लिव इन रिलेशनशिपः क़ानून इसकी इजाज़त देता है या नहीं
देश के युवाओं में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर अब भी पूरी तरह से जागरुकता नहीं आई है। कई बार लोग इसे क़ानून अपराध मानते हैं लेकिन ऐसा नहीं है।
नई दिल्ली:
देश के युवाओं में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर अब भी पूरी तरह से जागरुकता नहीं आई है। कई बार लोग इसे क़ानून अपराध मानते हैं लेकिन ऐसा नहीं है।अगर कोई वयस्क लड़का और लड़की अपनी मर्जी से किसी दूसरे के साथ रहना चाहते हैं तो क़ानून इसकी इजाज़त देती है।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जब दो लोग लंबे समय से एक-दूसरे के साथ रह रहे हैं और इनके बीच प्रगाढ़ संबंध है तो उन्हें शादीशुदा माना जाएगा। हालांकि अब तक इस संबंध में किसी तरह का कोई ठोस क़ानून नहीं बन पाया है।
हालांकि ये क़ानून उन पर लागू होता है जो कपल लिव इन में रहने के लिए सक्षम है, अपनी मर्जी से एक-दूसरे के साथ रहना चाहते हैं, मानसिक रूप से अस्थिर नहीं है, किसी और से विवाहित या तलाकशुदा नहीं हैं।
शादी के बाद लिव इन अपराध
अगर कोई लड़का या लड़की कानूनी तौर पर शादीशुदा है और अपने वर्तमान साथी को छोड़कर किसी और के साथ लिव इन में रह रहे हैं तो यह पूरी तरह से गैरकानूनी माना जाएगा।
लिव इन में हुए बच्चे का अधिकार
ऐसे कपल जो लिव इन में रह रहे हैं, उन्हें कानूनन शादी के बाद हुए बच्चे की तरह अधिकार दिए गए हैं। जैसे कि बच्चे को उसके पिता के द्वारा गुजारा भत्ता, प्रॉपर्टी में एक हिस्सा देना।
घरेलू हिंसा भी लिव इन पर लागू
लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को घरेलू हिंसा एक्ट में समान अधिकार दिए गए हैं। ऐसे में लिव इन में रही रहीं महिलाएं भी घरेलू हिंसा कानून के तहत शिकायत कर सकती हैं।
नहीं बना कोई ठोस कानून
देश में कोर्ट के सामने पहली बार लिव इन का मुद्दा 1978 में आया था। जिसके बाद कोर्ट ने लिव इन को मान्यता दी। हालांकि अब तक देश में इससे संबंधित कोई ठोस क़ानून नहीं बन पाया है।
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