देश की आर्थिक वृद्धि दर में लगातार आती गिरावट और बढ़ती मुद्रास्फीति, RBI की नई चुनौती
भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत अधिकारी शक्तिकांत दास ने गवर्नर का पद संभाल कर अपने पूर्ववर्ती गवर्नर उर्जित पटेल के अचानक इस्तीफा देने से पैदा चिंताओं को जल्दी ही निर्मूल करने में सफलता हासिल की और रिजर्व बैंक के पास जमा अतिरिक्त धन को सरकार को ह
Mumbai:
वर्ष 2019 में आर्थिक नरमी से निपटने के सरकारी प्रयासों को समर्थन देने में सरगर्मी से लगे रहे भारतीय रिजर्व बैंक के लिए गहराती नरमी के मद्देनजर नए वर्ष में भी चुनौतियां कम नहीं दिखतीं. भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत अधिकारी शक्तिकांत दास ने गवर्नर का पद संभाल कर अपने पूर्ववर्ती गवर्नर उर्जित पटेल के अचानक इस्तीफा देने से पैदा चिंताओं को जल्दी ही निर्मूल करने में सफलता हासिल की और रिजर्व बैंक के पास जमा अतिरिक्त धन को सरकार को हस्तांतरित करने के पेंचीदे मुद्दे का समाधान निकाला. केन्द्रीय बैंक के समक्ष अर्थव्यवस्था में रिण वृद्धि को तेज करने, एनबीएफसी क्षेत्र की नकदी तंगी दूर करने और अब सहकारी बैंकों में उपजे संकट को साधने की चुनौतियां बनी हुई हैं.
देश की आर्थिक वृद्धि दर में लगातार आती गिरावट और बढ़ती मुद्रास्फीति भी रिजर्व बैंक के समक्ष नई चुनौती बनकर खड़ी हुई है. नये साल 2020 में रिजर्व बैंक को जहां एक ओर मुद्रास्फीति को उसके तय लक्ष्य चार प्रतिशत (दो प्रतिशत ऊपर...नीचे) के दायरे में साधना होगा वहीं आर्थिक वृद्धि को फिर से पटरी पर लाने के प्रयास करने होंगे. शक्तिकांत दास के ‘‘इतिहास का स्नातक’’ होने और रिजर्व बैंक के गवर्नर पद पर बैठने को लेकर कई लोगों ने संदेह जताया. पर दास ने इस पद पर एक साल बैठकर और रिजर्व बैंक के समक्ष आने वाली चुनौतियों का मुकाबला करने की मंशा जताकर इस संदेह को दूर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. 12 दिसंबर को दास को रिजर्व बैंक के गवर्नर पद पर एक साल पूरा हो गया.
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बैंकों से रिण उठाव में वृद्धि 7.8 प्रतिशत के दायरे में है जबकि एक साल पहले यह आंकड़ा 13.6 प्रतिशत पर था. और यदि ताजा अनुमान सही साबित होते हैं तो यह वृद्धि 58 साल के निचले सतर 6.5 से लेकर सात प्रतिशत के दायरे में रह सकती है. इससे पहले 1962 में बैंकों की रिण वृद्धि इस स्तर से नीचे 5.4 प्रतिशत रही थी. समाप्त हो रहे 2019 के दौरान रिजर्व बैंक ने जितनी तेजी से अपनी मुख्य नीतिगत दर में कमी की उतनी ही तेजी के साथ अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर भी नीचे आती चली गई. वर्ष की पहली तिमाही में जहां आर्थिक वृद्धि दर पांच प्रतिशत रही वहीं दूसरी तिमाही में यह और कम होकर 4.5 प्रतिशत रह गई. इतना ही नहीं रिजर्व बैंक ने भी इस साल फरवरी में रेपो दर में कटौती करने के बाद से रिजर्व बैंक ने आर्थिक वृद्धि के अपने घोषित अनुमान में भी 2.40 प्रतिशत से अधिक कमी कर दी है.
मुद्रास्फीति के मोर्चे पर भी बैंक को तगड़ा झटका लगा है. कुछ साल तय दायरे में रहने के बाद खुदरा मुद्रास्फीति में अचानक तेजी आने लगी और अब केन्द्रीय बैंक ने 2020 के लिये इसके 5.1 से 4.7 प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान लगाया है. वर्ष 2016 में हुई नोटबंदी के समय शक्तिकांत दास वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव पद पर थे और उन्होंने नोटबंदी के बाद देश में चली उठापटक को नियंत्रित करने में अहम् भूमिका निभाग. और यही वजह है कि वह सरकार और रिजर्व बैंक के बीच बढ़ते तनाव को शांत करने में सफल रहे. रिजर्व बैंक के अधिशेष से सरकार को एतिहासिक नकदी स्थानांतरित करने का मामला हो अथवा इस बारे में सुझाव देने के लिये गठित बिमल जालान समिति का गठन का हो दास ने इन मुद्दों को बखूबी आगे बढ़ाया.
सार्वजनिक क्षेत्र के संकट से जूझ रहे कमजोर बैंकों को रिजर्व बैंक के निगरानी दायरे से बाहर निकालने और जून 2019 में बैंकों के लिये गैर- निष्पादित राशि (एनपीए) के नये प्रारूप की बात हो शक्तिकांत दास ने निर्णय लिये और आगे बढ़े. उन्होंने सूक्ष्म लघु और मझोले उद्यमों की वित्त जरूरतों के लिये विशेष वित्तपोषण खिड़की की भी शुरुआत की. रिजर्व बैंक के गवर्नर के पद पर बैठने के बाद शक्तिकांत दास ने लगातार पांच बार में रेपो दर में कुल 1.35 प्रतिशत की कटौती कर शेयर बाजार, उद्योग की भूख को शांत करने के साथ ही नार्थ ब्लाक में बैठे अधिकारियों को भी खुश करने का काम किया. हालांकि इस दौरान केन्द्रीय बैंक के सबसे युवा डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अपना कार्यकाल समाप्त होने से छह माह पहले ही पद जून 2019 में इस्तीफा दे दिया.
हालांकि, रिजर्व बैंक के स्टाफ सहित जो भी शक्तिकांत दास को जानते हैं सभी ने उनके काम करने के तरीके का समर्थन किया है. शक्तिकांत दास ने सरकार और अन्य सभी संबद्ध पक्षों को साथ लेकर रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल को साथ लेकर चलने वाला बेहतर मंच बना दिया.
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