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महंगाई का दोहरा झटका, खुदरा महंगाई के बाद थोक महंगाई दर में बढ़ोतरी

खुदरा महंगाई दर में बढ़ोतरी के बाद अब उपभोक्ताओं को दूसरा झटका लगा है। अक्टूबर महीने में थोक महंगाई दर बढ़कर 3.59 फीसदी हो गई, जो पिछले 6 महीने का उच्चतम स्तर है।

Updated on: 14 Nov 2017, 02:40 PM

highlights

  • खुदरा महंगाई दर में बढ़ोतरी के बाद अब उपभोक्ताओं को दूसरा झटका लगा है
  • अक्टूबर महीने में थोक महंगाई दर बढ़कर 3.59 फीसदी हो गई, जो पिछले 6 महीने का उच्चतम स्तर है
  • महंगाई दर में बढ़ोतरी के लिए खाद्य और पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की कीमतों में हुई बढ़ोतरी को जिम्मेदार माना जा रहा है

नई दिल्ली:

खुदरा महंगाई दर में बढ़ोतरी के बाद अब उपभोक्ताओं को दूसरा झटका लगा है। अक्टूबर महीने में थोक महंगाई दर बढ़कर 3.59 फीसदी हो गई, जो पिछले 6 महीने का उच्चतम स्तर है।

वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक सितंबर महीने में थोक महंगाई दर 2.6 फीसदी थी, जो अब बढ़कर 3.59 फीसदी हो गई है। वहीं पिछले साल की समान अवधि में थोक महंगाई दर 2.60 फीसदी थी।

महंगाई दर में बढ़ोतरी के लिए खाद्य और पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की कीमतों में हुई बढ़ोतरी को जिम्मेदार माना जा रहा है।

थोक महंगाई दर के पहले खुदरा महंगाई में हुई बढ़ोतरी ने बाजार और उपभोक्ताओं की चिंता को बढ़ा दिया है। इसके साथ ही भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की अगली समीक्षा बैठक में ब्याज दरों की कटौती की संभावनाओं पर पानी फिर गया है।

महंगा हुआ पेट्रोलियम और खाने-पीने का सामान

मासिक आधार पर अक्टूबर में खाने-पीने की चीजों की महंगाई दर 1.99 फीसदी से बढ़कर 3.23 फीसदी हो गई है वहीं ईंधन और बिजली की महंगाई दर 9.01 फीसदी से बढ़कर 10.52 फीसदी हो गई।

इस दौरान खाने-पीने के सामानों की कीमतों में भी बढ़ोतरी हुई है। पिछले महीने के मुकाबले खाद्य महंगाई दर 2.04 फीसदी से बढ़कर 4.3 फीसदी हो गई है।

सात महीने के उच्चतम स्तर पर खुदरा महंगाई दर, अक्टूबर में रही 3.58%

इससे पहले खुदरा महंगाई दर के आंकड़े सामने आए थे। अक्टूबर में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआई) पर आधारित महंगाई दर 3.58 फीसदी रहा, जबकि पिछले महीने यह दर 3.28 फीसदी थी।

अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर में हुई बढ़ोतरी के बाद यह छह महीनों के उच्च स्तर पर जा चुका है।

बाजार पर क्या होगा असर?

खुदरा महंगाई दर और अब थोक महंगाई में हुई बढ़ोतरी ने उद्योग जगत को झटका दिया है।

मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के पिछले तीन सालों के निचले स्तर पर जाने के बाद उद्योग और बाजार की उम्मीदें भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) पर जा टिकी थी।

सुस्त आर्थिक रफ्तार को गति देने के लिए बाजार की उम्मीदें ब्याज दरों में की जाने वाली कटौती पर टिकी है। लेकिन खुदरा और थोक महंगाई दर में हुई बढ़ोतरी ने अगले महीने होने वाली समीक्षा बैठक में ब्याद दरों में कटौती की संभावना को धूमिल कर दिया है।

महंगाई और राजकोषीय घाटे से जुड़ी चिंताओं को देखते हुए अक्टूबर महीने में हुई पिछली समीक्षा बैठक में आरबीआई ने ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं की थी।

आरबीआई ने रेपो दर को छह प्रतिशत पर बरकरार रखा था वहीं रिवर्स रेपो रेट में भी किसी तरह का बदलाव नहीं करते हुए उसे 5.75 फीसदी के स्तर पर रखा था।

रेपो दर वह दर होती है, जिस पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है।

अमेरिकी फेडरल रिजर्व के भी ब्याज दरों में कटौती नहीं किए जाने के फैसले से बाजार की उम्मीदें कम हुई है। अमेरिकी लेबर मार्केट में मजबूती बनी हुई है और रोजगार संबंधी बेहतर आंकड़ों की वजह से फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं की।

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