'पद्मावत' के रचनाकार मलिक मुहम्मद जायसी का खिलजी से था विशेष नाता, जानें 10 अन्य तथ्य
इनमें 'पद्मावत' हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत सूफी परम्परा का प्रसिद्ध महाकाव्य है। दोहा और चौपाई छन्द में लिखे गए इस महाकाव्य की भाषा अवधी है।
नई दिल्ली:
इन दिनों बॉलीवुड के साथ राजनीतिक हलकानों में निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावती' ने हलचल पैदा कर दी है। काफी समय से विवादों में घिरी फिल्म की रिलीज डेट भी टल गई है।
फिल्म में चितौड़गढ़ की रानी पद्मावती और दिल्ली सल्तनत के शासक अलाउद्दीन खिलजी के बीच फिल्माये गए दृश्यों को लेकर राजपूत समाज और करणी सेना के विरोध से शुरू हुई ये जंग आज बड़ा रूप अख्तियार कर चुकी है।
आइए हम आपको अलाउद्दीन खिलजी के वशंज और 'पद्मावत' ग्रंथ के रचनाकार मलिक मोहम्मद जायसी के बारे में कुछ ऐसे ही तथ्यपरक बातें बताते हैं, जिन्हें आपने इससे पहले ना तो पढ़ा होगा और ना ही सुना होगा।
1. 'पद्मावत' महाकाव्य की रचना करने वाले मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म सन् 1477 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली में हुआ, जबकि सन् 1542 में अमेठी में उनकी मृत्यु हुई थी। कवि ने भक्ति काल में पद्मावत, अखरावट, आखिरी कलाम, कहरनामा रचनाएं लिखीं।
इनमें 'पद्मावत' हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत सूफी परम्परा का प्रसिद्ध महाकाव्य है। दोहा और चौपाई छन्द में लिखे गए इस महाकाव्य की भाषा अवधी है़, इसमें पद्मावती की प्रेम-कथा का वर्णन है। साथ ही रतनसेन की पहली पत्नी नागमती के वियोग का अनूठा सार है। इसकी भाषा अवधी है और इसकी रचना-शैली पर आदिकाल के जैन कवियों की दोहा चौपाई पद्धति का प्रभाव पड़ा है।
2. मलिक मुहम्मद जायसी हिन्दी साहित्य के भक्ति काल के कवि हैं। वे उच्चकोटि के सरल और उदार सूफी महात्मा थे। जायसी मलिक वंश के थे, मिस्र में सेनापति या प्रधानमंत्री को मलिक कहते थे। दिल्ली सल्तनत में खिलजी वंश राज्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा को मरवाने के लिए बहुत से मलिकों को नियुक्त किया था, जिसके कारण यह नाम उस काल से काफी प्रचलित हो गया था।
3. मलिक मुहम्मद जायसी के वंशज अशरफी खानदान के चेले थे और मलिक कहलाते थे। इरान में मलिक जमींदार को कहा जाता था व इनके पूर्वज वहां के निगलाम प्रान्त से आये थे और वहीं से उनके पूर्वजों की पदवी मलिक थी। जायसी ने शेख बुरहान और सैयद अशरफ का अपने गुरुओं के रूप में उल्लेख किया है।
4. जायसी उत्तर प्रदेश के जायस नामक स्थान के रहने वाले थे। इसलिए उनके नाम में जायसी शब्द का प्रयोग उनके उपनाम की भांति किया जाता है। जायस नाम का यह नगर रायबरेली जिले से कुछ ही दूरी पर स्थित है। इसका पुराना नाम उद्याननगर बताया जाता है।
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5. कहा जाता है उनके पिता मलिक राजे अशरफ मामूली जमींदार थे और खेती करते थे। स्वयं जायसी का भी खेती करके जीविका-निर्वाह करना प्रसिद्ध है। साथ ही यह भी बताया जाता है कि जायसी कुरुप व काने थे। एक मान्यता अनुसार वे जन्म से ऐसे ही थे, किन्तु अधिकतर लोगों का मत है कि शीतला रोग के कारण उनका शरीर विकृत हो गया था।
6. स्थानीय मान्यतानुसार पुत्र के मकान के नीचे दब कर मारे जाने के बाद जायसी संसार से विरक्त हो गए और कुछ दिनों में घर छोड़ कर यहां वहां फकीर की भांति घूमने लगे। अपने अंतिम दिनों में जायसी अमेठी से कुछ दूर एक घने जंगल में रहा करते थे। अंतिम समय निकट आने पर उन्होंने अमेठी के राजा से कह दिया कि मैं किसी शिकारी के तीर से ही मरुंगा जिस पर अमेठी के राजा रामसिंह जो उन्हें बहुत मानते थे, उन्होंने आसपास के जंगलों में शिकार की मनाही कर दी।
7. जायसी जिस जंगल में रहते थे, उसमें एक शिकारी को एक बड़ा बाघ दिखाई पड़ा। उसने डर कर उस पर तीर चला दिया। पास जा कर देखा तो बाघ के स्थान पर जायसी मरे पड़े थे। काजी नसरुद्दीन हुसैन जायसी ने, जिन्हें अवध के नवाब शुजाउद्दौला से सनद मिली थी, मलिक मुहम्मद का मृत्युकाल रज्जब (सन् 1542) बताया है।
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8. अमेठी उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर एवं राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण लोकसभा क्षेत्र है। जायसी की कब्र अमेठी के राजा संजय सिंह के वर्तमान महल से तीन-चैथाई मील के लगभग है। जायसी के मरने के बाद इसे किला बना दिया गया है।
9. अमेठी के राजाओं का पुराना किला जायसी की कब्र से डेढ़ कोस की दूरी पर था। वहां यह धारणा प्रचलित है कि अमेठी के राजा को जायसी की दुआ से पुत्र हुआ और इसलिए उन्होंने अपने किले के समीप ही उनकी कब्र बनवाई है।
10. आज भी वहां बसे लोग उनकी मजार पर चादर चढ़ाकर आते हैं और यहां आने वाले हर शख्स की मुरादें पूरी होती हैं।
खैर, अब हम आपको 'पद्मावती' फिल्म के किरदार अलाउद्दीन खिलजी के बारे में बताते हैं, जिसको लेकर विवाद हो रहा है। अलाउद्दीन खिलजी का वास्तविक नाम अली गुरशास्प (1296-1316) था, यह दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का दूसरा शासक था।
एक विजेता के तौर पर उसने अपना साम्राज्य दक्षिण के मदुरै तक फैला दिया था। इसके बाद इतना बड़ा भारतीय साम्राज्य अगले तीन सौ सालों तक कोई भी शासक स्थापित नहीं कर पाया था। वह अपने मेवाड़ चित्तौड़ के विजय अभियान के बारे में भी प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि वो चित्तौड़ की रानी पद्मावती की सुन्दरता पर मोहित था। इसका वर्णन मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी रचना 'पद्मावत' में किया है।
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