logo-image

जन्मदिन विशेष: अनुराग कश्यप जिन्होंने अपने एक्सपेरिमेंट से फिल्मों को काल्पनिक से वास्तविक बना दिया

आज अनुराग कश्यप का जन्मदिन है। आइए इस खास दिन पर उनकी 5 बेहतरीन फिल्मों को याद करें जिसने फिल्म इंडस्ट्री को काल्पनिक से वास्तविक बनाया।

Updated on: 10 Sep 2017, 12:07 PM

नई दिल्ली:

बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो हमेशा से चली आ रही एक जैसी चीजों को बदलना चाहते हैं। ऐसे लोग सफलता और असफलता को ध्यान में रख कर काम नहीं करते। ऐसा ही एक नाम है अनुराग कश्यप! नई पीढ़ी के प्रतिभावान फिल्मकारों में से एक अनुराग कश्यप आज की पीढ़ी के नज़रिए को फिल्मों में कहते हैं। अनुराग हरबार कुछ अलग-अनकही किस्म की प्रस्तुति लेकर आते हैं।

उनके फिल्मों में सिक्स पैक एब्स वाले हीरो या चॉकलेट लुक वाले किरदार नहीं होते बल्कि उनकी फिल्म में हर किरदार वास्तविक दिखता है। हमेशा नए की तलाश में रहने वाले अनुराग के लिए पाब्लो पिकासो की पंक्ति 'मैं हमेशा वही चीज़ें करता हूँ जो मैं नहीं कर सकता तभी तो मैं उन्हें कर पाता हूँ' बिल्कुल सटीक बैठती है।

आज अनुराग कश्यप का जन्मदिन है। आइए इस खास दिन पर उनकी 5 बेहतरीन फिल्मों को याद करें जिसने फिल्म इंडस्ट्री को काल्पनिक से वास्तविक बनाया।

गुलाल

इस फिल्म का हर किरदार प्रासंगिक लगता है। इस फिल्म की कहानी राजपुताना सनक के जरिए राजनीति की एक व्यापक हक़ीकत को बयां करती है। राजपुताना के नाम पर लोगों को भड़का कर अपनी राजनीतिक हित साधने वाले दुकी बना यानी केके मेनन जैसे किरदार राजनीतिक परिदृश्य में आसानी से देखने को मिल जाते जो जातिगत कार्ड खेलते हैं।

कॉलेज की राजनीति का जो रूप इस फिल्म में दिखाया है उससे वह सभी युवाओं को कनेक्ट कर पाते हैं जिन्होंने कॉलेज में होने वाले राजनीतिक चुनाव को देखा है।

गैंग्स ऑफ वासेपुर

आजकल की फिल्मों में गाली का इस्तेमाल करने से कई फिल्म मेकर डरते हैं। उन्हें डर होता है कि फुहरपने के कारण सेंसर बोर्ड की कैंची न चल जाए लेकिन इस चिंता से दूर अनुराग की गैंग्स ओफ गैंग्स ऑफ वासेपुर गालियों और गोलियों से लबरेज है। फिल्म का हर पात्र सच्चा दिखता है। हर पात्र अपने आप में समाज का एक किरदार दिखता है जो जैसा है वैसा ही पर्दे पर देखने को मिलता है।

इस फिल्म में लड़ाई कुरैशी और पठान के बीच दिखाई है। कैसे समाज में जीवन की कीमत सबसे कम है और ताकत का मतलब जीवन के ऊपर काबिज होना है इसे अनुराग ने बेहतरीन तरीके से दर्शाया है। यह फिल्म आजादी के बाद एक इलाके में आयी तब्दीलियों को पूरी कठोरता के साथ पर्दे पर उतारती है।

‘Dev D’

किसने सोचा होगा कि शरतचंद चट्टोपाध्याय ने 1917 में जिस देवदास की रचना की थी वह कभी मार्डन हो जाएगा। इस कहानी को लेकर पहली फिल्म बांग्ला भाषा में सन् 1935 में बनी। इसके बाद हिन्दी पर्दे पर सबसे पहले के.एल सहगल ने 1955 में दिलीप कुमार को देवदास बनाकर प्रस्तुत किया।

इसके बाद संजय लीला भंसाली ने सन् 2002 में शाहरूख को देवदास बनाकर प्रस्तूत किया लेकिन जब अनुराग ने ‘Dev D’फिल्म में देवदास को सिनेमाई पर्दे पर उतारा तो उसका रूप बिलकुल अलग था। इस फिल्म से पता चलता है अनुराग कश्यप सिनेमा और कहानी के पात्रों के साथ एक्सपेरिमेंट करने से डरते नहीं है।

अनुराग कश्यप का देवदास आज का देवदास है। इस फिल्म में अभय द्योल का किरदार दारूबाज है और लौंडियाबाज है। एक प्यार करने वाली महबूबा के होते हुए भी, एक वेश्या के साथ शारीरिक संबंध बनाने में इस देवदास को कोई गुरेज नहीं है। फिल्म आनंद और रसास्वादन की पारंपरिक प्रक्रिया को झकझोरती है। इस दिखावटी समाज में असली किरदार कैसे होते हैं यह फिल्म में देखने को मिलता है।

ब्लैक फ्राईडे

साल 2004 में आई फिल्म ब्लैक फ्राईडे ने अनुराग कश्यप को नई पहचान दिलाई। इस फिल्म में जिस तरह से अनुराग कश्यप ने धमाकों के खौफनाक मंजर को दर्शाया है वैसा आज तक कोई नहीं कर पाया।

अनुराग ने बम धमाकों की सच्चाई को फिल्म में कुछ इस तरह पिरोया कि सेंसर ने इस फिल्म को पास करने में ही दो साल लगा। यह भी अनुराग की यूएसपी थी कि वरना रियल और वीभत्स ब्लास्ट सीन दिखाने की हिम्मत किसी डायरेक्टर ने आज तक नहीं की।

उड़ता पंजाब
उड़ता पंजाब एक कंट्रोवर्शियल ड्रग- ड्रामा फिल्म है। नशे की जद में फंसा पंजाब कैसे अनुराग की आंखों से छिपा रह सकता था। इस फिल्म में ड्रग के नशे में चूर पॉपस्टार टॉमी (शाहिद कपूर), हेरोईन के लत में डूबी खेतों में काम करने वाली आलिया भट्ट (हॉकी प्लेयर), एंटी ड्रग सोशल एक्टिविस्ट डॉक्टर प्रीत (करीना कपूर) और पुलिस (दिलजीत) चारो किरदारों के जरिए अनुराग पंजाब की उस सच्चाई को से रूबरू कराते हैं जो दिल दहलाने वाली है।