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वित्त वर्ष 2017-18 में बैंकों का सकल एनपीए में 11.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी: रिपोर्ट

वित्त वर्ष 2016-17 में बैंकिंग प्रणाली का सकल एनपीए 9.3 प्रतिशत पर था. वहीं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सकल एनपीए 11.7 प्रतिशत था.

Updated on: 28 Dec 2018, 11:22 PM

नई दिल्ली:

बैंकों की सकल गैर निष्पादित आस्तियां (GNPA) वित्त वर्ष 2017-18 में बढ़कर 11.2 प्रतिशत या 10,390 अरब रुपये पर पहुंच गईं. एक साल पहले बैंकिंग प्रणाली का सकल एनपीए 9.3 प्रतिशत पर था. भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार इस दौरान कुल GNPA में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की GNPA 8,950 करोड़ रुपये थी. इस तरह सरकारी बैंकों में का GNPA उनके सकल रिण के 14.6 प्रतिशत के बराबर थीं.

वित्त वर्ष 2016-17 में बैंकिंग प्रणाली का सकल एनपीए 9.3 प्रतिशत पर था. वहीं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सकल एनपीए 11.7 प्रतिशत था. रिजर्व बैंक की ‘बैंकिंग का रुख और प्रगति 2017-18’ रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2017-18 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सकल एनपीए पुनर्गठित ऋण के एनपीए बनने और एनपीए की बेहतर तरीके से पहचान की वजह से बढ़ा.

जहां तक शुद्ध एनपीए अनुपात की बात है, पिछले वित्त वर्ष में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की स्थिति में उल्लेखनीय रुप से बिगड़ी. इन बैंकों में शुद्ध एनपीए बढ कर आठ प्रतिशत पर पहुंच गया, जो उससे एक साल पहले 6.9 प्रतिशत था.

निजी क्षेत्र के बैंकों का 2017-18 में सकल एनपीए 4.7 प्रतिशत पर था है, जो उससे पिछले वित्त वर्ष में 4.1 प्रतिशत था. रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा अपने बही खाते को साफ सुथरा करने के गहन प्रयासों की वजह से उनका सकल एनपीए अनुपात घटा है.

निजी बैंकों द्वारा एनपीए को बट्टे खाते में डालने के ऊंचे स्तर तथा बेहतर वसूली से उनका सकल एनपीए घटा है. विदेशी बैंकों की संपत्ति की गुणवत्ता बीते वित्त वर्ष में मामूली सुधरी. इन बैंकों का एनपीए 3.8 प्रतिशत थो उससे एक वर्ष पहले 4 प्रतिशत के स्तर पर था. वित्त वर्ष 2017-18 में कुल एनपीए में संदिग्ध किस्म के ऋणों की राशि 5,110 अरब रुपये तक पहुंच गयी, कुल कर्ज का 6.7 प्रतिशत है.

इसका मुख्य हिस्सा सरकारी बैंकों के खातों में रहा. सरकारी बैंकों में ऐसे बैंकों का अनुपात 9 प्रतिशत था. वित्त वर्ष 2017-18 में फंसे कर्जों को तेजी से बट्टेखाते में डालने के निर्णयों से निजी बैंकों के डूबे और घाटे वाले रिणों का हिस्सा घटकर क्रमश: 1.1 प्रतिशत और 0.2 प्रतिशत पर आ गया था.

बीते वित्त वर्ष में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बड़े खातों (पांच करोड़ रुपये या उससे अधिक कर्ज वाले) के सकल एनपीए का हिस्सा बढ़कर 23.1 प्रतिशत हो गया, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 18.1 प्रतिशत पर था. रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते वित्त वर्ष में रत्न एवं आभूषण क्षेत्र का कुल एनपीए बढ़ा है. इसकी वजह पंजाब नेशनल बैंक का 14,000 करोड़ रुपये का घोटाला है.

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इस घोटाले के मुख्य आरोपी हीरा और जेवरात कारोबारी नीरव मोदी और उसके मामा मेहुल चोकसी हैं.

क्या होता है नॉन परफॉर्मिंग एसेट?

जब कोई कर्ज़दार अपने बैंक को ईएमआई भरने में नाकाम रहता है, तब उसका लोन अकाउंट नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) कहलाता है. नियमों के हिसाब से जब किसी लोन की ईएमआई, प्रिंसिपल या इंटरेस्ट ड्यू डेट के 90 दिन के भीतर नहीं आती है तो उसे एनपीए में डाल दिया जाता है. यानी कि बैंक को जब किसी लोन से रिटर्न मिलना बंद हो जाता है तब वह उसके लिए एनपीए या बैड लोन हो जाता है.

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लोन के कई क्लासिफिकेशन हैं- स्टैंडर्ड, सब-स्टैंडर्ड, डाउटफुल और लॉस एसेट. लोन पर डिफॉल्ट के चलते बैंकों पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़े, इसके लिए आरबीआई ने उसके लिए प्रोविजन करने का नियम बनाया है. बैंक को प्रोविजन के बराबर की रकम बिजनेस से अलग रखनी पड़ती है.