौकरियां पैदा कर रहे हैं. मांग पक्ष का मतलब असल में लोगों की नौकरियां हासिल करने की क्षमता से है."

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उन्होंने कहा, "यह काम कौशल के माध्यम से किया जाता है, जोकि रातभर में नहीं होता है.इसमें समय लगता है.स्किल इंडिया अभियान और निवेश के नतीजे देखने को मिल रहे हैं."