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सामने है आम चुनाव, इसलिए विधानसभा चुनाव में खतरा मोल नहीं लेना चाहती बीजेपी और कांग्रेस

विधानसभा चुनाव जीतकर बीजेपी और कांग्रेस लोकसभा चुनाव में मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने के मूड में हैं. इसलिए बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह राजस्‍थान की पूरी कमान अपने हाथ में लिए हुए हैं और उधर कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने अपने विश्‍वस्‍त अशोक गहलोत और सचिन पायलट को कमान सौंपी है.

Updated on: 30 Oct 2018, 12:40 PM

नई दिल्ली:

राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश और छत्‍तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के रंग में रंग गए हैं. दावेदार अपनी दावेदारी मजबूत करने में लगे हैं तो पार्टियां भी अपने कार्यकर्ताओं को जीत का संदेश देकर चुनावी मैदान में उतारने जा रही हैं. विधानसभा चुनाव हो रहा है और आम चुनाव होने वाला है, लिहाजा बीजेपी और कांग्रेस दोनों एक दूसरे को मौका देने के मूड में कतई नहीं हैं. खासकर राजस्‍थान की बात करें तो दोनों दल विधानसभा चुनाव जीतकर लोकसभा चुनाव में मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने के मूड में हैं. इसलिए बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह पूरी कमान अपने हाथ में लिए हुए हैं और उधर कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने अपने विश्‍वस्‍त अशोक गहलोत और सचिन पायलट को कमान सौंपी है.

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माना जा रहा है कि इस बार बीजेपी टिकट बंटवारे में अमित शाह राज्‍य के सभी क्षत्रपों का ख्‍याल रखेंगे और किसी एक नेता की नहीं सुनेंगे. यहां तक कि मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे को भी पूरी छूट नहीं मिलेगी. अभी के हालात में बीजेपी के लिए जीत का अनुमान लगाना आसान नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि दोनों दल कोई भी खतरा मोल लेने को तैयार नहीं हैं. पांच राज्‍यों में चुनाव हो रहे हैं, लेकिन राजस्‍थान में पार्टी अध्‍यक्ष सबसे अधिक समय देने वाले हैं, ऐसा पार्टी सूत्रों का कहना है. पार्टी ऐसा मानकर चल रही है कि अमित शाह के कमान संभालने से राज्‍य में पार्टी नेताओं में बिखराव खत्‍म हो जाएगा और उनकी रणनीति चुनाव जीतने में मददगार साबित होगी.

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दूसरी ओर, कांग्रेस नेताओं का भी मानना है कि अगर विधानसभा चुनाव में बीजेपी मात खा गई तो लोकसभा चुनाव में इसका मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल होगा और बीजेपी के खिलाफ प्रचार में पार्टी को सहूलियत पेश आएगी और अन्‍य राज्‍यों में भी इसका जोर-शोर से प्रचार किया जाएगा.

पार्टी नेताओं का दावा, जैसी कयासबाजी, वैसा माहौल नहीं

बीजेपी पार्टी नेताओं का दावा है कि राजस्‍थान में जिस तरह बीजेपी के हारने की कयासबाजी हो रही है, वैसा माहौल नहीं है और चुनाव नजदीक आते ही हालात में बदलाव आ सकता है. पार्टी यह भी मानकर चल रही है कि राज्‍य में अगर विधानसभा चुनावों में कामयाबी मिलती है तो लोकसभा चुनाव में विपक्ष के लिए संभावनाएं एकदम सीमित हो जाएंगी. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सत्‍ता में वापसी के आसार हैं और दोनों राज्यों में पार्टी को दोनों मुख्यमंत्रियों पर भरोसा भी है. राजस्‍थान में पार्टी केवल मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के भरोसे चुनाव नहीं लड़ना चाहती या यों कहें कि कोई रिस्‍क नहीं लेना चाहती.

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पार्टी की रणनीति यह है कि राजस्‍थान चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने में मदद मिलेगी, जो लोकसभा चुनाव में काम आएगी. बीजेपी राज्य की 200 विधानसभा सीटों में से लगभग 150 सीटों के लिए उम्मीदवारों का चयन आलाकमान के स्तर से ही कराना चाहती है. मुख्यमंत्री के खेमे के लिए 50 से 60 सीटें रिजर्व रखी जा सकती हैं यानी इन सीटों पर वसुंधरा राजे सिंधिया की पसंद के उम्मीदवारों को तरजीह दी जाएगी.

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मध्‍य प्रदेश और छत्‍तीसढ़ के मुख्‍यमंत्रियों को पूरी छूट

विधानसभा चुनाव में रणनीति बनाने या फिर टिकट वितरण में मध्‍य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और छत्‍तीसगढ़ के मुख्‍यमंत्री डा. रमन सिंह को अधिक छूट है. पिछले विधानसभा चुनावों में इन दोनों नेताओं ने अपनी सरकार के काम की बदौलत जीत हासिल की थी, इसलिए बीजेपी आलाकमान इन दोनों नेताओं पर कोई अंकुश नहीं लगाना चाहती. पार्टी का मानना है कि बेमतलब का अंकुश लगाने से इन दोनों नेताओं की रणनीति प्रभावित होगी, जो पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित होगी.