जानें अपना अधिकार: ग़रीबों को न्याय के लिए सरकारी खर्च पर वकील रखने का हक़
इसमें न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि गरीबों और कमजोर वर्गों के लिए निशुल्क कानूनी सहायता मुहैया कराई जाए। यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 39 ए के तहत दिया गया है।
नई दिल्ली:
भारतीय संविधान में देश की जनता को समानता के अधिकार की तरह न्याय का अधिकार भी दिया गया है। इसमें न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि गरीबों और कमजोर वर्गों के लिए निशुल्क कानूनी सहायता मुहैया कराई जाए। यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 39 ए के तहत दिया गया है।
1987 में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम पास किया गया था, जिसके मुताबिक प्रत्येक राज्य का यह उत्तर दायित्व है कि सभी को न्याय मिल सके।
इसके तहत एक तंत्र की स्थापना करने को कहा गया था जिससे कमजोर वर्ग के लोगों तक कानूनी सहायता सुगम रूप से पहुंच सके। इस तंत्र का काम कार्यक्रम लागू करना, उसका मूल्यांकन और निगरानी करना है।
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इस अधिनियम के पास होने के बाद प्रत्येक राज्य में कानूनी सहायता प्राधिकरण, प्रत्येक उच्च न्यायालय में उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति का गठन किया गया। जिला कानूनी सहायता प्राधिकरण और तालुका कानूनी सेवा समितियां जिला और तालुका स्तर पर बनाई गई हैं।
इस कानून के तहत कई तरह की स्कीम शुरू की गईं हैं जिनमें से सबसे ज्यादा प्रचलित स्कीम है लोक अदालत।
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इन सुविधाओं को किया गया शामिल
> किसी भी कानूनी कार्यवाही में कोर्ट की फीस से लेकर सभी तरह के प्रभार अदा करना
> कानूनी कार्यवाही में वकील उपलब्ध कराना
> कानूनी कार्यवाही में आदेशों आदि की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करना
> कानूनी कार्यवाही में अपील और दस्तावेज का अनुवाद और छपाई सहित पेपर बुक तैयार करना
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इन्हें मिलेगी मुफ्त कानूनी सहायता
> असहाय महिलाएं और बच्चे
> अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्य
> औद्योगिक श्रमिक
> बड़ी आपदाओं से प्रताड़ित लोग, जैसे हिंसा, बाढ़, सूखा, भूकंप, औद्योगिक आपदा आदि
> विकलांग व्यक्ति
> पुलिस की हिरासत में आरोपी
> वे लोग जिनकी सालाना इनकम 50 हजार से ज्यादा नहीं है
> बेगार या अवैध मानव व्यापार के शिकार लोग
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