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अभिजीत बनर्जी का मोदी सरकार पर हमला, बोले- दबाव में हैं बैंक, मदद करने की स्थिति में नहीं केंद्र

जयपुर साहित्य महोत्सव के दौरान संवाददाताओं से बातचीत में बनर्जी ने कहा कि वाहन क्षेत्र में मांग में नरमी से भी पता चलता है कि लोगों में अर्थव्यवस्था को लेकर भरोसे की कमी है.

Updated on: 26 Jan 2020, 08:27 PM

जयपुर:

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने रविवार को कहा कि देश में बैंकिंग क्षेत्र दबाव में है और सरकार प्रोत्साहन पैकेज देकर इसे संकट से बाहर निकालने की स्थिति में नहीं है. जयपुर साहित्य महोत्सव के दौरान संवाददाताओं से बातचीत में बनर्जी ने कहा कि वाहन क्षेत्र में मांग में नरमी से भी पता चलता है कि लोगों में अर्थव्यवस्था को लेकर भरोसे की कमी है. उन्होंने कहा, ‘‘वित्तीय क्षेत्र फिलहाल सबसे बड़ा दबाव वाला केंद्र है. बैंक क्षेत्र दबाव में है और यह चिंता वाली बात है.

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वास्तव में सरकार प्रोत्साहन पैकेज देकर इसे संकट से उबार पाने की स्थिति में नहीं है....’’ बनर्जी ने कहा, ‘‘हम यह भी जानते हैं कि अर्थव्यवस्था में मांग में कमी के कारण कार और दोपहिया वाहनों की बिक्री नहीं हो रही. यह सब संकेत है कि लोगों को अर्थव्यवस्था में तीव्र वृद्धि होने के अनुमान पर भरोसा नहीं है. इसीलिए वे खर्च नहीं कर रहे हैं.’’ ‘गुड इकोनॉमिक्स फॉर हार्ड टाइम’ के लेखक ने यह भी कहा कि अर्थव्यवस्था में नरमी का देश में गरीबी उन्मूलन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा क्योंकि शहरी और गरीबी क्षेत्र आपस में जुड़े हैं.

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उन्होंने कहा, ‘‘गरीबी उन्मूलन इस आधार पर होता है कि शहरी क्षेत्र कम कौशल वाला रोजगार सृजित करता है और गांवों के लोगों को शहरी क्षेत्र में ऐसे रोजगार मिलते हैं, जिससे पैसा वापस गांव में आता है.’’ भारतीय-अमेरिकी अर्थशास्त्री ने कहा, ‘‘इस प्रकार से शहरी क्षेत्र से वृद्धि ग्रामीण क्षेत्र में जाती है, और जैसे ही शहरी क्षेत्र में नरमी आती है, गांवों पर असर पड़ता है. गांवों के लोगों को निर्माण क्षेत्र में रोजगार नहीं मिलता और इसका असर ग्रामीण क्षेत्र पर पड़ता है.’’

यह पूछे जाने पर कि अगर लोगों का आंकड़ों को लेकर भरोसा नहीं है, आर्थिक नीतियां कैसे काम करेंगी, उन्होंने कहा, ‘‘सरकार को इस मुद्दे को लेकर चिंतित होना चाहिए. इससे विदेशी निवेशक भी परेशान हैं.’’ बनर्जी ने कहा, ‘‘उन्हें नहीं पता कि वे कहां जा रहे हैं...मेरा मतलब है कि ये वास्तविक मसले हैं और सरकार को इस पर गौर करना चाहिए. यदि वह निवेश आकर्षित करने के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था में शामिल होना चाहती है, तब लोगों को सही आंकड़ा उपलब्ध कराना जरूरी है.’’ भाषा रमण सुमन सुमन