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आंकड़ों में नोटबंदी : 2.25 लाख करोड़ रुपए का पड़ा बोझ, फायदा केवल 13 हजार करोड़ रुपए का

नोटबंदी पर पी चिदंबरम का कहना है कि खर्च करीब सवा दो लाख करोड़ रुपए का आया है, लेकिन सीधा फायदा 13 हजार करोड़ रुपए का ही हुआ।

Updated on: 29 Aug 2018, 04:56 PM

नई दिल्‍ली:

8 नवंबर 2016 हुई नोटबंदी के दौरान RBI को करीब 21 हजार करोड़ रुपए खर्च करना पड़े थे, लेकिन आज उसी रिजर्व बैंक कि तरफ से जारी आंकड़ों से पता चला है कि कैंसिल किए गए लगभग सारे नोट वापस आ गए हैं। केवल 13 हजार करोड़ रुपए के नोट ही लोगों ने नहीं लौटाए हैं।

ये हैं आंकड़े

नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 के प्रचलन में कुल 15 लाख 44 हजार करोड़ रुपये मू्ल्य के नोट बाजार में थे। बुधवार को जारी RBI के आंकड़े के अनुसार 15 लाख 31 हजार करोड़ रुपये मूल्य पुराने नोट वापस आ गए हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि नोटबंदी के बाद सिर्फ 13 हजार करोड़ रुपये के पुराने नोट ही वापस नहीं आए।

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चिदंबरम के सवाल

वहीं कांग्रेसी नेता और पूर्व वित्‍तमंत्री पी चिदंबरम का कहना है नोटबंदी से सीधे-सीधे सवा दो लाख करोड़ रुपए का भार पड़ा था। उन्‍होंने एक टीवी से बातचीत में कहा था कि नोटबंदी से GDP 7.1 फीसदी से गिरकर 5.7 फीसदी तक आ गई थी। इसका सीधा सा मतलब है कि GDP में 1.4 फीसदी का नुकसान हुआ। इसके अलावा ग्रॉस फिक्‍स कैपिटल फॉर्मेशन का नुकसान अलग से शामिल है। वहीं RBI को नोटबंदी से निपटने के लिए 21 हजार करोड़ रुपए खर्च करने पड़े। इसमें नए नोट छापने के अलावा उनको पहुंचाना और अन्‍य खर्च शामिल हैं।

ये है आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट

आरबीआई ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में जो जानकारी दी है उसके मुताबिक 8 नवंबर 2016 तक 15417.93 बिलियन रुपए नोटों सर्कुलेशन में थे और नोटबंदी के बाद 15310.73 बिलियन रुपए सर्कुलेशन से वापस नोटबंदी के दौरान आए। साल 2018 तक 37.7 फीसदी नोटों का सर्कुलेशन बढ़ा। मार्च 2017 तक नए 500 और 2000 रुपए के नोट का हिस्सा कुल नोट सर्कुलेशन का 72.7 फीसदी रहा जो मार्च 2018 तक बढ़कर 80.2 फीसदी हो गया।

ज्यादा जाली नोट पकड़े गए

नोटबंद के बाद साल 2017- 18 में जाली नोटों में कमी आई। आरबीआई और बैंकों में 2015-16 में 632926 जाली नोट की पहचान हुई थी 2016-17 में 762072 जाली नोट की पहचान हुई जबकि 2017-18 में 522783 जाली नोट पकड़े गए। यानि की जाली नोटों में 31.4% की कमी आई।

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कैशलेस को बढ़ावा

नोटबंदी के वक्त सरकार ने इसे कैशलेस अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा कदम बताते हुए लोगों को ऑनलाइन लेन-देने के प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने बड़े स्तर पर प्रचार अभियान चलाया था लेकिन आरबीआई के आंकड़ों ने ही सरकार की इस मंशा पर पानी फेर दिए थे।

कैशलेस इकॉनमी की तरफ बढ़ने की केंद्र सरकार की कोशिशों को बीते 11 जून को आए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के ताजा आकड़ों से करारा झटका लगा था। आरबीआई के अनुसार बाजार में अभी करीब 18.5 लाख करोड़ रुपये कैश का लेन-देन एक साथ हो रहा है। यह आंकड़ा बताता है कि नोटबंदी के बाद कैश देश में दोगुने से ज्यादा हो गया है। बता दें कि नोटबंदी के बाद जनता के हाथ में कैश घटकर 7.8 लाख करोड़ रुपये रह गया था।

जनता के पास मई 2014 में कैश 13 लाख करोड़ रुपये था, जबकि मई 2016 में 16.7, नवंबर 2016 में 17.9 फरवरी 2017 में 10, सितंबर 2017 में 15 और मई 2018 में 18.5 लाख करोड़ रुपये तक कैश पहुंच गया। इन आंकड़ों से साफ पता चलता है कि देश में कैश की संख्या साल दर साल बढ़ी है।