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इन आर्थिक नीतियों ने नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को दोबारा पहुंचाया सत्ता के दरवाजे पर, पढ़ें पूरी खबर

5 साल के कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने कई आर्थिक नीतियां लागू की जिसको काफी सराहा गया. हालांकि उनकी नोटबंदी जैसी कुछ नीतियों का विपक्ष ने काफी विरोध भी किया.

Updated on: 31 May 2019, 07:14 AM

highlights

  • प्रधानमंत्री बनने के बाद ठीक तीसरे महीने में प्रधानमंत्री जन धन योजना का शुभारंभ
  • नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी को सर्वाधिक विवादास्पद, विघटनकारी कहा गया
  • बेनामी लेन-देन (निषेध) संशोधन अधिनियम से कालेधन पर लगाम लगा

नई दिल्ली:

2014 में जोरदार तरीके से सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी के सामने महंगाई, काला धन, भ्रष्टाचार जैसी कई समस्याएं चुनौती बनकर खड़ी थीं. नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद धीरे-धीरे अपनी सरकार की आर्थिक नीतियों को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया. अपने 5 साल के कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने कई आर्थिक नीतियां शुरू की जिसको काफी सराहा गया.

हालांकि उनकी नोटबंदी जैसी कुछ नीतियों का विपक्ष ने काफी विरोध भी किया. आज इस रिपोर्ट में हम बात करेंगे नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में शुरू की गई योजनाओं की जिसका उन्हें मौजूदा लोकसभा चुनाव में काफी फायदा हुआ और वे दोबारा सत्ता के शिखर पर पहुंचने में कामयाब हुए.

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प्रधानमंत्री जन धन योजना - Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana
प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद ठीक तीसरे महीने में नरेंद्र मोदी ने 'प्रधानमंत्री जन धन योजना' का शुभारंभ कर दिया. जन धन योजना बैंकिंग सुविधाओं से वंचित लोगों को अपना बैंक खाता खोलने, डेबिट कार्ड प्राप्त करने और बीमा एवं पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं तक अपनी पहुंच बनाने में काफी मददगार साबित हुई.

विमुद्रीकरण (नोटबंदी) - Demonetisation
मोदी सरकार के नोटबंदी को सर्वाधिक विवादास्पद, विघटनकारी कहा गया. विपक्ष ने आरोप लगाया कि इससे अर्थव्यवस्था को भारी नुकसाना उठाना पड़ेगा. हालांकि सरकार ने उच्च पदों या स्थानों पर व्‍याप्‍त भ्रष्टाचार और अर्थव्यवस्था में व्यापक काले धन की रोकथाम के लिए इसे जरूरी कदम बताया. इस योजना का एक अन्‍य उद्देश्य सीमा पार से नकली नोटों के आगमन और आतंक के वित्त पोषण पर अंकुश लगाना भी था.

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वस्तु एवं सेवा कर - Goods and Services Tax
मोदी के सबसे बड़े सुधार, सार्वजनिक वित्त पर सर्वाधिक प्रभाव डालने में सक्षम एवं कर चोरी के खिलाफ सबसे मजबूत साधन और स्वतंत्र भारत के इतिहास में यकीनन सबसे जटिल कानून ‘वस्‍तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को उनके कार्यकाल के 39वें महीने में लांच किया गया था.

रियल एस्टेट (विनियमन एवं विकास) अधिनियम
मोदी सरकार के 31वें महीने में एक और महत्वपूर्ण नीति लागू की गई जिसके तहत रियल एस्टेट (विनियमन एवं विकास) अधिनियम की शुरुआत हुई. भारत में नीति निर्माण के उल्‍लेखनीय और दुखद विरोधाभासों में से एक विरोधाभास अचल संपत्ति या रियल एस्टेट से जुड़ा हुआ है.

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दिवाला एवं दिवालियापन संहिता - THE INSOLVENCY AND BANKRUPTCY CODE
18 मई, 2018 को टाटा स्टील की एक सहायक कंपनी बामनीपाल स्टील ने 35,200 करोड़ रुपये में बीमार कंपनी भूषण स्टील में 72.65 प्रतिशत की नियंत्रणकारी या नियंत्रक हिस्सेदारी हासिल कर ली. यह दिवाला एवं दिवालियापन संहिता (आईबीसी) के तहत सुलझाया गया पहला बड़ा दिवालियापन मामला है. आईबीसी एक नया कानून है जिसे मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल के 24वें महीने में प्रस्तावित किया और संसद ने इसे कानून का रूप प्रदान कर दिया.

बेनामी लेन-देन (निषेध) संशोधन अधिनियम - Benami Transactions (Prohibition) Act
मोदी सरकार के कार्यकाल में काले धन के खिलाफ बने कानून को और ज्‍यादा कठोर बनाया गया. 'बेनामी' लेन-देन के तहत किसी एक व्यक्ति के नाम पर संपत्ति की खरीद की जाती है, लेकिन उसका वित्‍त पोषण किसी दूसरे व्‍यक्ति द्वारा किया जाता है, जिसे यह कानून नियंत्रित करता है.

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हाइड्रोकार्बन अन्वेषण एवं लाइसेंसिंग नीति - Hydrocarbon Exploration and Licensing Policy (HELP)
मोदी सरकार ने 19 साल पुरानी ‘नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति (नेल्‍प)’ के स्‍थान पर ‘हाइड्रोकार्बन अन्‍वेषण एवं लाइसेंसिंग नीति (हेल्प)’ के जरिए ऊर्जा क्षेत्र में सरकार और निजी कंपनियों के बीच कायम गतिरोध के मकड़जाल का खात्मा कर दिया.

मध्यस्थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम (एसीएए) - (Arbitration and Conciliation (Amendment) Bill)
मोदी सरकार ने मध्यस्थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम (एसीएए) को संसद में पारित कराते हुए एक ऐसा कानून बनाया जिसने वाणिज्यिक विवादों की मध्यस्थता में तेजी ला दी है.
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नरेंद्र मोदी आर्थिक मोर्चे पर दिखे मजबूत
अटल बिहारी वाजपेयी के मुकाबले नरेंद्र मोदी आर्थिक मोर्चे पर काफी सशक्त दिखे. हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे. पहले 13 दिन तक, फिर 13 महीने तक और उसके बाद 1999 से 2004 तक का कार्यकाल उन्होंने पूरा किया. अटल बिहारी वाजपेयी ने निजीकरण को काफी बढ़ाया. वाजपेयी की इस रणनीति के पीछे कॉर्पोरेट समूहों की बीजेपी से सांठगांठ का आरोप भी लगा. वाजपेयी ने 1999 में अपनी सरकार में विनिवेश मंत्रालय के तौर पर एक अनोखा मंत्रालय का गठन किया था. इसके मंत्री अरुण शौरी बनाए गए थे.

शौरी के मंत्रालय ने वाजपेयी जी के नेतृत्व में भारत एल्यूमिनियम कंपनी (बाल्को), हिंदुस्तान ज़िंक, इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड और विदेश संचार निगम लिमिटेड जैसी सरकारी कंपनियों को बेचने की प्रक्रिया शुरू की थी. वाजपेयी से पहले देश में बीमा का क्षेत्र सरकारी कंपनियों के हवाले ही था, लेकिन वाजपेयी सरकार ने इसमें विदेशी निवेश के रास्ते खोले. उन्होंने बीमा कंपनियों में विदेशी निवेश की सीमा को 26 फीसदी तक किया था, जिसे 2015 में नरेंद्र मोदी सरकार ने बढ़ाकर 49 फीसदी तक कर दिया.

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मनमोहन सिंह को उदारीकरण के लिए याद किया जाता है
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भारत में उदारवादी अर्थव्यवस्था का जनक माना जाता है. 1991 के आर्थिक संकट के बाद केंद्र सरकार ने आर्थिक उदारीकरण की नीति आरम्भ कर दी. भारत आर्थिक पूंजीवाद को बढ़ावा देने लग गया और विश्व की तेजी से बढ़ती आर्थिक अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनकर उभरा. आर्थिक सुधारों की जो रूपरेखा, नीति और ड्राफ्ट तैयार किया, उसकी दुनिया भर में प्रशंसा की जाती है. मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाजार से जोड़ने के बाद उन्होंने आयात और निर्यात के नियम भी सरल किए. साथ ही उन्होंने रोजगार गारंटी योजना, आधार कार्ड योजना, भारत और अमेरिका के बीच हुई न्यूक्लियर डील, शिक्षा का अधिकार आदि का श्रेय भी उन्हें जाता है.