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कच्चे तेल (Crude Oil) का इंपोर्ट (Import) और खपत में कमी से देश में आर्थिक मंदी के संकेत

पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (PPAC) के अनुसार देश का तेल आयात वित्त वर्ष 2019 के 22.7 करोड़ टन के मुकाबले 2020 में 23.3 करोड़ टन रह सकता है.

Updated on: 20 May 2019, 10:40 AM

highlights

  • इस साल देश में ऑयल इंपोर्ट (Oil Import) में 3.5 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान 
  • 2019 के 22.7 करोड़ टन के मुकाबले 2020 में 23.3 करोड़ टन ऑयल इंपोर्ट का अनुमान
  • वित्त वर्ष 2019 में आर्थिक विकास दर अनुमान 7.2 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी किया गया

नई दिल्ली:

भारत में ऑयल इंपोर्ट (Oil Import) में मामूली बढ़त का अनुमान है. हालांकि हल्की वृद्धि दर से भले ही सरकार के खजाने पर भार हो लेकिन यह देश में लंबी आर्थिक सुस्ती का संकेत भी है. सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल तेल आयात में 3.5 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है.

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भारत जरूरत का 80 फीसदी करता है इंपोर्ट
जानकारी के मुताबिक भारत अपनी तेल की जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा इंपोर्ट करना पड़ता है. ऐसे में तेल का आयात कम होने से मांग और खपत में सुस्ती रहने का संकेत मिलता है. पेट्रोलियम मंत्रालय के अधीन पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (PPAC) के अनुसार देश का तेल आयात वित्त वर्ष 2019 के 22.7 करोड़ टन के मुकाबले 2020 में 23.3 करोड़ टन रह सकता है.

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घरेलू अर्थव्यवस्था में सुस्ती
तेल आयात की दर सुस्त होना सरकार के खजाने के लिए अच्छी खबर है लेकिन कच्चे तेल का आयात कम होने से भारतीय तेलशोधक कारखानों को कम तेल मिलेगा और पेट्रोल, डीजल व विमान ईंधन (ATF) की खपत में कमी आएगी. वर्ष 2018 की शुरुआत में सुधार के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में फिर वित्त वर्ष 2018-19 की तीसरी तिमाही में सुस्ती देखी गई और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर घटकर 6.6 फीसदी पर आ गई. अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती के कारण वित्त वर्ष 2019 में आर्थिक विकास दर अनुमान 7.2 फीसदी से घटाकर सात फीसदी कर दिया गया.

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क्रूड में मजबूती का घरेलू अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा असर
अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने भी भारत की आर्थिक विकास दर अनुमान वित्त वर्ष 2020 में घटाकर 7.3 फीसदी रहने का अनुमान जारी किया है. योजना आयोग (इनर्जी) के एक पूर्व सदस्य ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहा कि तेल आयात की दर कम होने से भारत के तेल आयात बिल में कटौती होगी और इससे चालू खाता घाटा का प्रबंधन करने में मदद मिलेगी लेकिन यह तेल के मौजूदा दाम का एक कारण होगा. अगर खाड़ी देशों में तनाव के कारण कच्चे तेल के दाम में उछाल आता है तो इससे देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार और सुस्त पड़ सकती है.