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संजय दत्त की रिहाई में केंद्र से नहीं किया गया था सलाह-मशविरा, आरटीआई में हुआ खुलासा

एक आरटीआई के जवाब में यरवदा जेल प्रशासन ने बताया कि ऐसे मामलों के संबंध में केंद्र या राज्य सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है. ऐसे में जेल मैनुअल के हिसाब से फैसला किया गया.

Updated on: 16 May 2019, 02:43 PM

highlights

  • आरटीआई के जवाब में कहा गया कि ऐसी रिहाई से पहले केंद्र को सूचना देने या सलाह लेने की बाध्यता नहीं.
  • राजीव गांधी की हत्या के मामले में सजा काट रहे कैदी ने दाखिल की थी आरटीआई.
  • याचिकाकर्ता ने कहा कि सजा माफ़ करने के मामले में अलग व्यवहार किया जा रहा है.

नई दिल्ली.:

बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त की आर्म्स एक्ट में समय से पहले हुई रिहाई के लिए केंद्र सरकार से किसी तरह का सलाह-मशविरा नहीं किया गया था. एक आरटीआई के जवाब में यरवदा जेल प्रशासन ने बताया है कि ऐसे मामलों के संबंध में केंद्र या राज्य सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है. यही वजह है कि संजय दत्त की वक़्त से पहले रिहाई के लिए जेल मैनुअल के हिसाब से ही फैसला किया गया.

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राजीव गांधी के हत्यारे ने दाखिल की थी आरटीआई
उम्र कैद की सजा काट रहे और राजीव गांधी के 7 हत्यारों में से एक एजी पेरारिवालन ने संजय दत्त की रिहाई से जुड़े पहलुओं की जानकारी के लिए आरटीआई दायर की थी. इसी के जवाब में यरवदा जेल के डिप्टी सुपरिटेंडेंट ने बताया कि संजय की रिहाई महाराष्ट्र जेल मैनुअल के नियमों के मुताबिक की गई है. इस मैनुअल में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है कि अच्छे व्यवहार को आधार बनाकर होने वाली रिहाई से पहले केंद्र को सूचना दी जाए या फिर सलाह ली जाए. ये कदम सीआरपीसी या फिर संवैधानिक प्रक्रिया के तहत नहीं आता है.

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याचिकाकर्ता का आरोपः समान व्यवहार नहीं होता
हालांकि पेरारिवालन का तर्क है कि संजय दत्त को आर्म्स एक्ट के तहत सजा हुई थी और उनकी वक़्त से पहले रिहाई के लिए केंद्र से सलाह-मशविरा करना ज़रूरी था. हालांकि पेरारिवालन ने ये भी कहा है कि आरटीआई के पीछे उनका मकसद संजय को वापस जेल में पहुंचाना नहीं है. वह ये साबित करना चाहते हैं कि उनके केस और संजय के केस में 'एक्ट ऑफ़ टेरर' का उल्लेख किया गया था, लेकिन वक़्त से पहले रिहाई के मामले में दोनों के साथ एकसमान व्यवहार नहीं किया जा रहा है.

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'गैर-कानूनी है रिहाई'
पेरारिवालन के वकील ने अंग्रेजी अखबार द हिंदू से बातचीत में कहा कि आर्म्स एक्ट के मामले में सिर्फ केंद्र सरकार ही सजा घटाने या वक़्त से पहले रिहाई के जैसे फैसले लेने के लिए कानूनी रूप से अधिकृत है. ऐसे में जेल मैनुअल का हवाला देने से भी ये रिहाई गैर-कानूनी नज़र आती है. दोनों ही केस में जांच सीबीआई ने की थी और दोषी पाया था, लेकिन सजा माफ़ करने के मामले में अलग व्यवहार किया जा रहा है.