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क्‍या 1995 के फार्मूले पर महाराष्‍ट्र (Maharashtra) में बनेगी 2019 की सरकार? बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह (Amit Shah) आज जा रहे मुंबई

Government Formation in Maharashtra : बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह (BJP President Amit Shah) आज मुंबई जा रहे हैं. यह भी कहा जा रहा है कि वे 1995 का फॉर्मूला लेकर मुंबई जा रहे हैं.

Updated on: 29 Oct 2019, 09:19 AM

नई दिल्‍ली:

महाराष्‍ट्र (Maharashtra) में चुनाव परिणाम (Election Result) आने के 5 दिन बीत जाने के बाद भी सरकार बनाने को लेकर असमंजस कायम है. शिवसेना (Shiv Sena) ढाई-ढाई साल के लिए मुख्‍यमंत्री (Chief Minister) की मांग पर किसी भी सूरत में पीछे हटती नहीं दिख रही है,वहीं बीजेपी (BJP) को किसी भी हाल में यह मांग मंजूर नहीं है. उसके अलावा, दोनों दलों के नेताओं की ओर से तरह-तरह के बयान दिए जा रहे हैं, जिससे प्रदेश में राजनीतिक संकट गहराने के आसार बढ़ गए हैं. या फिर एक नया राजनीतिक समीकरण (Political Equation) बनने के संकेत मिल रहे हैं. हालांकि सबकी नजरें बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह (BJP President Amit Shah) के मुंबई दौरे पर टिकी हैं.

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बताया यह जा रहा है कि अमित शाह आज मुंबई जा रहे हैं. यह भी कहा जा रहा है कि वे 1995 का फॉर्मूला लेकर मुंबई जा रहे हैं. 1995 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बहुमत मिला था. उस समय शिवसेना सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी और बीजेपी को उससे कम सीटें मिली थीं. तब शिवसेना की ओर से मनोहर जोशी को मुख्‍यमंत्री बनाया गया था. बाद में मनोहर जोशी की जगह शिवसेना ने नारायण राणे को मुख्‍यमंत्री बनाया. इस बार शिवसेना ठाकरे परिवार से मुख्‍यमंत्री बनाना चाहती है, लेकिन उसकी सीटें बीजेपी से करीब आधी हैं. फिर भी वह ढाई-ढाई साल के लिए मुख्‍यमंत्री का पद मांग रही है. बीजेपी उत्‍तर प्रदेश में यह प्रयोग कर इसका खामियाजा भुगत चुकी है, लिहाजा वह इसे दोहराने को तैयार नहीं है.

महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें कम हुई हैं, इसलिए शिवसेना मोलभाव करने के मूड में है. हालांकि उसकी भी सीटें घटी हैं, लेकिन ठाकरे परिवार से किसी को मुख्‍यमंत्री बनाने को लेकर शिवसेना इतनी जल्‍दी में है कि अब उसे बर्दाश्‍त नहीं हो पा रहा है. इस बार विधानसभा का गणित जटिल है. बीजेपी और शिवसेना में बात नहीं बनने की स्‍थिति में एनसीपी के पास सत्‍ता की चाबी आ जाएगी. बीजेपी और शिवसेना दोनों ही एनसीपी के भरोसे मोलभाव कर रहे हैं, जबकि एनसीपी ने अभी अपने पत्‍ते ही नहीं खोले हैं. चुनाव परिणाम आने के बाद हालांकि शरद पवार ने विपक्ष में बैठने की बात कही थी, लेकिन सब जानते हैं कि राजनीति में कोई भी और किसी की भी बात अंतिम नहीं होती. परदे के पीछे सियासत चलती रहती है.

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एनसीपी नेताओं को चुनाव से पहले ईडी ने नोटिस भेजा था और शरद पवार ने इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताया था. पीएम नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान शरद पवार पर व्‍यक्‍तिगत हमले किए थे. लिहाजा बीजेपी के लिए एनसीपी को साथ लाना मुश्‍किल भरा होगा. हालांकि एनसीपी ईडी की कार्रवाई को लेकर बीजेपी से राजनीतिक मोलभाव कर सकती है. दूसरी ओर एनसीपी के पास बीजेपी से बदला लेने का भी मौका है. अगर एनसीपी-कांग्रेस ने महाराष्‍ट्र में शिवसेना को समर्थन दे दिया तो बीजेपी देखती रह जाएगी. इन सब खेल के बीच सबसे जटिल स्‍थिति कांग्रेस के लिए होगी. अगर एनसीपी-कांग्रेस मिलकर शिवसेना को समर्थन देते हैं तो बीजेपी कांग्रेस विधायकों में सेंध लगाने की कोशिश करेगी, जैसा कि गोवा, तेलंगाना, कर्नाटक आदि राज्‍यों में हो चुका है.