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GST के बाद देश का पहला बजट: जनता जनार्दन या रेटिंग एजेंसियां, किसे मिलेगी तरजीह या बनेगा संतुलन!

मोदी सरकार आज अपना अंतिम पूर्णकालिक बजट पेश करने जा रही है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराए जाने की आशंका के सच साबित होने की स्थिति में यह मोदी सरकार का आखिरी बजट हो सकता है।

Updated on: 01 Feb 2018, 09:11 AM

highlights

  • मोदी सरकार आज अपना अंतिम पूर्णकालिक बजट पेश करने जा रही है
  • देश में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स लागू होने के बाद पेश होने वाला पहला बजट
  • विशेषज्ञों के मुताबिक मोदी सरकार का यह बजट पॉपुलिस्ट उपायों पर केंद्रित होगा

नई दिल्ली:

मोदी सरकार आज अपना अंतिम पूर्णकालिक बजट पेश करने जा रही है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराए जाने की आशंका के सच साबित होने की स्थिति में यह मोदी सरकार का आखिरी बजट हो सकता है।

ऐसी स्थिति में बजट में सरकार का ध्यान आर्थिक सुधारों की बजाए राजनीतिक स्थितियों पर ज्यादा होगा। हालांकि इसे लेकर एकराय बनती नहीं दिख रही है।

राजकोषीय घाटे की स्थिति सरकार को पॉपुलिस्ट कदम उठाने से रोक सकती है। नीति आयोग के वाइस प्रेसिडेंट राजीव कुमार कह चुके हैं कि 2017-18 के लिये राजकोषीय घाटा तय बजट अनुमान से कुछ अधिक रह सकता है।

सरकार का 2017-18 में राजकोषीय जीडीपी का 3.2 प्रतिशत तथा 2018-19 में 3.0 प्रतिशत रखने का लक्ष्य है।

गौरतलब है कि आर्थिक सर्वेक्षण में भी सरकार इस बात की तरफ इशारा कर चुकी है कि आने वाले दिनों में कच्चे तेल की कीमतों में होने वाली बढ़ोतरी इस मोर्चे पर सरकार की समस्या को बढ़ा सकती है। 

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ऐसी परिस्थिति में वित्त मंत्री अरुण जेटली के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती दोनों स्थितियों के बीच संतुलन साधने की होगी।

राजकोषीय घाटे के मोर्चे पर ढील देकर मोदी सरकार रेटिंग एजेंसियों की नाराजगी मोल लेने से बचना चाहेगी, जो अभी तक सरकार के आर्थिक सुधारों के उपायों पर मेहरबान रही हैं।

वहीं दूसरी तरफ इस बजट से देश के मध्य वर्ग, किसान और कारोबारियों को खुश करना चाहेंगे, जिन्होंने नोटबंदी और जीएसटी के बाद सरकार की तरफ से मिलने वाली राहत से उम्मीदें लगा रखी है।

नोटबंदी और जीएसटी से सबसे ज्यादा नुकसान असंगठित क्षेत्र, कृषि और छोटे एवं मझोले कारोबारियों को उठाना पड़ा है।

जीएसटी के बाद सरकार का पहला बजट

देश में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स लागू होने के बाद यह पहला बजट होने जा रहा है।

जीएसटी ने देश में मौजूद करीब एक दर्जन से अधिक अप्रत्यक्ष करों की जगह ली है। इस वजह से बजट में सरकार के पास जनता को राहत देने के लिए वैसे भी ज्यादा गुंजाइश नहीं बचती है।

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विशेषज्ञों का अनुमान है कि जीएसटी लागू होने की वजह से देश के राजस्व में आई गिरावट की भरपाई कुछ नए टैक्स लगाकर की जा सकती है।

वहीं एक दूसरे धड़े का मानना है कि कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और अगले आम चुनाव की वजह से सरकार लोकलुभावन नीतियों की घोषणा कर सकती है। हालांकि सरकार इन संभावनाओं को कई मौके पर खारिज कर चुकी है।

नीति आयोग के वाइस प्रेसिडेंट राजीव कुमार और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पॉपुलिस्ट बजट की संभावनाओं को खारिज कर चुके हैं।

राजनैतिक-आर्थिक होगा देश का आम बजट

हालांकि औद्योगिक संगठन सरकार की इस दलील से सहमत नहीं है। उनका मानना है कि मोदी सरकार का यह बजट 'राजनैतिक आर्थिक' बजट होगा।

औद्योगिक संगठन एसोचैम की तरफ से जारी रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि भारतीय अर्थव्यवस्था नोटबंदी और गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) के प्रभाव से उबरते हुए 7 फीसदी के ग्रोथ रेट को छू सकती है, हालांकि इस दौरान सरकार की नीतियां ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ झुकी होंगी।

गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों के पहले सामने आई इस रिपोर्ट में कहा गया था कि 2018 में गुजरात समेत देश के अन्य प्रमुख राज्यों में विधानसभा चुनावों के खत्म होने के बाद भारतीय कारोबारी जगत को राजनीतिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखना होगा।

इसमें कहा गया है कि इन दोनों चुनावों के नतीजों का असर न सिर्फ सरकार के आर्थिक फैसलों पर होगा, बल्कि आगामी बजट पर भी होगा, जो एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) का अंतिम पूर्ण बजट होगा।

रिपोर्ट में कहा गया था, '2019 के लोकसभा चुनावों से पहले 2018 में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। निश्चित रूप से केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों पर मतदातओं की भावना का असर होगा। जिसके नतीजे में कोई भी कठिन सुधार जैसे श्रम कानून को लचीला बनाना संभव नहीं होगा। इसलिए इस मोर्चे पर भारतीय कारोबारी जगत को ज्यादा उम्मीदें नहीं लगानी चाहिए।'

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