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भारत के वो ऐतिहासिक बजट जिनसे बदल गई देश की दिशा

हम बात करेंगे 7 ऐसे बजट (Budget) के बारे में जो भारत के लिए मील का पत्‍थर साबित हुए.इससे न केवल देश की दशा बदली बल्‍कि राष्‍ट्र को एक नई दिशा भी मिली.

Updated on: 30 Jan 2019, 03:21 PM

नई दिल्‍ली:

नरेंद्र मोदी सरकार ने जहां आज साफ कर दिया है कि यह बजट (Budget) अंतरिम बजट (Budget 2019) ही होगा तो वहीं 1 फरवरी को पेश किए जाने वाले इस बजट (Budget) को लेकर हिंदुस्‍तान की जनता को काफी उम्‍मीदें हैं. वैसे तो भारत में बजट (Budget) पेश करने का इतिहास करीब 150 साल पुराना है लेकिन आज हम बात करेंगे 7 ऐसे बजट (Budget) के बारे में जो भारत के लिए मील का पत्‍थर साबित हुए. इससे न केवल देश की दशा बदली बल्‍कि राष्‍ट्र को एक नई दिशा भी मिली.

1957ः वेल्थ टैक्स लगाया गया

कांग्रेस सरकार में तत्कालीन वित्त मंत्री टी टी कृष्णामाचारी ने 15 मई 1957 को यह बजट (Budget) पेश किया. आयात के लिए लाइसेंस जरूरी कर दिया गया. नॉन-कोर प्रोजेक्ट्स के लिए बजट (Budget) का आवंटन (बजट (Budget)री एलोकेशन) वापस ले लिया गया.

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निर्यातकों को सुरक्षा देने के नजरिए से एक्सपोर्ट रिस्क इंश्योरेंस कार्पोरेशन के गठन का फैसला. वेल्थ टैक्स लगाया गया. एक्साइज को 400 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया. ऐक्टिव इन्कम (सेलरी और बिजनेस) और पैसिव इन्कम (ब्याज और भाड़ा) में फर्क करने की प्रथम कोशिश हुई. आयकर को बढ़ा दिया गया.

1968: स्टांप की अनिवार्यता को खत्म

वित्त मंत्री मोरारजी रणछोड़जी देसाई ने 29 फरवरी 1968 को बजट (Budget) पेश किया. वस्तुओं के निर्माताओं को फैक्ट्री गेट पर ही आबकारी विभाग द्वारा मूल्यांकन कराने और स्टांप की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया और उत्पादकों के लिए स्वयं-मूल्यांकन का सिस्टम तैयार किया गया. यही सिस्टम अब भी जारी है. इस बजट (Budget) से उत्पादकों को हौसला मिला, जो भविष्य में चलकर भारत के लिए विकास के लिए अच्छा कदम साबित हुआ.

1991:आर्थिक उदारीकरण का शुरू हुआ दौर

इसमें कोई शक नहीं कि आर्थिक उदारीकरण के जरिए भारत में पूंजी निवेश बढ़ाने में सबसे बड़ा योगदान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का है. 24 जुलाई 1991 को भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने बजट (Budget) पेश किया और इसके जरिए आयात-निर्यात पॉलिसी में काफी सुधार किया गया. आयात के लिए लाइसेंस की प्रक्रिया को जहां आसान बनाया गया वहीं निर्यात बढ़ाने और आयात को जरूरत के हिसाब से रखने पर योजना बनी. सीमा शुल्क 220 प्रतिशत से घटाकर 150 प्रतिशत कर दिया गया, जो एक बड़ा बदलाव था.

1997: काले धन को बाहर लाने की स्‍कीम बनी

28 फरवरी 1997 को वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने यह बजट (Budget) पेश किया. लोगों और कंपनियों के लिए अब तक चल रहे टैक्स में बदलाव किया गया. कंपनियों को पहले से भुगते गए MAT को आने वाले सालों में कर देनदारियों में समायोजित करने की छूट दे दी गई. वोलेंटरी डिस्कलोजर ऑफ इन्कम स्कीम (VDIS) लॉन्‍च की गई ताकि काले धन को बाहर लाया जा सके.

1973: कोयले के खदानों का राष्ट्रीयकरण

वित्त मंत्री यशवंतराव बी चव्हाण ने 28 फरवरी 1973 को यह बजट (Budget) पेश किया. सामान्य बीमा कंपनियों, भारतीय कॉपर कॉर्पोरेशन और कोल माइन्स के राष्ट्रीयकरण के लिए 56 करोड़ रुपए मुहैया कराए गए. 1973-73 के लिए बजट (Budget) में अनुमानित घाटा 550 करोड़ रुपए का था. कहा जाता रहा है कि कोयले की खदानों के राष्ट्रीयकरण किए जाने से लंबी अवधि के नजरिए से बुरा प्रभाव पड़ा.

1987: टैक्स देने से बचने वाली कंपनियों पर शिकंजा

तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 28 फरवरी 1987 को केंद्रिय बजट (Budget) पेश किया. न्यूनतम निगम कर के संबंध में एक अहम फैसला लिया गया. न्यूनतम निगम कर, जिसे आज एम.ए.टी (MAT) या मिनिमम अल्टर्नेट टैक्स (Minimum Alternate Tax) के नाम से जाना जाता है को लाया गया. इसका मुख्य उद्देश्य उन कंपनियां को टैक्स की सीमा में लाना था जो भारी मुनाफा कमाती थीं और टैक्स देने से बचती थीं.

2000: सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री को जबरदस्त बू‍म मिला

एनडीए सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने 29 फरवरी 2000 को बजट (Budget) पेश किया. 1991 के बजट (Budget) में मनमोहन सिंह ने सॉफ्टवेयर निर्यातकों को टैक्स मुक्त रखा था.

यशवंत सिन्हा ने भी इसी क्रम को जारी रखा. मनमोहन सिंह ने विश्व में भारत को एक सॉफ्टवेयर केंद्र के तौर पर विकसित करने के नजरिए से सॉफ्टवेयर निर्यातकों को छूट दी थी. इससे भारत की सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री को जबरदस्त बू‍म मिला.