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Budget 2017: देश की प्रगति का लेखा-जोखा है आर्थिक सर्वेक्षण, जानिये क्यों ज़रूरी है ये

आम बजट पेश होने के एक दिन पहले आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाता है। इसके जरिये सभी क्षेत्रों की तस्वीर पेश की जाती है और मौजूदा आर्थिक हालात के बारे में बताया जाता है।

Updated on: 31 Jan 2017, 12:29 PM

नई दिल्ली:

संसद का बजट सत्र आज शुरू हो रहा है। 1 फरवरी को बजट पेश किया जाएगा। आम बजट पेश होने के एक दिन पहले आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाता है। इसके जरिये सभी क्षेत्रों की तस्वीर पेश की जाती है और मौजूदा आर्थिक हालात के बारे में बताया जाता है।

आइये जानते हैं इस सर्वेक्षण से आर्थिक प्रगति से जुड़े किन बातों को संसद के ज़रिये जनता के सामने रखा जाता है? क्यों इसे महत्वपूर्ण माना जाता है।

1. वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण आम बजट से ठीक एक दिन पहले पेश किया जाता है। देश की अर्थव्यवस्था की ये सालाना रिपोर्ट होती है। देश के वित्त मंत्री इसे संसद में पेश करते हैं। ये अर्थव्यवस्था की आधिकारिक रिपोर्ट होती है और इस दस्तावेज को बजट सत्र के दौरान संसद के दोनों सदनों में पेश किया जाता है।

2. इसके ज़रिये देश की अर्थव्यवस्था के सामने चुनौतियों के बारे में बताया जाता है। पिछले बजट में किये गए प्रावधानों की जानकारी होती है और किन क्षेत्रों में कमियां रह गई हैं इसकी जानकारी दी जाती है। साथ ही सुधार के सुझाव भी दिये जाते हैं। इससे सरकार की नीतियों का खाका तैयार करने में मदद भी मिलती है।

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3. इकोनॉमिक सर्वे (आर्थिक सर्वेक्षण) सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार तैयार करते हैं। इस बार आर्थिक सर्वेक्षण 2017 मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम और उनकी टीम ने तैयार किया है।

4. इस सर्वे से आर्थिक विकास दर का पूर्वानुमान लगा कर आने वाले समय में देश की आर्थिक विकास की रफ्तार के बारे में बताया जाता है कि देश की अर्थव्यवस्ता तेज होगी या फिर धीमी रहेगी। इसमें वैश्विक आर्थिक परिवेश के बारे में भी जानकारी दी जाती है।

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5. आर्थिक सर्वे के जरिए आर्थिक नीतियों में बदलाव के सुझाव भी दिया जाते हैं। कई बार विस्तार से सरकार को सुझाव दिया जाता है।
दरअसल ये सालभर में अर्थव्यवस्था में हुए घटनाक्रमों की समीक्षा करता है। आर्थिक सर्वे सरकार के प्रमुख विकास कार्यक्रमों का क्या नतीजा रहा है इसका पूरा सार प्रस्तुत करता है।

6. आर्थिक सर्वे के जरिये जो सुझाव दिये जाते हैं वो सरकार के लिए बाध्य नहीं होती। इससे सरकार को नीतियों की दिशा तय करने में मदद मिलती है। कई बार ऐसा भी होता है कि पिछली सरकार की नीतियों से बिलकुल अलग होती हैं। ऐसा भी होता है कि सुझावों को सरकारें पूरी तरह से नकार देती हैं।

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