logo-image

बैंकों को राहत की उम्मीद नहीं, मार्च तक 9.5 लाख करोड़ रुपये होगा NPA

पहले से ही एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) के दबाव से जूझ रहे भारतीय बैंकों को निकट भविष्य में इससे निकलने का रास्ता नहीं दिख रहा है, बल्कि आने वाले दिनों में इसके और बढ़ने की ही उम्मीद है।

Updated on: 22 Jan 2018, 07:32 PM

highlights

  • बैंकों को इस साल भी एनपीए से राहत मिलने की उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है
  • भारतीय बैंकों का एनपीए मार्च 2018 तक तक बढ़कर 9.5 लाख करोड़ रुपये होने की उम्मीद है

नई दिल्ली:

पहले से ही एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) के दबाव से जूझ रहे भारतीय बैंकों को निकट भविष्य में इससे निकलने का रास्ता नहीं दिख रहा है, बल्कि आने वाले दिनों में इसके और बढ़ने की ही उम्मीद है।

भारतीय बैंकों का फंसा हुआ कर्ज (एनपीए) मार्च 2018 तक तक बढ़कर 9.5 लाख करोड़ रुपये होने की उम्मीद है, जबकि पिछले साल मार्च में यह रकम 8 लाख करोड़ रुपये थी।

एसोचैम-क्रिसिल के एक संयुक्त अध्ययन 'एआरसीज हेडेड फॉर ए स्ट्रकचरल शिफ्ट' के नाम से जारी रिपोर्ट में कहा गया कि 2018 के मार्च तक एनपीए के 11.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाने की उम्मीद है।

एसोचैम ने एक बयान में अध्ययन के हवाले से कहा, 'बैंकिंग सिस्टम में तनावग्रस्त परिसंपत्तियों का बढ़ता स्तर एसेट रिकंस्ट्रकशन कंपनियों (एआरसीज) को भारी अवसर प्रदान करता है, जो कि एनपीए के समाधान की प्रक्रिया में शामिल अहम स्टेकहोल्डर हैं।'

और पढ़ें: NPA के निपटारे के लिए RBI डिप्टी गवर्नर ने दिया अहम सुझाव, कहा-ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर हो बिक्री

इसमें, हालांकि यह कहा गया है कि पूंजी की कमी के कारण एआरसीज के विकास में काफी गिरावट आनेवाली है। 

रिपोर्ट में कहा गया, 'हालांकि 2019 के जून तक एआरसीज की विकास दर गिरकर 12 फीसदी के पास रहने की संभावना है, हालांकि एयूएम (प्रबंधन के अधीन संपत्ति) बढ़कर 1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है, जोकि बहुत बड़ा आकार है।'

इस अध्ययन में कहा गया कि बैंकों को तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के लिए किए गए प्रावधानों के ऊपर और अधिक प्रावधान किए जाने की उम्मीद है। वे उन परिसंपत्तियों को कम छूट पर बेच सकते हैं। इस प्रकार पूंजी की आवश्यकता बढ़ रही है।

अध्ययन में यह भी कहा गया कि दिवाला और दिवालियापन संहिता के प्रभावी क्रियान्वयन से लंबे समय तक मुकदमेबाजी से बचा जा सकेगा और तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के उद्योग की वसूली दर को सुधारने में मदद मिलेगी।

बिजली, मेटल और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्रों में सबसे ज्यादा तनावग्रस्त परिसंपत्तियां (फंसे हुए कर्ज) हैं। 50 तनावग्रस्त परिसंपत्तियों (जो प्रणाली में करीब 40 फीसदी तनावग्रस्त परिसंपत्तियों का निर्माण करती है) के एक विश्लेषण के मुताबिक धातु, विनिर्माण और बिजली क्षेत्र में क्रमश: 30 फीसदी, 25 फीसदी और 15 फीसदी तनावग्रस्त परिसंपत्तियां हैं, जबकि अन्य क्षेत्रों को मिलाकर कुल 30 फीसदी है।

और पढ़ें: दावोस बैठक से पहले WEF की रिपोर्ट जारी, चीन-पाक से नीचे फिसला भारत - कल मोदी करेंगे बैठक को संबोधित