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न्यूनतम स्तर पर खुदरा महंगाई दर, औद्योगिक उत्पादन घटा, RBI पर ब्याज में कटौती का दबाव बढ़ा

मई महीने में खुदरा महंगाई दर कम होकर 2.18 फीसदी हो गई है। सरकार ने 2012 से खुदरा महंगाई दर के आंकड़ों को अलग से जारी करना शुरू किया था, जिसके बाद से यह न्यूनतम स्तर है।

Updated on: 13 Jun 2017, 07:36 AM

highlights

  • मई महीने में खुदरा महंगाई दर कम होकर 2.18 फीसदी हो गई है
  • 2012 से खुदरा महंगाई दर का यह न्यूनतम स्तर है
  • पिछले साल 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के बाद से लगातार सातवें महीने खुदरा महंगाई दर में गिरावट है

New Delhi:

मई महीने में खुदरा महंगाई दर कम होकर 2.18 फीसदी हो गई है। सरकार ने 2012 से खुदरा महंगाई दर के आंकड़ों को अलग से जारी करना शुरू किया था, जिसके बाद से यह न्यूनतम स्तर है। वहीं अप्रैल महीने में औद्योगिक उत्पादन की दर 3.1 फीसदी रही है जो मार्च में 2.7 फीसदी थी।

पिछले साल 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के बाद से लगातार सातवें महीने खुदरा महंगाई दर में गिरावट है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने खुदरा महंगाई दर को 4 फीसदी से कम करने का लक्ष्य तय कर रखा है। मई महीने में आया महंगाई का आंक़ड़ा सरकार और आरबीआई दोनों के लिए राहत की खबर है। अप्रैल महीने में खुदरा महंगाई दर 2.99 फीसदी थी।

महंगाई के नए आंकड़ों के सामने आने और बेहतर मानसून की भविष्यवाणी के बाद आने वाले दिनों में आरबीआई पर ब्याज दरों में कटौती के लिए पड़ने वाले दबाव को टालना मुश्किल होगा।

आरबीआई ने ब्याज दरों में नहीं किया बदलाव

गौरतलब है कि 7 जून को आरबीआई ने अपनी समीझा बैठक में ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया था।

2017-18 की अपनी दूसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में बुधवार को ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करते हुए इसे 6.25 फीसदी पर बरकरार रखा था। हालांकि बैठक से पहले सरकार और कॉरपोरेट जगत ने ब्याज दरों में कटौती की मांग की थी।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था, 'ब्याज दरों में कटौती के लिए इससे बेहतर समय नहीं हो सकता।'

पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में जीडीपी के कम होकर 6.1 फीसदी होने के बाद से कॉरपोरेट जगत दरों में कटौती की मांग कर रहा है, जो पिछले दो सालों का न्यूनतम ग्रोथ रेट है। इसके साथ ही बेहतर मानसून की भविष्यवाणी भी आरबीआई के लिए दबाव का कारण होगी।

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मानसून काफी अहम होता है। दो सालों के सूखे के बाद मानसून के बेहतर रहने की स्थिति का सीधा संबंध महंगाई से होता है। बेहतर मानसून की वजह से ग्रामीण इलाकों में अच्छी पैदावार होती है, जिसे खाद्य महंगाई दर काबू में रहती है।

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